विचार / लेख

स्लो टीवी हमें प्रकृति के करीब कैसे ला रहा है
07-May-2025 9:58 PM
स्लो टीवी हमें प्रकृति के करीब कैसे ला रहा है

बलखाती हुई नदियां, चहचहाती हुई चिड़ियां, पत्तों की सरसराहट और बस यही बल्कि सिर्फ यही. स्लो टीवी हाल के समय में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. लेकिन उसमें इतना खास क्या है?

(dw.com/hi)

क्या आप हौले हौले तैरती जेलीफिश को देखना पसंद करते हैं? या ऊंचे पेड़ों पर अंडों को सेकते सारसों को? या फिर हिरणों को हरियाली की ओर दौड़ते हुए? बहुत से लोग अब ऐसे दृश्य लाइव देखना पसंद कर रहे हैं। जो ‘स्लो टीवी’ ने नाम से लोकप्रिय हो रहा है।

‘स्लो टीवी’ शब्द का मतलब है बिना किसी इंसानी टिप्पणी के लंबे कार्यक्रम का सीधा और वास्तविक प्रसारण। इसकी शुरुआत 2009 में हुई थी, जब नॉर्वे ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एनआरके) ने सात घंटे की ट्रेन यात्रा को बिना कांट-झांट किए पूरा प्रसारित किया था।

वह लंबी और शांत ट्रेन यात्रा लोगों को इतनी पसंद आई कि इसके बाद ऐसे कार्यक्रमों की एक नई लहर शुरू हो गई। लोगों ने नाव यात्राओं, रातभर बुनाई के कार्यक्रमों और पक्षियों को दाना चुगते, लाइव देखना शुरू कर दिया। यही से ‘स्लो टीवी’ की शुरुआत हुई, जो धीरे-धीरे कई देशों में लोकप्रिय हुआ।

दस साल बाद, स्वीडन के टीवी चैनल एसवीटी ने ‘ग्रेट एल्क ट्रेक’ के नाम से एक नया प्रयोग शुरू किया। इसका लाइवस्ट्रीम लगातार तीन हफ्तों तक चला। इसमें उत्तर स्वीडन के जंगलों में 32 कैमरे लगाए गए, जो जंगल के शांत और सुंदर नजारे लगातार दिखाते थे। इस दौरान कुछ हिरण भी कभी-कभार नदी पार करते हुए दिख जाते थे। लगभग 10 लाख लोगों ने इस लाइव स्ट्रीम को देखा। जिसमें स्वीडन के वन्य जीवन की प्राकृतिक आवाजें और दृश्य देखने को मिले। पिछले साल, यह लाइवस्ट्रीम और भी लोकप्रिय हो गई। जब इसे 90 लाख से भी ज्यादा लोगों ने देखा।

‘ग्रेट एल्क ट्रेक’ के प्रोजेक्ट मैनेजर योहान एरहाग मानते हैं कि इस शो की सफलता का राज है इसकी धीमी और शांत प्रकृति है, जो आज की तेज खबरों, लगातार बदलते हुए सोशल मीडिया और टीवी कार्यक्रमों से बिलकुल अलग है। उनका कहना है, ‘यहां शांति होती है और समय के साथ-साथ रोमांच भी आता है। इसमें आपको सोचने और आराम करने का पूरा समय मिलता है।’

ऐसा केवल इस लाइव स्ट्रीम के साथ ही नहीं है। बल्कि अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित सैन डिएगो चिडिय़ाघर ने भी ऐसे कैमरे लगाए हैं, जिससे लोग ध्रुवीय भालू, हाथी, रेड पांडा और बाघ जैसे अनोखे जानवरों को लाइव देख सकते हैं।

इसी तरह, दक्षिणी इंग्लैंड के एक सारस का घोंसला भी चर्चा में है। इसमें अनिया और बारटेक नाम के दो सारस रहते हैं, जो 2020 से एक-दूसरे के साथ हैं। इस साल वसंत में इस घोंसले को दुनियाभर के 55,000 से भी ज्यादा लोग ऑनलाइन देख चुके हैं। घोंसला जमीन से बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए लोग इसे ऊपर से लगे कैमरे के जरिए देखते हैं। इसमें दिखता है कि सारस अंडे दे चुके हैं, और उन्हें सेक रहे हैं और फिर उनसे बच्चे निकले। इस साल चार बच्चों ने घोंसला छोड़ा।

व्हाइट स्टॉर्क प्रोजेक्ट की मैनेजर लॉरा वॉन-हिर्श कहती हैं, ‘लोगों को इसे देखकर शांति और सुकून मिलता है। यह जंगल की जिंदगी के एक झरोखे जैसे है, जिससे लोगों को सीखने को मिलता है कि पक्षियों के बच्चे कैसे विकसित होते हैं।’

तनाव के बीच में सुकून

स्लो टीवी ना सिर्फ अलग-अलग दर्शकों को आकर्षित करता है बल्कि हर उम्र और हर रुचि के लोगों को भी पसंद आता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक और साधारण दर्शकों से लेकर विशेषज्ञों तक, हर कोई इसे देखता है। स्वीडन के पश्चिमी शहर सुन्ने की प्री-स्कूल टीचर, ईडा लिंडबर्ग, अपने 5 और 6 साल के बच्चों के साथ दिन में दो बार 'ग्रेट एल्क ट्रेक' देखती हैं। वह इसे शिक्षा के नजरिये से देखती हैं। उनका कहना है कि हिरण आमतौर पर अकेले रहते हैं, लेकिन सालाना प्रवास के लिए समूह बना लेते हैं। यह बच्चों को प्रकृति, सामाजिक व्यवहार और यहां तक कि गणित के बारे में भी बहुत कुछ सिखाता है।

ईडा ने डीडब्ल्यू से कहा, ‘इससे बच्चों को पर्यावरण के महत्व का पता चलता है, और हम उम्मीद करते हैं कि जब वह बड़े होंगे तो वे जलवायु के नजरिये से सही फैसले लेंगे।’

एल्क ट्रेक सिर्फ एक लाइव स्ट्रीम नहीं है। यह सर्दियों से गर्मियों में आते बदलाव को भी दर्शाता है और कई लोगों के लिए तो अब यह एक सालाना परंपरा जैसा बन गया है। शार्लोट ऑटिलिया कम्पेबॉर्न, जो इसे शुरुआत से देख रही हैं, वह मानती हैं कि वह इस शो की आदी हो चुकी हैं। वह घर से काम करते समय इसे बैकग्राउंड में चलाती है क्योंकि इससे उन्हें बहुत शांति मिलती है खासकर आज के समय में, जब लोग आराम और सुरक्षा का अहसास ढूंढ रहे हैं। उनका कहना है कि दुनिया में अभी जैसी स्थिति है, उसमें संतुलित बनाए रखने के लिए ऐसी चीजे जरूरी हैं जिसमें भविष्य धुंधला नजर ना आए। और ऐसे में, प्रकृति को आज भी पहले की तरह से चलते देख सुकून मिलता है।

जलवायु परिवर्तन में बढ़ती जागरूकता

प्रकृति पर आधारित स्लो टीवी को आमतौर पर मन को शांत करने वाले प्रभाव के लिए सराहा जाता है। लेकिन योहान एरहाग का मानना है कि इसका असर सिर्फ सुकून तक सीमित नहीं है। यह लोगों में प्रकृति के प्रति एक गहरा लगाव भी पैदा करता है और उन्हें जलवायु के प्रति सजग व्यवहार अपनाने को भी प्रेरित करता है।

उनका कहना है, ‘मुझे पूरा यकीन है कि ‘ग्रेट एल्क ट्रेक’ ने लोगों की आंखें खोल दी है। अब वह जानवरों और प्रकृति को एक नई नजर से देखते हैं और समझते हैं कि इसकी रक्षा करना कितना जरूरी है।’

अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, रेबेका मॉल्डिन बताती है कि उनका और उनके साथियों का कहना है कि प्रकृति से जुड़ी लाइव स्ट्रीम, लोगों में भावनात्मक जुड़ाव और समझ पैदा करती है, जो उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है।

उनका कहना है, ‘जब लोग किसी जगह या जानवर से जुड़ाव महसूस करते हैं, तो वह उसे बचाने की इच्छा भी ज्यादा रखते हैं।’ हालांकि यह क्षेत्र अभी नया है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्चुअल अनुभव कभी भी पूरी तरह से वास्तविक अनुभवों की जगह नहीं ले सकते हैं।

मॉल्डिन कहती हैं, ‘लाइव स्ट्रीम देखना शायद उतना सुकून देने वाला नहीं है जितना कि खुद प्रकृति में जाना लेकिन इसका असर भी काफी मिलता-जुलता हो सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो किसी कारणवश प्रकृति से सीधे तौर पर नहीं जुड़ सकते है।’ (dw.com/hi)

अन्य पोस्ट