विचार / लेख

आपका क्या होगा केजरीवाल!
06-May-2025 8:11 PM
आपका क्या होगा केजरीवाल!

-डॉ. आर.के. पालीवाल

इस समय तो यही कहा जा सकता है कि आप और आप के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल का निकट भविष्य काफी संकटपूर्ण और अंधकार मय है। यह भी सच है कि कठिन समय की आग में तपकर ही सार्वजनिक जीवन में कुछ लोग कुंदन बन जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ भी एक समय ऐसे ही अत्यंत गंभीर संकट आए थे जब विपक्षी दलों के नेता तो उन्हें गुजरात दंगों पर चक्रव्यूह बनाकर चौतरफा घेर ही रहे थे उनके अपने दल के अटल बिहारी वाजपेई सरीखे उदार नेता भी उन्हें राजधर्म निभाने की नसीहतें दे रहे थे। यहां तक कि अमेरिका ने भी उन्हें अपने देश में आने पर पाबंदी लगा दी थी।नरेंद्र मोदी ने उस वक्त धैर्य से खुद को धीरे धीरे इतना मजबूत कर लिया कि आज उन्होंने अपने दल की पूरी कमान अपने हाथ में कर ली है। उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के तमाम दिग्गज मार्गदर्शक मंडल की दर्शक दीर्घा में बैठे हैं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी भाजपा के संगठन और सरकार में दबंगई नहीं कर पाता और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सरीखे उनके विरोधी एक एक कर कई राज्यों में विपक्ष की कतार में पहुंच गए। गुजरात से शुरू हुआ मोदी का सफर सुदूर असम और उड़ीसा तक पहुंच गया जहां वे जिसे चाहें टिकट दें जिसे चाहें मुख्यमंत्री बना दें । हकीकत में संकट के समय अधिकांश लोग टूटकर बिखर जाते हैं और केवल कुछ लोग ही तपकर बाहर आते हैं।

वर्तमान दौर में अरविंद केजरीवाल की स्थिति अपने दल, गठबंधन और राजनीति में उस मुकाम पर आ गई जहां से वे या तो सूर्यास्त की तरह गहरे अंधेरे में डूबते जा सकते हैं या सूर्योदय की तरह रात के अंधेरे की धूल झाडक़र पूरी ताकत से पुनर्वापसी कर सकते हैं। पहला रास्ता आसान है और दूसरा अत्यंत कठिन। अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी गलती यह है कि उसने अपने दल, अपने पुराने दोस्तों और विरोधियों से एक साथ इतने ज्यादा मोर्चे खोलकर अनगिनत दुश्मनियां पैदा कर ली हैं कि उन सबसे एक साथ पार पाना असंभव नहीं तो मुश्किल बहुत होगा। इस दौरान नेता के रूप में केजरीवाल की विश्वसनियता लगभग नकारात्मक हो गई है। जब कोई अपने घर में ही अविश्वसनीय हो जाता है तो उसे समाज का विश्वास अर्जित करने के लिए सामान्य से कहीं अधिक प्रयास करने पड़ते हैं। केजरीवाल ने अपने दल के बाहर गठबंधन के साथियों में सबसे बड़े दल कांग्रेस को हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगातार दो बार नाराज किया है जिसका खामियाजा उन्हें काफी समय भुगतना पड़ सकता है।

अपने दल और अपने गठबंधन के साथियों में अविश्वसनीय हुए केजरीवाल को और उनके दल को केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पंजाब में घेरने के लिए शायद ही कोई कमी छोड़ेगी। पंजाब निकट भविष्य में में तमाम केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर रहेगा।भारतीय राजस्व सेवा के दौरान केजरीवाल की निश्चित रूप से ईमानदार छवि थी लेकिन उन दिनों भी उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा की लहरें हिलोरे मारती थीं जो अन्ना हजारे आंदोलन के बाद अचानक सत्ता में आकर ज्वार बन गई थी।अन्ना हजारे,  और संतोष हेगडे जैसे मार्गदर्शक साथियों से किनारा कर उन्होंने चाटुकारों से घिरना ज्यादा पसंद किया। दिल्ली विधानसभा फतह के बावजूद राजनेता के रूप में यहीं से केजरीवाल की व्यक्तिगत गिरावट शुरू हो गई थी जो गांधी और उनकी सादगी को अलविदा कहने से गर्त में पहुंच गई। केजरीवाल की कथनी और करनी के बीच की खाई इतनी चौड़ी और गहरी हो गई कि उसने केजरीवाल से दिल्ली के सिंहासन के साथ साथ उनकी विधायकी भी छीन ली। ऐसी स्थिति में अपने दल पर भी उनकी पकड़ हल्की होगी। गिरावट के इतने हलकों को एक साथ पाटने के लिए केजरीवाल को बहुत लंबी और घोर साधना की जरूरत पड़ेगी।

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