विचार / लेख

-जितेश्वरी साहू
कभी-कभी, जि़ंदगी हमें ऐसे रास्तों पर ले जाती है जहाँ हम उनसे दूर हो जाते हैं जो हमारे दिल के सबसे करीब होते हैं। यह दूरी शारीरिक हो सकती है, लेकिन क्या यह दिलों के बीच के उस अदृश्य धागे को भी तोड़ सकती है जो बरसों के साथ ने बुना होता है? ‘द जापानीज़ वाइफ़’ फि़ल्म मुझे अक्सर उस अनकहे प्रेम की याद दिलाती है जो दूरियों में भी उतना ही सच्चा और गहरा होता है जितना पास रहने पर। इस फिल्म के केंद्र में जापान की मियागी और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में रहने वाले स्नेहमोय की प्रेम कथा है। मियागी और स्नेहमय ने कभी एक-दूसरे को छुआ भी नहीं, फिर भी उनका प्यार हर बंधन से परे था। यह दिखाता है कि प्रेम की असली पहचान शारीरिक नज़दीकी नहीं, बल्कि दो आत्माओं का गहरा जुड़ाव है।
जि़ंदगी के सफर में, हम कई मोड़ देखते हैं। कुछ मोड़ ऐसे होते हैं जहाँ रास्ते अलग हो जाते हैं, लेकिन यादें हमेशा साथ चलती हैं। वह हर लम्हा जो हमने साथ बिताया होता है, वह हमारे दिल में एक अनमोल खज़ाने की तरह सुरक्षित रहता है। दूरियाँ उस खजाने को और भी कीमती बना देती हैं। पर इस फिल्म में नजदीकियां थी तो केवल उन दोनों के पत्रों में लिखे उस प्रेम का जिसमें एक दूसरे के हाथों की छुअन का अहसास नहीं था बल्कि दो अदृश्य आत्माओं के मिलन का अहसास था। दोनों ने पत्रों के माध्यम से एक-दूसरे को जाना, समझा और उसी में एक दूसरे के हो गए। दूरियां गौण हो जाती है जब रूह एक-दूसरे के बहुत नजदीक आ जाती है।
दूरी सिर्फ एक भौगोलिक सत्य है, यह भावनाओं की गहराई को कभी कम नहीं कर सकती। सच्चा प्रेम समय और स्थान की सीमाओं से परे होता है। यह एक ऐसी लौ है जो दूर रहकर भी उतनी ही रोशन रहती है, शायद और भी ज़्यादा, क्योंकि दूर रहकर हम उसकी असली कीमत समझते हैं। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो शब्दों के मोहताज नहीं होते। भावनाएं इतनी गहरी होती हैं कि वे ख़ामोशी में भी अपना रास्ता ढूंढ लेती हैं। एक अनदेखी समझ, एक अनकहा एहसास, जो सिर्फ दो दिलों के बीच ही मौजूद होता है।
अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित यह फिल्म प्रेम को एक अलग रूप में चित्रित करती है। जहां कुछ भी बदल जाए, सब कुछ दूर हो जाए, पर कुछ भावनाएं हमेशा वैसी ही रहती हैं अटूट और शाश्वत।