विचार / लेख

"साल 2019-20 में छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य पर 9,906 करोड़ रुपये खर्च किये गये, प्रतिव्यक्ति 3,416 रुपये. यह राज्य जीडीपी का 2.9 % का था. जिसमें से छत्तीसगढ़ सरकार ने 1.5 % याने 52.4 % खर्च किया जो 5,190 करोड़ रुपयों का था. जबकि छत्तीसगढ़ की जनता को 3,634 करोड़ खर्च करने पड़े जोकि 36.7 % का होता है. यह राज्य जीडीपी का 1.1 % है. इस तरह से जनता ने प्रतिव्यक्ति 1,253 रुपये खर्च किये. बाकी का 0.3 % अन्य स्त्रोतों से खर्च किये गये. इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2022-23 में प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय दूसरा अग्रिम अनुमान के अनुसार 1,72,000 रुपये याने प्रतिमाह 14,333 रुपये है. इसमें से 1,253 रुपये स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ता है वह भी 2019-20 के आंकड़ें के अनुसार."
-जे के कर
केन्द्र सरकार ने साल 2025-26 का आम बजट पेश कर दिया है. अमृतकाल के इस बजट के स्वास्थ्य बजट में जीवनामृत याने जरूरत के मुताबिक पर्याप्त धन का अभाव है. साल 2024-25 में स्वास्थ्य बजट रिकवरी को छोड़कर (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण+स्वास्थ्य रिसर्च+आयुष) 93471.76 करोड़ रुपयों का था, उसकी तुलना में साल 2025-26 का स्वास्थ्य बजट रिकवरी को छोड़कर (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण+स्वास्थ्य रिसर्च+आयुष) 103851.46 करोड़ रुपयों का है. इस तरह से मात्र 11.10 % की बढ़ोतरी की गई है जोकि बढ़ती महंगाई को देखते हुये नाकाफी है. इसकी तुलना हम गोल्ड स्टैंडर्ड से कर के देखते हैं. 31 जनवरी'2024 के दिन 24 कैरेट के 10 ग्राम सोने की कीमत 63,970 रुपये थी और 31 जनवरी'2025 के दिन इसी 10 ग्राम सोने की कीमत 83,203 रुपये की रही है. इस तरह से सोने के दाम में 30.06 % की बढ़ोतरी हुई है. चिकित्सा के बढ़ते खर्च मसलन दवाओं के बढ़ते दाम, उपकरणों के बढ़ते दाम, विभिन्न जांचो के बढ़ते दाम, सर्जरी के बढ़ते दाम, चिकित्सकों के बढ़ते फीस, अस्पताल के बिस्तरों के बढ़ते किराया के चलते, बजट में की गई बढ़ोतरी नाकाफी सिद्ध होती है.
केन्द्रीय बजट के एक दिन पहले संसद में पेश आर्थिक सर्वे 2024-25 के अनुसार साल 2021-22 में हमारे देश में (केन्द्र+राज्य सरकारें) ने स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पादन का 1.87 % खर्च किया था. इसी साल जनता को अपने जेब से स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.51% खर्च करना पड़ा. बता दें के आर्थिक सर्वे 2024-25 के अनुसार साल 2021-22 में हमारे देश में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 3.8% खर्च किया गया. जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक हमारे जैसे देश में स्वास्थ्य पर सरकार (केन्द्र+ राज्य सरकारों) द्वारा 6 % तक खर्च किया जाना चाहिये. बता दें कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक सकल घरेलू उत्पादन या जीडीपी का 2.5% स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च का लक्ष्य रखा गया है. वैसे भी कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुसार सरकार को जनता के स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करना चाहिये. यदि जनता स्वस्थ्य नहीं होगी तो मजबूत राष्ट्र के निर्माण का दावा किस आधार पर किया जा सकता है. हमारे देश में कोई बहुत अमीर है तो कोई इतना गरीब कि उसके लिये अपने लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. इस कारण से राज्य ( अर्थात् सरकार) की जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करें. वैसे भी मानव समाज के विकास क्रम में राज्य की उत्पत्ति समाज में असमानता के बावजूद उसे चलायमान रखने के लिये हुई थी.
आइये स्वास्थ्य पर जीडीपी का खर्च कैसे होता है उसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं. केन्द्र सरकार द्वारा ताजा जारी नेशनल हेल्थ प्रोफाईल'2023 के अनुसार जिसमें साल 2019-20 का आंकड़ा दिया गया है, स्वास्थ्य पर जीडीपी का 3.27 % खर्च किया गया. जिसमें सरकार (केन्द्र+राज्य सरकारें) की भागीदारी 41.4 % थी. यह जीडीपी का 1.35 % का होता है. इसे केन्द्र सरकार की भागीदारी 35.8 % तथा सभी राज्य सरकारों की भागीदारी 64.2 % की थी. इस कारण से जनता को अपनी जेब से 1.54 % अर्थात् प्रतिव्यक्ति 2,289 रुपये खर्च करने पड़े. वहीं आर्थिक सर्वे 2024-25 के अनुसार साल 2021-22 में स्वास्थ्य पर कुल खर्च का सरकार ने 48% तथा जनता ने 39.4% खर्च किया.
राज्य सरकारें अपने बजट का कितना स्वास्थ्य पर खर्च करती हैं उसे छत्तीसगढ़ के उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं. साल 2019-20 में छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य पर 9,906 करोड़ रुपये खर्च किये गये, प्रतिव्यक्ति 3,416 रुपये. यह राज्य जीडीपी का 2.9 % का था. जिसमें से छत्तीसगढ़ सरकार ने 1.5 % याने 52.4 % खर्च किया जो 5,190 करोड़ रुपयों का था. जबकि छत्तीसगढ़ की जनता को 3,634 करोड़ खर्च करने पड़े जोकि 36.7 % का होता है. यह राज्य जीडीपी का 1.1 % है. इस तरह से जनता ने प्रतिव्यक्ति 1,253 रुपये खर्च किये. बाकी का 0.3 % अन्य स्त्रोतों से खर्च किये गये. इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2022-23 में प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय दूसरा अग्रिम अनुमान के अनुसार 1,72,000 रुपये याने प्रतिमाह 14,333 रुपये है. इसमें से 1,253 रुपये स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ता है वह भी 2019-20 के आंकड़ें के अनुसार.
हमारे देश में स्वास्थ्य पर वित्तीय आवंटन 'आर्थिक सहयोग और विकास संगठन' (Organisation of Economic Co-operation and Development- OECD) देशों के औसत 7.6 % और ब्रिक्स (BRICS) देशों द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर औसत खर्च 3.6 % की तुलना में काफी कम है. इसी कारण से हमारे देश में ‘आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर’ (OOPE) के मामले में विश्व के शीर्ष देशों में शामिल है. एक अनुमान के अनुसार, हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर लगभग 62 % के करीब है, जो वैश्विक औसत 18 % का लगभग तीन गुना अधिक है.
आइये एक नज़र अपने पड़ोसी देशों तथा दुनिया के विकसित देशों द्वारा स्वास्थ्य पर अपने जीडीपी का कितना खर्च किया जाता है पर डालते हैं. साल 2021 में बंग्लादेश ने 2.36, भूटान ने 3.85, चीन ने 5.38, भारत ने 3.28, नेपाल ने 5.42, पाकिस्तान ने 2.91 तथा श्रीलंका ने 4.07 % खर्च किये. यह आंकड़ा विश्वबैंक समूह का है. इसी तरह से क्यूबा ने 13.79, अमरीका ने 16.57, इग्लैंड ने 11.34 तथा फ्रांस ने 12.31 % खर्च किये थे.
बता दें कि OECD देशों पर किये गये एक अध्धयन से पता चला है कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च 1 % बढ़ाने से शिशु मृत्यु दर 0.21 % कम होती है तथा जीवन प्रत्याशा (life expectancy) 0.008 % बढ़ जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के साल 2021 के आकड़ों के अनुसार भारत की जीवन प्रत्याशा 67.3 वर्ष है, अर्थात् भारत के लोग 67.3 वर्ष जीते हैं. भूटान की 74.9 वर्ष, चीन की 77.6 वर्ष, नेपाल की 70 वर्ष, पाकिस्तान की 66 वर्ष, श्रीलंका की 77.2 वर्ष, बांग्लादेश की 73.1 वर्ष है. इसी तरह से क्यूबा की 73.7 वर्ष, अमरीका की 76.4 वर्ष, इग्लैंड की 80.1 वर्ष तथा फ्रांस की 81.9 वर्ष है.
गौर करने वाली एक बात और है. स्वास्थ्य पर पर्याप्त बजट का आबंटन नहीं किया जाता है उस पर आबंटित बजट से कम खर्च भी किया जाता है. जिसका तात्पर्य यह है कि जनस्वास्थ्य प्राथमिकता के एजेंडे में नहीं है. हाल के वर्षो में केवल कोविड 19 के समय दो साल खर्च ज्यादा किया गया था बाकी के समय पूरे रकम को खर्च नहीं किया गया. सेंटर फार डेवलेपमेंट पालिसी एंड प्रैक्टिस के एक अध्धयन के अनुसार साल 2010-11 में बजट प्रस्ताव का 82 % उपयोग किया गया था. इसी तरह से साल 2011-12 में 82 %, साल 2012-13 में 82 %, साल 2013-14 में 82 %, साल 2014-15 में 87 %, 2015-16 में 103 %, 2016-17 में 102 %, 2017-18 में 109 %, 2018-19 में 100 %, 2019-20 में 100 %, 2020-21 में 121 %, 2021-22 में 114 %, 2022-23 में 87 % आबंटित बजट का उपयोग किया गया.
भारत में मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी गैर-संचारी बीमारियां (एनसीडी) तेजी से फैल रही हैं. एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर-संचारी रोग देश के कुल रोग भार में संचारी रोगों पर भारी पड़ रहे हैं. गैर-संचारी रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नान कम्यूनिकेबल (non-communicable) बीमारियां 30 से बढ़कर 55 फीसद तक पहुंच गई हैं. जाहिर है कि इनके ईलाज पर खर्च करना पड़ता है.
आज आप किसी भी घर में जायेंगे तो मधुमेह, उच्चरक्तचाप, दमा, किडनी के रोगी, पेटरोग के रोगी कई मिल जायेंगे. इसलिये जरूरत है कि सरकार अपने स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी करें. लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है. एक तरफ स्वतंत्रता का अमृतकाल मनाया जा रहा है तो दूसरी तरफ जनस्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अच्छा स्वास्थ्य एक बिकाऊ वस्तु बनकर रह गई है जिसके लिये अपने पाकेट से खर्च करना पड़ रहा है. यहां पर इस बात का उल्लेख करना गलत न होगा कि जो लोग बजट बनाते हैं उन्हें अपने जेब से स्वास्थ्य के लिये खर्च नहीं करना पड़ता है. इसके अलावा हमारे देश में बीमार लोग या जनस्वास्थ्य वोट बैंक नहीं हैं और न ही चुनावी मुद्दा है, इस कारण उन पर बजट बनाते समय ध्यान नहीं दिया जाता है. इस कारण से 'सबके स्वास्थ्य का विकास' नहीं हो पा रहा है.