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शेयर बाज़ार में निवेशकों के लाखों करोड़ डूबे, विशेषज्ञों ने बताया क्यों घबरा रहे हैं लोग
29-Jan-2025 3:54 PM
शेयर बाज़ार में निवेशकों के लाखों करोड़ डूबे, विशेषज्ञों ने बताया क्यों घबरा रहे हैं लोग

-दिनेश उप्रेती

साल 2024 में आखिरी के दो-तीन महीनों में भारतीय शेयर बाजारों में उठापटक शुरू हो गई थी।

26 सितंबर 2024 को सेंसेक्स 85,836 की ऊँचाई पर था और अब हाल ये है कि टूटते-टूटते ये ऊँचाई 75 हजार के आंकड़े के आस-पास पहुँच गया है।

नए साल में दलाल स्ट्रीट पर मंदडिय़ों का कब्ज़ा सा हो गया लगता है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक यानी एफपीआई का शेयर बेचकर निकलने का सिलसिला जारी है।

जनवरी में अभी तक एफपीआई ने 69 हज़ार करोड़ रुपये की बिकवाली की, हालाँकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (म्यूचुअल फंड्स) ने इसी दौरान 67 हजार करोड़ रुपये की खरीदारी कर बाजार को काफी सहारा दिया।

किन शेयरों में है बिकवाली

हालाँकि बाजार में चौतरफा बिकवाली है, लेकिन सबसे ज़्यादा गिरावट छोटे और मझौले शेयरों (मिडकैप और स्मॉलकैप) में है।

सोमवार को कारोबारी सत्र के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का मिडकैप इंडेक्स 3 फीसदी टूट गया, जबकि स्मॉलकैप इंडेक्स में 4 फीसदी की गिरावट आ गई।

बाजार अभी दो अहम घटनाओं पर टिकटिकी लगाए हुए है। पहला, 29 जनवरी को अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिज़र्व की बैठक में ब्याज दरों को लेकर क्या फ़ैसला होता है, और दूसरा भारत का केंद्रीय बजट जो एक फऱवरी को संसद में पेश होगा।

अमेरिका में फेडरल रिज़र्व ने अगर ब्याज दरों में बढ़ोतरी की तो दुनियाभर के बाज़ारों की मुश्किलें बढऩी तय हैं, वैसे भी विदेशी निवेशकों ने भारत समेत कई उभरते बाज़ारों से कन्नी काट ली है और इस सूरत में वो अधिक और सुरक्षित रिटर्न की चाह में अमेरिका का रुख़ करने में देरी नहीं करेंगे।

हालाँकि डीआर चोकसी फिनसर्व के मैनेजिंग डायरेक्टर देवेन चोकसी का मानना है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ये संभावना बहुत कम है कि फेड रिज़र्व ब्याज दरों में इजाफ़ा करेगा। देवेन ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘राष्ट्रपति ट्रंप का जो रुख़ रहा है उसके हिसाब से वो नहीं चाहेंगे कि फेडरल रिज़र्व ब्याज दरें बढ़ाए।’

क्यों टूट रहे बाजार

बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा बाजार के मौजूदा हालात की कई वजह बताते हैं।

अंबरीश कहते हैं, ‘पिछले कुछ समय से भारत में आर्थिक स्थितियां बदली हैं। निजी एजेंसियों ने ही नहीं, भारत सरकार और रिजर्व बैंक ने जीडीपी ग्रोथ अनुमान घटाए हैं। खाद्य महंगाई दर अब भी काफी अधिक है। कंपनियों के जो तिमाही नतीजे आ रहे हैं, वो भी अधिकतर निराश करने वाले हैं।’

देवेन चोकसी बाज़ार के इस निगेटिव सेंटिमेंट के लिए बाजार नियामक संस्था सेबी के वायदा बाज़ार से जुड़े नए दिशा निर्देश को भी जि़म्मेदार बताते हैं। देवेन ने कहा, ‘सेबी ने हाल ही में फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए न्यूनतम कॉन्ट्रैक्ट साइज़ को काफ़ी बढ़ा दिया है और इसे 15 लाख रुपये कर दिया है।’

देवेन कहते हैं, ‘इसके पीछे सेबी की मंशा रिटेल निवेशकों की एफएंडओ में बेतहाशा गतिविधि पर लगाम लगाना है। कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाकर सेबी बाजार में स्थायित्व लाने की कोशिश कर रहा है।’

सेबी ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें दावा किया गया था कि वित्तीय वर्ष 2022 से वित्तीय वर्ष 2024 तक तीन साल में एक करोड़ से अधिक ट्रेडर्स ने एफ़एंडओ में नुकसान उठाया। अगर प्रति ट्रेडर्स नुकसान की बात करें तो ये औसतन दो लाख रुपये रहा।

बजट से उम्मीदें और बाजार की चाल

तो क्या एक फरवरी को पेश होने वाले बजट को लेकर भी क्या बाजार अपनी दिशा बदल रहा है? अंबरीश बालिगा इससे सहमत नहीं दिखते।

उनका कहना है, ‘वैसे भी पिछले 8-10 साल से बजट नॉन इवेंट बन गया है। इसमें हुई घोषणाओं का असर एक-दो दिनों तक ही रहता है। पॉलिसी से जुड़ी कई घोषणाएं सरकार समय-समय पर करती रहती है और उसके लिए बजट का इंतजार नहीं करती। इसके अलावा जीएसटी दरों का फैसला भी समय-समय पर होता ही रहता है।’

अंबरीश कहते हैं कि कैपिटल गेन्स टैक्स के मामले में सरकार पिछले बजट में ही अहम फ़ैसला कर चुकी है, ऐसे में इसमें और बदलाव होने की गुंजाइश नहीं है।

अंबरीश ने कहा, ‘रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में बजट 8 से 10 फीसदी तक बढ़ सकता है, लेकिन समस्या है इन योजनाओं को लागू करने की। क्रियान्वयन तेज़ हो इसके प्रयास होने चाहिए।’

देवेन चोकसी कहते हैं, ‘बजट में बाजार के लिए कुछ निगेटिव होगा, ऐसा लगता नहीं है।"

क्या निवेशकों में डर है?

पिछले साल यानी 2024 भारतीय शेयर बाजारों के लिए इसलिए भी खास रहा कि रिटेल निवेशकों ने अपनी भागीदारी बढ़ाई। सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी सिप के जरिये बाजार में जमकर पैसा आया और शेयरों के भाव खूब बढ़े।

अंबरीश बालिगा कहते हैं, ‘जब फंड मैनेजर्स के पास इतनी बड़ी रकम आई तो वो कैश तो अपने पास रख नहीं सकते थे, लिहाजा उन्होंने शेयर खरीदे और कह सकते हैं कि शेयरों की वैल्यू बहुत महंगी हो गई।’

तो क्या इस गिरावट से रिटेल निवेशक घबरा जाएंगे या बाज़ार से हट जाएंगे? इस सवाल पर अंबरीश बालिगा कहते हैं, ‘बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक बेचकर निकल रहे हैं। रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन असलियत ये है कि पिछले चार सालों में इनमें से अधिकतर निवेशक पहली बार बाजार का ये रूप (लगातार गिरावट) देख रहे हैं।’

अंबरीश का कहना है कि छोटे निवेशक घबरा गए हैं या अपना निवेश रोक रहे हैं, ये तो आधिकारिक तौर पर जनवरी महीने के आंकड़ों से पता चल पाएगा, लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ समय से नए निवेशक बाज़ार में आए हैं, उनमें घबराहट होना स्वाभाविक है।  (bbc.com/hindi)


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