विचार / लेख

मध्यप्रदेश सरकार के माथे पर लगा भ्रष्टाचार का कलंक
25-Dec-2024 6:33 PM
मध्यप्रदेश सरकार के माथे पर लगा भ्रष्टाचार का कलंक

-डॉ. आर.के. पालीवाल

एक सप्ताह पहले मध्य प्रदेश सरकार अपने एक साल की उपलब्धियों के ढोल पीट रही थी। इसी के तुरंत बाद अब पिछले एक सप्ताह से तमाम अखबारों, चैनलों और सोशल मीडिया पर आयकर विभाग और लोकायुक्त की दो कार्यवाहियों से जिस तरह से काले धन , सोने, चांदी और बेनामी दिखती संपत्तियों और काली कमाई की डायरियों के समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं उससे साफ जाहिर हो रहा है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की सरकारी गर्जनाओं के बावजूद सरकार की नाक के नीचे राजधानी भोपाल में भ्रष्टाचार से अर्जित काले धन के ढेर घरों , दफ्तरों और जंगल किनारे बने फॉर्महाउस में छिपाई गई कार से निकल निकल कर सरकार के माथे पर कलंक की तरह चिपक रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में सरकार के साथ साथ सरकार की इंटेलीजेंस एजेंसीज, जांच एजेंसियों और पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी कई प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं। और इस सबके बावजूद सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित विभागों के मंत्रियों और भारतीय जनता पार्टी संगठन के पदाधिकारियों की चुप्पी चौंकाने वाली है। विपक्षी दल जरूर इस अवसर को भुनाने के लिए विधानसभा सत्र के दौरान इस मुद्दे पर सरकार के पूर्व चीफ सेक्रेटरी और परिवहन विभाग के मंत्रियों और अफसरों पर संगीन आरोप लगा रहे हैं। प्रदेश सरकार के साथ साथ काले धन की इतनी मात्रा में बरामदगी केंद्र सरकार के काले धन के खिलाफ की गई नोटबंदी समेत कई घोषणाओं का भी मखौल उड़ा रही है। ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश सरकार पूरी तरह बैकफुट पर आ गई और किंकर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में है जहां यह समझ में नहीं आता कि इस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए! छापों के कई दिन बाद मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का वही घिसा पिटा राग अलापा है।

ज्यादा समय नहीं हुआ जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास ही नशे की सामग्री बनाने वाली बड़ी फैक्ट्री का भंडाफोड़ गुजरात की जांच एजेंसी द्वारा किया गया था। तब भी मध्य प्रदेश सरकार, उसकी खुफिया एजेंसियों और पुलिस प्रशासन पर निष्क्रियता के आरोप लगे थे। अब काले धन कांड ने मध्य प्रदेश की गरीब जनता को चौंका दिया है।

जिस प्रदेश की लगभग तीन चौथाई आबादी गरीबी का दंश झेलकर मुफ्त राशन की लाइन में लगने की जिल्लत उठा रही हो वहां कुल जमा छह सात साल परिवहन विभाग में सिपाही की नौकरी लेकर इस्तीफ़ा देने वाले युवा सौरभ शर्मा के यहां से सैकड़ों करोड़ की नगदी, सोना, चांदी और संपत्तियों का निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं है। सच तो यह है कि कोई सिपाही छह साल तो क्या अपने पूरे जीवन में भी भ्रष्टाचार कर सौ करोड़ नहीं कमा सकता। यह तभी संभव है जब उसे महकमे के बड़े अफसरान या मंत्रियों आदि का वृहदहस्त प्राप्त हो। जिस तरह की खबरें आ रही हैं उनसे यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि सौरभ शर्मा को बहुत ऊपर का संरक्षण मिल रहा था तभी वह धड़ल्ले से इनोवा कार पर हूटर और परिवहन विभाग की नेम प्लेट का इस्तेमाल कर रहा था। जो ट्रैफिक पुलिस जगह जगह चौराहों पर हेलमेट, सीट बेल्ट और पॉल्यूशन सर्टिफिकेट न होने या नंबर प्लेट का साइज सही न होने पर हजारों चालान काटती है वह पुलिस व्यक्तिगत नंबर की कार पर हूटर का चालान नहीं कर पाई।

ऐसे भी समाचार प्रकाशित हुए हैं कि पुलिस ने इस गाड़ी की तलाशी नहीं ली। यदि कोई गाड़ी संदिग्ध अवस्था में पाई जाती है तो उसकी तलाशी की ड्यूटी पुलिस की ही है। आयकर या अन्य विभाग को तभी बुलाया जाता है जब कार से कोई ऐसी चीज बरामद होती है जिसकी कार्यवाही का क्षेत्राधिकार पुलिस के पास नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि सौरभ शर्मा किसी शक्तिशाली व्यक्ति का मोहरा या बेनामी है तभी उसका ऐसा रुतबा है और इसी वजह से उसके पास से इतनी दौलत मिली है। ऐसे मामलों की जांच यदि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी तो इस मामले की सच्चाई सामने आने की संभावना काफी बढ़ जाएगी।


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