विचार / लेख
-सुमेधा पाल
वैसे तो भारत की राजधानी दिल्ली और सीरिया की राजधानी दमिश्क के बीच हज़ारों किलोमीटर की दूरी है। लेकिन, सीरिया के घटनाक्रम पर दिल्ली की नजऱ भी बनी हुई है।
सीरिया लंबे समय से भारत का सहयोगी रहा है और यहां के घटनाक्रम केवल मध्य पूर्व तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ये अप्रत्याशित तरीकों से भारत को भी प्रभावित कर सकते हैं।
भारत और सीरिया के बीच संबंध दोस्ताना ही रहे हैं। सीरिया में बशर अल-असद शासन का अंत एक अहम घटनाक्रम है, जो न केवल भारत-सीरिया के रिश्तों को प्रभावित करेंगे बल्कि व्यापक रूप से देखें तो ये तेज़ी से दो प्रतिस्पर्धी ध्रुवों में बंटती दुनिया के लिए महत्वपूर्ण पल है।
सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों ने रविवार को राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बाहर करने की घोषणा की। विद्रोहियों के दमिश्क पर नियंत्रण होने के बाद असद ने रूस में शरण ली है। इसके साथ ही देश में 13 साल के गृहयुद्ध का अंत हो गया।
भारत-सीरिया संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
असद का पतन और उसके बाद की अनिश्चितता इस क्षेत्र में भारत के राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए चिंता का कारण बन रही हैं।
भारत और सीरिया के बीच द्विपक्षीय संबंध पश्चिम एशिया में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के समय से ही रहे हैं। दोनों देशों के बीच प्राचीन सभ्यताओं का भी मेल-मिलाप रहा है।
भारत और सीरिया के राष्ट्राध्यक्षों के बीच द्विपक्षीय दौरे की शुरुआत 1957 में हुई, जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वहां गए थे। उसी साल सीरिया के राष्ट्रपति शुक्री अल-कुएतली ने नई दिल्ली यात्रा की थी।
भले ही खाड़ी देशों की तरह सीरिया में भारत की एक बड़ी आबादी नहीं रह रही हो, लेकिन भारत ने हमेशा बशर अल-असद के शासन के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे।
सीरिया में गृहयुद्ध की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन भारत के सीरिया में असद सरकार के साथ संबंध बरकरार रहे। भारत ने लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अनुसार सीरिया के नेतृत्व में संघर्ष के समाधान का समर्थन किया है।
भारत ने सीरिया के गृह युद्ध के चरम के दौरान भी दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा। अब जब गृह युद्ध ख़त्म हो गया है, तो भारत के सामने नई चुनौतियां आ गई हैं।
सीरिया:कश्मीर पर भारत का सहयोगी
असद परिवार (पहले हाफिज़़ अल-असद और बाद में बशर अल-असद के शासन में) हमेशा ही अहम मुद्दों ख़ास तौर पर कश्मीर के मामले में भारत का समर्थक रहा है।
जब कई इस्लामिक देश कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के रुख़ के साथ खड़े थे, तब सीरिया उन चुनिंदा देशों में शामिल था, जो भारत के साथ था।
असद परिवार का धर्मनिरपेक्ष शासन भारत के अपने सिद्धांतों के साथ मेल खाता था, जिससे सहयोग के लिए एक मज़बूत आधार बना।
2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था, जिसे सीरियाई सरकार ने भारत का ‘आंतरिक मामला’ बताया था।
भारत भी ऐतिहासिक तौर पर गोलान हाइट्स पर सीरिया के दावे का समर्थन करता रहा है, जबकि इसराइल इसके खिलाफ रहा है।
बशर अल-असद का पतन सीरिया में आईएसआईए समेत अन्य चरमपंथी समूहों के उभार का कारण भी बन सकता है। जब इस्लामिक स्टेट की ताकत चरम पर थी, तो रूस और ईरान के समर्थन से सीरिया ने इसकी ताकत ख़त्म की थी।
बदले हालात में भारत के लिए इस्लामिक स्टेट जैसे गुट ख़तरा हैं।
मध्य पूर्व के विशेषज्ञ कबीऱ तनेजा (ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन) ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, ‘भारत का दृष्टिकोण हमेशा यह रहा है कि भले ही सीरिया में घरेलू समस्याएँ हों लेकिन हमारे पास 'प्लान बी' होना चाहिए।’
‘हमें एक और लीबिया की स्थिति नहीं चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश, मुझे लगता है कि यही सीरिया की दिशा है, और यह वही ट्रेंड है, जिसे भारत अफग़़ानिस्तान में 2021 में देख चुका है।’
तनेजा ने यह भी कहा, ‘मुझे लगता है कि भारत अपने संबंध बनाए रखने की कोशिश करेगा। चाहे वह तालिबान का कब्ज़ा हो, या एचटीएस का दमिश्क पर कब्जा। ये आतंकवादी संगठन अंतत: सरकार चला रहे हैं।’
‘चिंता ये है कि अगर भारत एचटीएस से बात करना शुरू करता है, तो कल कश्मीर में आतंकवादी संगठन यह कह सकते हैं कि आप उनसे बात कर रहे हैं, तो हमसे क्यों नहीं? यह एक बहुत ही नाजुक संतुलन है, जिसे भारत को बनाए रखना होगा।’
आर्थिक साझेदारी
कूटनीति के अलावा, भारत-सीरिया संबंधों में आर्थिक सहयोग और व्यापार भी एक बड़ा आधार है।
भारत से सीरिया को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में कपड़े, मशीनरी, और दवाइयां शामिल हैं, जबकि वहां से आयात किए जाने वाले उत्पादों में कच्चे माल जैसे रॉक फॉस्फेट और कपास शामिल है।
भारत ने कई क्षेत्रों में सीरिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें पावर प्लांट के लिए 240 मिलियन अमेरिकी डॉलर का क्रेडिट, आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टील प्लांट आधुनिकीकरण, तेल क्षेत्र में सहयोग, चावल, दवाइयां और वस्त्रों के महत्वपूर्ण निर्यात शामिल हैं।
जुलाई 2023 में, तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने दमिश्क का एक महत्वपूर्ण मंत्री स्तरीय दौरा किया था। भारत ने सीरिया के तेल क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण निवेश किए हैं।
पहला 2004 में ओएनजीसी और आईपीआर इंटरनेशनल के बीच तेल और प्राकृतिक गैस की तलाश के लिए करार है।
दूसरा ओएनजीसी और चीन के सीएनपीसी द्वारा सीरिया में एक कनाडाई कंपनी में 37 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए किया गया एक संयुक्त निवेश।
साल 2008 में, बशर अल-असद भारत के दौरे पर आए थे। जहां उन्होंने कृषि सहयोग और सीरिया के फॉस्फेट संसाधनों पर अध्ययन करने की योजनाओं को मंजूरी दी थी।
भारत ने सीरिया में एक आईटी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का प्रस्ताव भी दिया था।
पश्चिम एशिया मामलों के जानकार डॉ। अशुतोष सिंह कहते हैं, ‘पूरा पश्चिम एशिया ज़्यादातर महाशक्तियों के लिए ‘गार्डन किचन’ है। भारत हमेशा गुटनिरपेक्ष आंदोलन और उपनिवेशी इतिहास के कारण, पश्चिम एशिया के अधिकांश देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखता है।’
‘भारत के लिहाज से देखें, तो सीरिया का घटनाक्रम भारत को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। आप जो सीरिया में कदम उठाएंगे, उनसे आपके ईरान के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे।’
‘और फिर ये इसराइल के साथ आपके रिश्ते प्रभावित करेगा। लेकिन यहां सबसे ज़्यादा दिक्कत इसराइल की भूमिका को लेकर है, जो अब गोलान हाइट्स बफऱ ज़ोन में प्रवेश कर चुका है।’
संतुलन की चुनौती
बशर अल-असद सरकार का पतन सीरिया की विदेश नीति और उसके सहयोगियों में बदलाव की वजह बन सकता है।
सीरिया के ऐतिहासिक रूप से रूस और ईरान के साथ मजबूत संबंध रहे हैं, ये दोनों देश भारत के भी प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं।
असद सरकार के पतन के बाद भारत के मिडिल ईस्ट के साथ खाड़ी देशों, ईरान और इसराइल के साथ संबंध भी नए सिरे से बनते हुए प्रतीत हो सकते हैं।
सीरिया में हुआ मौजूदा बदलाव भारत के लिए इन संबंधों की पेचीदगी को साध पाने में परेशानियां पैदा कर सकता है।
9 दिसंबर, 2024 को, विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें सीरिया की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
इस बयान में कहा गया कि भारत सीरिया में हो रहे घटनाक्रमों के मद्देनजर स्थिति की निगरानी रख रहा है। (bbc.com/hindi)