विचार / लेख
-अपूर्व गर्ग
पिछले बीस सालों में धीरे-धीरे रोमन हिंदी कहीं देव नागरी से ज़्यादा तो नहीं लिखी जा रही ?
हिंदी भाषी और देव नागरी में जो टाइप कर सकते हैं उनके मुकाबले सोचिये और कल्पना करिये घर की गृहणियों से लेकर बच्चे, युवा जो एक दूसरे से खटाखट स्मार्ट फ़ोन पर चैट करते हैं, इनकी संख्या कितनी है?
जरा सोचिये, आज जब चि_ियों से संवाद बंद हो चुका और पूरा संवाद मोबाइल से हो रहा कितने प्रतिशत लोग नागरी लिपि का इस्तेमाल कर रहे हैं?
जरा सोचिये , हिंदी भाषी और उर्दू भाषी इसमें पाकिस्तान को भी शामिल करिये कितने प्रतिशत लोग देवनागरी या अरबी लिपि का सॉफ्टवेयर रख टाइप करते हैं?
क्या हिंदुस्तान के उर्दूभाषी देवनागरी में टाइप कर संदेश भेजते हैं?
बात यही है कि आज जब कलम-कागज़ का प्रयोग कम हो चुका और डिवाइस से सम्प्रेषण हो रहा तो लिपि कौन सी है ?
अभिजात्य वर्ग तो मुख्यत: अंग्रेजी में करता है . हिंदी भाषी देवनागरी में और उर्दू भाषी भी उर्दू को देवनागरी में टाइप करते हैं पर एक सचाई है नयी पीढ़ी बड़ी तादाद में रोमन की तरफ मुड़ चुकी है। जबकि उसे स्कूल में रोमन सिखाया नहीं जाता। रोमन की कोई परीक्षा नहीं होती।
हिंदी अखबार रोमन में नहीं आते पर ‘ऑन लाइन वल्र्ड’ की लिपि रोमन बनती जा रही जरा गौर करिये !
मैं देवनागरी-अरबी या रोमन के इतिहास या भविष्य पर कुछ न कह कर सिर्फ यही रेखांकित कर रहा हूँ कि जिस रोमन लिपि को कल तक हमें समझने में तकलीफ होती थी .हम सब नापसंद करते रहे उसका प्रयोग कितना बढ़ चुका, सोचिये .एक समय 1935 से पहले जब नागरी तार प्रणाली विकसित नहीं हो पायी थी .लोग रोमन को समझते नहीं थे ऐसे समय एक दिन हिन्दी के साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य आचार्य किशोरी दास वाजपेयी ने एक तार रोमन लिपि में देखा lekh vapais bhejiye, sanshodhnarth इसकी देखा-देखी उन्होंने बधाई का तार भेजा अपने भतीजे के विवाह पर रोमन में ‘Badhai’ लिखकर।
अब वाजपेयी जी के भाई साहब के परिवार को ‘Badhai’ समझ न आई। उन्होंने अंग्रेजी की डिक्शनरी छान मारी पर अर्थ न मिला।
इसके बाद इन लोगों ने वाजपेयी जी को तार देकर पूछा क्या हुआ? क्या बात है ? तार समझ में न आया।
तब एक ‘Badhai’ शब्द समझ न आया और आज तो पूरी स्क्रिप्ट, लेख, संदेश रोमन में भेजे जा रहे ,अंग्रेजी की चटनी लगा के सोचिये लोग कितने अभ्यस्त हो गए ?


