विचार / लेख

हिंदुस्तान से तार्किकता खत्म होती जा रही है
04-Jul-2024 3:14 PM
हिंदुस्तान से तार्किकता खत्म होती जा रही है

सीटू तिवारी

 

3 करोड़ देवी देवता हैं भईया, ढोंगियों और रेपिस्टों के यहां जाकर क्या मिलता है?

बीती शाम अम्मा से बात हुई। बहुत नाराज और व्यथित थी। वजह थी हाथरस सत्संग। अम्मा का कहना था कि भगवान तो घर में है, हाथ जोड़ लो। ये मजमा लगाने की क्या जरूरत है?

बात सही थी और एक ऐसे देश के लिए और भी ज्यादा, जहां अगर कुछ हो जाए तो ना अस्पताल मिलेगा, ना पुलिस मिलेगी, ना अग्निशमन वाहन और भी ऐसा बहुत कुछ।

कुछ दिन पहले सहरसा गई थी। बिहार में खान पान मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से हमेशा से मुश्किल का सबब रहा है। खाना पीना हमें पसंद आता नहीं और खानपान के केन्द्र की साफ सफाई एक बड़ा इश्यू है मेरे लिए। खैर वहां स्टेशन के पास राजस्थान से आए लोगों ने एक अच्छी खाने की दुकान खोली है। दुकान अच्छी इसलिए क्योंकि रोज बनता है और रोज खप जाता है। रेस्टोरेंट वालों की तरह महीने भर की फ्रिज में रखी दाल नहीं खानी पड़ती है।

खाना सादा और अच्छा था, लेकिन काउंटर पर आसाराम का फोटो और उसकी किताबें लगा रखी थी। हमने वजह पूछी तो काउंटर पर बैठे श्रीमान ने आसाराम वाली किताबें बढ़ा दी। हमने लेने से इंकार किया और कहा, ये तो जेल में बंद है। तो श्रीमान का जवाब था – सब मीडिया वालों का किया धरा है।

हम वहां से चले आए लेकिन एक रेपिस्ट को किस तरह से लोग अपने दिल में सम्मान देते है, इस विचार से ही मुझे घिन आती है। लोगों की क्या कहे, बिहार सरकार के बिहार दिवस जैसे आयोजनों में कई दफे आसाराम वालों के बुक स्टॉल हमने देखे है। किस आधार पर सरकार उन्हें ये स्टॉल दे देती है?

अभी पटना के पास कोई बाबा आया था, सब पागल थे। नेता, अफसर, बाहुबली की बीबी से लेकर आमजन तक। क्या सारी तार्किकता को श्मशान घाट में भस्म कर आए है लोग? जो इन आयोजनों में चले जाते है। डेरा सच्चा सौदा, राम रहीम, निर्मल बाबा ये सब क्या करते है? मंदिरों के अलावा किसी ऐसे बाबा के केन्द्र पर जाने पर नशे में धुत ऊंघते लोग मिलेंगे।

ऐसे ही एक केन्द्र में अयोध्या में एक व्यास जी नाम का बाबा मिला था, जो गंजेड़ी था, नशे में धुत। कायदे से सिर उठाकर आंख में आंख मिलाकर बात तक नहीं कर सकता था। आलम ये था कि जरा सा धक्का दे दे तो नीचे लुढक़ जाए। लेकिन उसको छू भर लेने के लिए लोग मरे जा रहे थे। ऐसे नशेड़ी लोगों को अपना आराध्य क्यों बनाना, पूजा करनी है तो भगवान है, उनकी चालीसा और पूजन विधि की किताबें है। अपने आप कर लो भाई।

हिंदुस्तान से तार्किकता खत्म होती जा रही है और भीषण गर्मी में निकलती कलश यात्राएं, इग्जाम के वक्त शादियों का कानफोडू शोर, शिव चर्चा के नाम पर शोर और पापियों के सत्संग में उमड़ते लोग इसकी मिसाल हैं। जिसके सत्संग में हाथरस में लोग मरे, उस पर यौन शोषण का आरोप सहित छह केस है। औरत की इज्जत लूटने वाले का सत्संग सुनकर आप कौन से अच्छे मनुष्य बन जाएंगे। और आप अच्छे मनुष्य वैसे भी नहीं है क्योंकि आप भीड़ में तब्दील हो गए थे जिसने सैकड़ों को रौंद दिया।


अन्य पोस्ट