राजपथ - जनपथ
बृजमोहन के घर रौनक..
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के सरकारी बंगले में काफी समय बाद रौनक देखने को मिली। रविवार को बृजमोहन के बेटे अभिषेक की पुत्री के नामकरण संस्कार के मौके पर आयोजित रात्रिभोज में भाजपा के तमाम बड़े नेता जुटे। इसमें प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के साथ ही सौदान सिंह की जगह लेने वाले शिवप्रकाश भी शामिल हुए।
रात्रि भोज में करीब डेढ़ सौ लोग ही थे, जिसमें पार्टी के सभी विधायक, सीनियर नेता नंदकुमार साय और प्रदेश के पदाधिकारी भी थे। सबसे पहले शिवप्रकाश पहुंचे, उन्हें कोलकाता जाना था इसलिए वे बृजमोहन के परिवारों के सदस्यों से मेल मुलाकात कर जल्द निकल गए। प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी काफी देर तक बंगले में रहीं, और इस दौरान वे धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, और नारायण चंदेल से बतियाती रहीं।
पूर्व सीएम रमन सिंह भी रात्रि भोज में पहुंचे थे, लेकिन उस समय तक ज्यादातर नेता जा चुके थे। पुरंदेश्वरी को बंगले का वातावरण खूब भाया, और उन्होंने इसकी तारीफ भी की। ये अलग बात है कि उनके बंगले पर पहले काफी किचकिच हो चुकी है, और पार्टी के भीतर बृजमोहन विरोधियों ने पार्टी हाईकमान के संज्ञान में भी लाया है। दबी जुबान में भूपेश सरकार से सांठ-गांठ के आरोप भी लगे।
भाजपा सरकार के जाते ही स्वाभाविक तौर पर सभी मंत्रियों को बंगला छोडऩा पड़ा था। सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे। न सिर्फ उन्हें बंगला रखने दिया गया, बल्कि उनके ज्यादातर स्टॉफ को भी साथ रहने दिया गया। रमन सिंह को तो देरी से बंगला खाली करने पर काफी उलाहना झेलनी पड़ी थी। अब जब प्रदेश प्रभारी खुद बंगले की तारीफ कर रही हैं , तो बाकी की आलोचनाओं का फर्क नहीं पड़ता है।
मेले में दो गज की दूरी...
लोगों को एक जगह एकत्र होने की गतिविधियों पर कोरोना संक्रमण के चलते बीते साल बड़ी रोक रही। आज जब देश में एक ही दिन में 26 हजार से ज्यादा मामले आये, 161 मौतें दर्ज हो हुईं, तब भी दुबारा पकड़ रही जिन्दगी की रफ्तार पर कोई ब्रेक नहीं लगाना चाहता। कोरोना संकट दूसरी बार गहराने जा रहा है पर, किसी की भी राय नहीं बन रही है कि लॉकडाउन दोबारा हो, क्योंकि वह भी बेहद कष्टदायक है। बाजार, सार्वजनिक परिवहन सेवायें, फैक्ट्रियां, सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर, धर्मस्थल में गतिविधियों पर रोक लगाने की मन:स्थिति नहीं बन रही है। दूसरी लहर में सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि वे मजबूरी में लॉकडाउन करने का आदेश दे रहे हैं। लोग सावधानी रखें तो इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में राजिम मेला लगा, इसके अलावा भी अनेक गांवों, कस्बों में माघ मेले आयोजित किये गये। तब कोरोना के कम ही मामले थे। अब 18 मार्च से गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी में तीन दिन का मेला है। प्रशासन ने यह निर्देश तो निकाल दिया है कि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे, लोग दो गज शारीरिक दूरी, मास्क, सैनेटाइजर जैसे दूसरे नियमों का पालन करें। यह भी सलाह दी गई है कि लोग दर्शन करें, आशीर्वाद लें और लौट जाये। मेला स्थल पर रात्रि विश्राम न करें। कोई भी आयोजन जिसमें हजारों लोग शामिल हो रहे हों, प्रशासन के लिये इन नियमों का पालन कराना तो बेहद कठिन है। जरूरत लोगों को खुद ही सतर्क रहने और जिम्मेदारी समझने की है। उम्मीद कर सकते हैं कि जैसे बाकी धार्मिक, सामाजिक समारोहों में कोई सामूहिक कोरोना केस अब तक प्रदेश में नहीं आया, यह मेला भी बिना किसी चुनौती समाप्त होगा।
वहां स्टेडियम, यहां अस्पताल
अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर किया गया तो लोगों ने आपत्ति की और कहा कि यह तो सरदार पटेल का अपमान है। गुजरात सरकार की ओर से सफाई आई कि स्पोर्ट्स एनक्लेव का नाम तो अब भी सरदार के ही नाम पर है, उसके भीतर का मोंटेरा स्टेडियम, मोदी के नाम किया गया।
अब इसी तरह की बात जगदलपुर में भी हो गई है। यहां के मेडिकल कॉलेज का नाम स्व. बलिराम कश्यप के नाम पर भाजपा शासनकाल में रखा गया। पर अब यहां के हॉस्पिटल का नाम स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर कर दिया गया है। भाजपा ने इस पर विरोध दर्ज कराया है। प्रशासन का कहना है कि मेडिकल कॉलेज का नाम तो बदला ही नहीं गया। वह तो स्व. कश्यप के नाम पर पहले की तरह ही है। स्व. कर्मा का नाम तो उसके भीतर बनाये गये अस्पताल का रखा गया है। छत्तीसगढ़ के पहले, रायपुर के मेडिकल कॉलेज का नाम नेहरू के नाम पर है, लेकिन उसके अस्पताल का नाम आंबेडकर के नाम पर है.
वैसे स्व. कर्मा के चाहने वाले भी नाराज हैं मगर वजह दूसरी है। बस्तर विश्वविद्यालय का नाम कई माह पहले स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर करने की घोषणा की गई थी लेकिन अब तक सभी सरकारी पत्राचार बस्तर विश्वविद्यालय के नाम पर हो रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि जब तक अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित नहीं हो जाती, नाम नहीं बदला जा सकता। वैसे यह सहज सवाल उठता है कि जब केबिनेट की अगस्त 2020 में हुई बैठक में इस विषय पर प्रस्ताव पारित हो चुका है तो अब तक राजपत्र में प्रकाशन क्यों नहीं हुआ?
असम इतना करीब कभी नहीं लगा
छत्तीसगढ़ से असम पहले कभी इतना करीब महसूस नहीं हुआ। कांग्रेस नेताओं का जिस रफ्तार से आना जाना इन दिनों हो रहा है उससे लग रहा है कि गुवाहाटी कितना नजदीक है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले भी वहां का दौरा चुनाव अभियान के सिलसिले में कर चुके हैं और इस समय तीन दिन के लिये फिर वहां है और चुनावी सभायें ले रहे हैं। आज चार-पांच विधायक रवाना हो गये, कल भी इतने ही विधायक और निकलने वाले हैं। करीब आधा दर्जन मंत्रियों को भी असम के लिये लगेज तैयार रखने कहा गया है। मुख्यमंत्री के सभी सलाहकार दौरा करके आ चुके हैं। प्रदेश के अनेक युवा और अनुभवी नेताओं ने करीब-करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में बूथ मैनेजमेंट का वहां के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया। विधायकों के साथ भी अऩेक लोग जा रहे हैं। एक कांग्रेस नेता के मुताबिक वहां इस समय 500 से अधिक कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ लोग बिना बुलाये भी पहुंच रहे हैं ताकि उनका नंबर भी लगे हाथ बढ़ जाये।
असम में लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार रही, पर इस समय भाजपा है। भाजपा को पश्चिम बंगाल की तरह वहां पर, दूसरे प्रदेश के नेताओं की खास जरूरत नहीं पड़ रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह वहां सभायें ले रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को इतने बड़े पैमाने पर केन्द्रीय नेतृत्व ने जिम्मेदारी दी है तो इसका मतलब है कि वह सन् 2018 के चुनाव और बाद हुए उप-चुनावों के परिणाम को लेकर काफी प्रभावित है. असम में भी वह छत्तीसगढ़ के नेताओं के भरोसे ऐसे ही किसी नतीजे की उम्मीद में है। यदि भाजपा के हाथों से सत्ता छिन जाती है तो यह तय है कि प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का कद बढ़ेगा और आगे यह प्रयोग दूसरे राज्यों में भी अपनाया जायेगा।