राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जोगी पार्टी छोड़ कांग्रेस वापिसी
15-Dec-2020 6:34 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जोगी पार्टी छोड़ कांग्रेस वापिसी

जोगी पार्टी छोड़ कांग्रेस वापिसी

प्रदेशभर से जोगी पार्टी के नेता कांग्रेस में शामिल होना चाहते हैं। बड़ी संख्या में आवेदन भी पीसीसी को मिले हैं। कई जगहों पर तो कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के विरोध की वजह से प्रवेश नहीं हो पा रहा है। अंबिकापुर में तो जोगी पार्टी के नेताओं की टीएस सिंहदेव से बहस भी हो गई। हुआ यूं कि जोगी पार्टी के नेता गोपाल केशरवानी और अतुल सिंह के नेतृत्व में सीएम भूपेश बघेल से मिलने पहुंचे।

जोगी पार्टी के नेताओं को देखकर टीएस ने तंज कसा, और कहा कि क्या जोगी पार्टी से मोह भंग हो गया है? गोपाल केशरवानी ने टीएस की बातों को नजरअंदाज करते हुए सीएम को बताया कि हम सब पुराने कांग्रेसी हैं, और खुद के बारे में बताया कि उनके पिता सरगुजा जिला कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं। अतुल सिंह भी कुछ बोलना चाह रहे थे कि टीएस ने उन्हें टोक दिया, और कहा कि जोगी पार्टी के लोगों के कांग्रेस प्रवेश पर प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम फैसला लेंगे। इस पर अतुल सिंह ने टीएस सिंहदेव को झिडक़ दिया, और कहा कि हम आपसे बात नहीं कर रहे हैं। सीएम से बात करने आए हैं।

विवाद बढ़ता देख सीएम ने तुरंत हस्तक्षेप किया, और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके आवेदनों पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम विचार करेंगे, और वे खुद भी मरकाम से चर्चा करेंगे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजनांदगांव में भी बनी। सीएम के करीबी गिरीश देवांगन वहां जोगी पार्टी से कांग्रेस में आने के इच्छुक नेताओं के बारे में पूछा, तो ज्यादातर कांग्रेस नेताओं ने जोगी पार्टी के नेताओं को कांग्रेस में शामिल करने का विरोध किया। भाजपा के एक पुराने नेता को लेकर भी राय मांगी, तो उनके लिए भी सहमति नहीं बनी। ये अलग बात है कि भाजपा छोड़ चुके इस नेता के पुत्र कांग्रेस के पदाधिकारी हैं। विनोद गोस्वामी ने खुद होकर भाजपा छोड़ी और अब वे कांग्रेस में घर वापिसी चाहते हैं. भूपेश बघेल के कुछ करीबी लोगों ने उन्हें विनोद गोस्वामी के लिए सिफारिश भी की है।

बड़े नेताओं से ग्रस्त दुर्ग भाजपा

भाजपा में दुर्ग और भिलाई अध्यक्ष की नियुक्ति स्थानीय बड़े नेताओं  में खींचतान की वजह से अटक गई है। जबकि प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने 15 दिसंबर तक जिलाध्यक्षों की नियुक्ति करने के निर्देश दिए थे। आज डेड लाइन खत्म हो रही है, और नियुक्तियों के आसार नहीं दिख रहे हैं।

सुनते हैं कि सरोज पाण्डेय ने दिनेश देवांगन को दुर्ग ग्रामीण जिलाध्यक्ष  बनाने की वकालत की है, इस पर सांसद विजय बघेल सहमत नहीं हैं। विजय बघेल चाहते हैं कि भिलाई में प्रेमप्रकाश पाण्डेय और विद्यारतन भसीन की सहमति से अध्यक्ष की नियुक्ति की जाए। यहां भी सरोज की अपनी पसंद है। चारों के बीच कटुता इतनी ज्यादा है कि वे एक साथ बैठने के लिए भी तैयार नहीं हैं।

प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से विजय बघेल और विद्यारतन भसीन ने अलग से चर्चा की थी, और उन्हें दुर्ग जिले में संगठन चुनाव के दौरान विवाद की विस्तार से जानकारी दी थी। सरोज की पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग हैसियत है। ऐसे में नियुक्तियों को लेकर प्रदेश संगठन पशोपेश में हैं।

कहानी में लिखी बात पर घिरे कुलसचिव

छत्तीसगढ़ का कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय अपनी किसी कामयाबी के लिए कम, और किसी न किसी अवांछित और अप्रिय बात के लिए खबरों में बने रहता है। अब ताजा खबर कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर की एक कहानी संग्रह के एक वाक्य को लेकर बनी है जिसमें कहानी का एक पात्र आईएएस और दूसरी परीक्षाओं में कामयाब नहीं हो पाता। और उसके बारे में कहानीकार ने लिखा है- उसके बहुत सारे पढ़ाई में बोदे मित्र आरक्षण की बैसाखी के सहारे मंजिल पा गए थे।

अब इस एक वाक्य को लेकर आरक्षण समर्थकों ने डॉ. आनंद बहादुर की घेरेबंदी की है। अजाक्स के प्रांताध्यक्ष डॉ. लक्ष्मण भारती ने कहा है कि कुलसचिव को आरक्षण पर अध्ययन करने की जरूरत है। एक जिम्मेदारी वाले पद पर रहते हुए ऐसा लिखते समय अपने सामान्य वर्ग के आरक्षण की जानकारी भी उन्हें होना चाहिए। क्या उनके आरक्षण को भी बैसाखी की श्रेणी में रखेंगे?

लोगों में अब सामाजिक और राजनीतिक चेतना इतनी आ गई है कि किसी कहानीकार को भी अपने किरदार के बारे में लिखते हुए अपनी बातों को सावधानी से ही लिखना पड़ेगा। अब अगर पात्र ऐसा सोचता होता तो एक अलग बात होती, लेकिन अगर कहानीकार आनंद बहादुर के शब्द यह लिख रहे हैं तो लोग सवाल उठा सकते हैं।

अधिक शिष्टाचार भारी पड़ा

जाते-जाते एक कलेक्टर ने अपने मातहत तहसीलदार को ऐसा जख्म  दिया है कि कलेक्टर के हटने के बाद भी तहसीलदार के जख्म नहीं भर पाए हैं। हुआ यूं कि कलेक्टर ने तहसीलदार को अपने गेस्ट को भेंट करने के लिए अच्छी-सी सात-आठ साड़ी भिजवाने कहा। तहसीलदार जब दुकान गए, तो दुकानदार ने सलाह दी कि आप 80 साड़ी ले जाइए,  जो साब को पसंद आएगी वे रख लेंगे। बाकी लौटा दीजिएगा। तहसीलदार को दुकानदार की बात जंच गई, वे 80 साड़ी लेकर बंगले पहुंचे, तो सभी साडिय़ों को रखवाकर जाने के लिए कह दिया गया। साडिय़ों की कीमत के बारे में किसी ने पूछा ही नहीं। थोड़े दिन बाद कलेक्टर भी रिटायर होकर चले गए, अब हाल यह है कि बेचारे तहसीलदार को साडिय़ों की कीमत अदा करनी पड़ रही है।

बगावत करेंगे युद्धवीर?

जशपुर जिले में जूदेव परिवार भारतीय जनता पार्टी का पर्याय रहा है। जब तक स्व. दिलीप सिंह जूदेव जीवित थे, पार्टी का हर फैसला उनसे पूछकर लिया जाता था। इधर, इन दिनों चंद्रपुर से दो बार विधायक रह चुके युद्धवीर सिंह जूदेव की भाजपा पर की गई टिप्पणी इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। मीडिया में उन्होंने भाजपा को न केवल व्यापारियों की पार्टी बताया, बल्कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संघर्ष की तारीफ भी की। उनके रिश्ते टीएस सिंहदेव से भी अच्छे हैं। सन् 2018 में सिंहदेव ने साफ कर दिया था कि वे युद्धवीर के खिलाफ चुनाव प्रचार करने नहीं जायेंगे।

चंद्रपुर से 10 साल विधायक रहने के बाद युद्धवीर सिंह का जशपुर से सम्पर्क कम हो गया था पर बाद में पंचायत चुनाव में जिम्मेदारी दी गई। रायगढ़ से गोमती साय का लोकसभा चुनाव के लिये नाम तय किया गया तो कहा जाता है, उनकी ही सिफारिश थी। सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय युद्धवीर सिंह ने भाजपा से सम्बन्धित पहचान हटा ली है।

इन सबसे यह अटकल भी लगाई जा रही है कि वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर कई पोस्ट उन्होंने हाल के दिनों में डाली है जो  कांग्रेस सरकार की आलोचना में है। इनमें सहकारिता विभाग में कम्प्यूटर ऑपरेटरों की भर्ती में भ्रष्टाचार व बारदानों की कमी के कारण धान खरीदी व्यवस्था में आई दिक्कतों की चर्चा भी है।

सन् 2018 के उप-चुनाव में जशपुर की तीनों सीट कांग्रेस के पास आई थी और भाजपा साफ हो गई थी। यह करीब 35 साल बाद हुआ। यदि युद्धवीर कांग्रेस में आ जाते हैं तो जशपुर के फिसले जनाधार को दुबारा हासिल करना भाजपा के लिये और कठिन हो जायेगा।

पत्रवार्ता नहीं, केवल उद्बोधन

किसान कानून के समर्थन में कल भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेशभर में मीडिया से बात की। प्राय: सभी जिला मुख्यालयों में इन वार्ताओं का आयोजन किया गया था। दिल्ली से जो बातें केन्द्रीय मंत्रियों के हवाले से टीवी चैनलों में कही जा रही है लगभग वही बातें स्थानीय स्तर पर भी दोहराई गई। तीनों कानूनों को किसानों के लिये फायदेमंद बताया गया और आंदोलनकारियों को अराजक, अर्बन नक्सली, टुकड़े-टुकड़े गैंग भी कहा। बस यही नहीं बताया गया कि आंदोलनकारी किसानों की शंकायें जिन बिन्दुओं पर हैं उसका केन्द्र सरकार के पास समाधान क्या है। प्राय: हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक लम्बा वक्तव्य दिया गया और जब प्रश्न-प्रतिप्रश्न का मौका आया तो प्रवक्ता जवाब देने से बचते रहे और जैसे ही असहज हुए वार्ता समाप्त करने की घोषणा कर दी गई।

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