राजपथ - जनपथ
भाजपा में बदलाव की बयार
विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल बाकी हैं, और भाजपा हाईकमान ने आरएसएस के साथ मिलकर नए लोगों को आगे करने की रणनीति बना रही है। चर्चा है कि सांसदों को अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय को भारतीय खाद्य निगम की छत्तीसगढ़ इकाई के परामर्श दात्री समिति का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। जशपुर के नेता संकेत साय को सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया है।
आरएसएस से जुड़े एक नेता का कहना है कि पिछले 15 साल में नई पीढ़ी उभरकर सामने नहीं आ पाई है। बस्तर और सरगुजा में तो सत्ता हो या संगठन, चुनिंदा लोगों को ही महत्व मिलता रहा है। इसका प्रतिफल यह रहा कि दोनों आदिवासी संभाग में भाजपा की दुर्गति हो गई। आरएसएस का आंकलन है कि सिर्फ तीन ही विधायक अपने दम पर जीते हैं। बाकियों की नैय्या जोगी पार्टी अथवा निर्दलियों के सहारे ही पार हुई है।
कई विधानसभा ऐसे हैं जहां बड़े नेताओं ने दूसरी पंक्ति के नेताओं को उभरने नहीं दिया। मगर अब हर विधानसभा सीट में नए और साफ छवि के लोगों को आगे लाने की कोशिश की जाएगी। बस्तर में तो धर्मांतरण के खिलाफ मुहिम के बहाने युवाओं की नई पौध तैयार करने की कोशिश भी हो रही है। संकेत है कि नवम्बर के महीने से प्रदेश भाजपा में थोड़ा बहुत बदलाव देखने को मिल भी सकता है। यह बदलाव कब और किस तरह होगा, यह देखना है।
इन बच्चों के लिए क्या करें?
स्कूलें बंद हैं, और स्कूली-उम्र के बहुत से बच्चे सुबह से कॉलोनियों की नालियों में झांकते घूमते रहते हैं, नाली के पानी-कीचड़ में जहां उन्हें मछली मिलने की उम्मीद दिखती है, सडक़ पर लेटकर वे नाली में हाथ डाल देते हैं। ऐसी टोलियों में कोई भी मास्क लगाए नहीं दिखते, और जो नाली से जरा-जरा सी मछलियां पकडऩे उसमें हाथ घुसाए हुए हैं, उनसे सेनेटाइजर की भी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अब सवाल यह उठता है कि इन बच्चों की कोई मदद कैसे की जाए? क्या कॉलोनियों के संपन्न लोग इन्हें कोई फुटबॉल दे सकते हैं कि वे उससे खेलकर अपना वक्त गुजारें? या कार साफ करने, घर के बाहर की घास छीलने जैसा कोई काम दे सकते हैं? समाज के भीतर इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि इन्हें गंदगी और बीमारी के खतरे से कैसे बचाएं, और इनके समय का बेहतर इस्तेमाल कैसे करवाएं?