राजपथ - जनपथ
समर्पण की जीवंत तस्वीर
छत्तीसगढ़ के एक सबसे वरिष्ठ प्रेस-फोटोग्राफर गोकुल सोनी फेसबुक पर अपना देखा सच खूबसूरती से बताते हैं। अभी उन्होंने लिखा है- क्या आपने कभी किसी सरकारी दफ्तर में इतनी सजी-संवरी हरियाली देखी है?
यह तस्वीर रायपुर के के.के. रोड, जयस्तंभ चौक के आगे स्थित क्चस्हृरु दफ्तर की है। हैरानी की बात यह है कि यहाँ फैली हरियाली सरकार के एक भी पैसे से नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के समर्पण, प्रेम और जिम्मेदारी से सींची गई है।
इस ऑफिस में अब्दुल खलील केयरटेकर हैं, लेकिन सिर्फ केयरटेकर कहना उनके समर्पण के साथ अन्याय होगा। खलील साहब ने तीन सौ से ज़्यादा गमले, विभिन्न पौधे, मिट्टी, खाद—सब कुछ अपनी जेब से खरीदकर लगाया है। पानी देना, देखभाल करना, सफाई करना—यह सब वे रोज़ खुद करते हैं। विभाग की ओर से उन्हें इस काम के लिए एक रुपया भी नहीं मिलता। वे यह सब सिर्फ पर्यावरण प्रेम और अपनी खुशी के लिए करते हैं।
खलील साहब का इस जगह से रिश्ता भी पुराना और गहरा है। जब यह ज़मीन बिल्कुल खाली पड़ी थी, उसी दौर से वे यहाँ जुड़े हुए हैं। 4 फरवरी 1994 को जब तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने तारघर भवन का भूमि पूजन किया था, तभी से अब्दुल खलील यहाँ सेवा दे रहे हैं। 10 अक्टूबर 1996 को भवन बनकर तैयार हुआ और तारघर स्थापित हुआ—तब से वे केयरटेकर और जनरेटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत हैं। तीन दशक बाद भी उनका यह सफर बिना रुके जारी है।
आज भी सुबह-सुबह आप उन्हें पौधों में खाद-पानी देते, सूखे पत्ते हटाते, नई कलियों को सहेजते देख सकते हैं। उन्होंने इस सरकारी दफ्तर को सिर्फ कार्यस्थल नहीं, एक जीवंत बगीचा बना दिया है—जहाँ हर पौधा उनके श्रम और संवेदनशीलता की खामोश कहानी सुनाता है।
बृजमोहन के अलावा देवजी भी
प्रदेश में जमीन की गाइडलाइन दरों की वृद्धि से जुड़ा विवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इस सिलसिले में सरकार ने गाइडलाइन दरों का पुनरीक्षण प्रस्ताव मांग कर कुछ हद तक मामले को ठंडा करने की कोशिश भी की है। बावजूद इसके भाजपा के भीतर ही गाइडलाइन दरों में वृद्धि को वापस लेने की मांग जोर पकड़ रही है।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने तो खुले तौर पर गाइडलाइन दरों में वृद्धि पर असहमति जताई है, और अब पूर्व विधायक देवजी पटेल भी गाइडलाइन दरों में वृद्धि के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। देवजी पटेल ने सीएम विष्णुदेव साय को चि_ी लिखी है। पत्र में उन्होंने कहा कि गाइडलाइन की दरों में पुनरीक्षण हर साल होना चाहिए, मगर सरकार के सिपहसलारों के चलते नियंत्रित रूप से पुनरीक्षण नहीं किया गया, और वर्तमान सरकार के समय से ही एकमुश्त 8-9 वर्षों के पुनरीक्षण का नतीजा एक साथ 50 से 500 फीसदी तक वृद्धि स्पष्ट रूप से दृष्टिगत हो रहा है।
देवजी ने कहा कि सरकार के उच्चाधिकारियों द्वारा बिना सोचे समझे एकमुश्त वृद्धि जनता के लिए नासूर बन गया है। इसका नतीजा यह है कि पूरे प्रदेश में सरकार के खिलाफ माहौल बन गया है। उन्होंने कहा कि गाइडलाइन दरों में इतनी वृद्धि संभवत: पहली बार हुई है। अविभाजित राज्य के समय भी इस प्रकार की घटना नहीं हुई। परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ प्रदेश की आम जनता चाहे वह किसान हो, या बिल्डर हो, या आमजन सभी लिए शहरी-ग्रामीण क्षेत्र के जमीन संबंधी लेनदेन में इसका असर दिख रहा है।
प्रदेश के रजिस्ट्री कार्यालयों में वीरानी छाई हुई है। देवजी ने कहा कि प्रदेश की जनता के हित में जमीन की गाइडलाइन की दरों में वृद्धि के आदेश को निरस्त किया जाना चाहिए। देव जी के पत्र पर तो सरकार का रुख सामने नहीं आ पाया है। मगर इसे नजर अंदाज कर पाना मुश्किल होगा।
कब तक चलेगा जननी सुरक्षा नाटक?
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा के लोगों को दो बार गर्व करने का मौका मिला। एक बार 2013 में कांग्रेस की सरकार बनी तो टी.एस. सिंहदेव प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बने उसके बाद दूसरी बार श्याम बिहारी जायसवाल। यहां लोगों को लगा था कि अब तो अपने इलाके का स्वास्थ्य ढांचा चमक जाएगा, मां-बच्चों की जान नहीं जाएगी। लेकिन कुछ भी नहीं बदला, बल्कि और बदतर हो गया। सरगुजा की गर्भवती माताएं और उनके नवजात आज भी एंबुलेंस के इंतजार में, अस्पताल के बंद ताले के सामने या रास्ते में दम तोड़ रहे हैं। व्यवस्था की नाकामी क्रूर विडंबना ही बनी रह गई है।
सूरजपुर की कविता सिंह सोमवार-मंगलवार की रात प्रसव पीड़ा लेकर जिला अस्पताल पहुंचीं। उनका बीपी 180 पहुंच गया था। यह हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी का साफ-साफ संकेत था। प्रोटोकॉल कहता है कि ऐसे में पहले बीपी कंट्रोल किया जाए, फिर रेफर करें। लेकिन यहां से तुरंत रेफर कर दिया गया। एंबुलेंस में ही प्रसव हुआ और अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज पहुंचते-पहुंचते कविता सिंह और उनका बच्चे की जान चली गई। सिविल सर्जन डॉ. अजय मरकाम का जवाब देते हैं- हमारे यहाँ स्त्री रोग विशेषज्ञ ही नहीं हैं। यही सच है, वाहवाही के लिए सूरजपुर को जिला तो बना दिया, पर महिलाओं के लिए डॉक्टर ही नहीं। पिछले छह महीने में सूरजपुर में यह तीसरी घटना है। 8 अगस्त को भटगांव सीएचसी में महिला जमीन पर तड़पती रही, प्रसव हो गया। 24 सितंबर को जिला अस्पताल में इलाज नहीं मिला, रेफर किया, मौत हो गई। और अब कविता सिंह और उनका बच्चे की जान चली गई।
सप्ताह भर पहले लांजीत गांव के पीएचसी पर ताला लगा था। गर्भवती बाहर तड़पती रही, फिर किराए की कार में रास्ते में प्रसव कराना पड़ा। सिंहदेव के स्वास्थ्य मंत्री रहते (2013-18) भी बलरामपुर-वाड्रफनगर में आदिवासी खून की कमी से मर गए थे। वहां महीनों तक कोई स्वास्थ्य कार्यकर्ता झांकने नहीं गया था। सरगुजा से रोज खबरें मिलेंगी रेफर, एंबुलेंस उपलब्ध नहीं- मरीज पैदल या बाइक में ढोते हुए- रास्ते में मौत। और उसके बाद जांच कमेटी, निलंबन का नाटक और फिर बहाली, सब पहले जैसा।
अचरज की बात नहीं है कि इन सबके चलते ही नवजात मृत्यु दर में सरगुजा सबसे आगे है। पिछले छह महीनों में पूरे छत्तीसगढ़ में 3,184 नवजात और 221 माताएं मर चुकी हैं। कौन जिम्मेदार है? 2024-25 में स्वास्थ्य का बजट सिर्फ 4.8 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 6 प्रतिशत से ऊपर है। मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर जैसे राज्य स्वास्थ्य पर 10 प्रतिशत के आसपास खर्च करते हैं। छत्तीसगढ़ में तो डॉक्टरों के 9,000 से ज्यादा पद खाली हैं। इनमें स्पेशलिस्ट के 70-80 प्रतिशत पद रिक्त हैं। तकनीशियन, नर्स और एनेस्थेटिस्ट की भी भारी कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में 40 फीसदी से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो बिना डॉक्टर के हैं या बिना बिजली-दवा के।
सरकारें बदलती हैं, मंत्री बदलते हैं, योजनाएं बदलती हैं। जननी सुरक्षा योजना का नाम बहुत है, लेकिन जमीन पर क्या है? नशे में ड्यूटी करते डॉक्टर मिलते हैं, सर्जरी की कैंची भी थाम लेते हैं। क्या यह मान लिया जाए कि सत्ता और कुर्सी किसी की भी हो, आदिवासी जीवन की कीमत उनके लिए आज भी सस्ती है।
महासमुंद की सशक्त महिलाएं

दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल में हाल ही में महासमुंद जिले के बुंदेली गांव की एक रिपोर्ट ‘एक गांव’ के एपिसोड में प्रसारित की गई। बुंदेली गांव में महिलाओं ने अवैध शराब और नशे के खिलाफ एक प्रभावी आंदोलन चलाया है, जिसने गांव की सामाजिक स्थिति को बदला है और उन्हें आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाया है। महिलाओं ने एकजुट होकर गांव में अवैध शराब की बिक्री और सेवन के खिलाफ मोर्चा खोला। पहले यह गांव पूरी तरह से शराब की चपेट में था और घरेलू स्थिति काफी खराब थी। स्थानीय पुलिस के मार्गदर्शन में महिलाओं ने एक समूह का गठन किया। इस पहल के बाद गांव में मद्य निषेध पूरी तरह लागू है।


