राजपथ - जनपथ
सरगुजा की रेललाइनें
चर्चा है कि सरगुजा की दो रेल परियोजना पर जनप्रतिनिधि बंट गए हैं। अंबिकापुर से रेणुकूट (उत्तर प्रदेश), और अंबिकापुर से बरवाडीह (झारखंड)रेल परियोजना दशकों से अटकी पड़ी है। कई बार सर्वे हो चुका है। उक्त रेल परियोजनाओं को पूरा करने के लिए सडक़ से लेकर संसद तक आवाज उठ चुकी है। मगर दोनों ही परियोजना कागजों पर ही है। इन परियोजनाओं को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि एकमत नहीं हैं।
अंबिकापुर-रेणुकूट रेल लाइन बिछाने के लिए आंदोलन हुआ था। इस परियोजना के पूरा होने से अंबिकापुर से बनारस, और दिल्ली तक का सफर आसान हो जाएगा। गैरआदिवासी जनप्रतिनिधि रेणुकूट रेल परियोजना के लिए दबाव बनाए हुए हैं, तो आदिवासी जनप्रतिनिधि अंबिकापुर को बरवाडीह से जोडऩे के पक्षधर हैं। सीएम विष्णुदेव साय ने आदिवासी जनप्रतिनिधियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर रेलवे मंत्रालय को चि_ी भी लिखी थी, और केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से चर्चा भी कर चुके हैं, लेकिन यह परियोजना आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है। इस वजह से रेलवे बोर्ड उक्त परियोजना को लेकर अनिच्छुक है।
बताते हैं कि आदिवासी जनप्रतिनिधियों का सोचना है कि रेणुकूट रेल लाइन से उत्तर प्रदेश से गैर आदिवासी लोगों की आवाजाही बढ़ेगी। जबकि यहां के आदिवासियों की रिश्तेदारी झारखंड में ज्यादा है। ऐसे में अब परियोजना को व्यवहारिक बनाने के लिए बलरामपुर-रामानुजगंज को जोड़ते हुए अंबिकापुर-गढ़वा रोड (झारखंड) का प्रस्ताव दिया गया है। इस परियोजना से कोयले का परिवहन बिहार तक आसानी से हो सकेगा। सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज इस परियोजना पर विशेष रुचि दिखा रहे हैं। सबकुछ ठीक रहा, तो सरगुजा के आदिवासी जनप्रतिनिधियों की मांग पूरी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
संजय नाम में गड़बड़ी
संजय (संस्कृत में इसका अर्थ है ‘जीत’) या संजय गावलगण प्राचीन भारतीय हिंदू युद्ध महाकाव्य महाभारत के सलाहकार थे। महाभारत में - पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की एक प्राचीन कहानी - नेत्रहीन राजा धृतराष्ट्र कौरव पक्ष के प्रमुखों के पिता थे। सारथी गावलगण के पुत्र संजय, धृतराष्ट्र के सलाहकार और उनके सारथी भी थे। संजय ऋ षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास के शिष्य थे और अपने गुरु राजा धृतराष्ट्र के प्रति अत्यधिक समर्पित थे। संजय - जिसके पास घटनाओं को दूर या दिव्य दृष्टि से देखने का उपहार था, धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र के चरम युद्ध में कार्रवाई बताता रहा। ये तो हुई महाभारत की बात।
अब आधुनिक राजनीति में भी संजयों ने महाभारत मचा रखा है। सबसे पहले संजय गांधी ने कांग्रेस और गांधी परिवार में। फिर आप पार्टी के संजय सिंह ने और अब आरजेडी के संजय यादव ने। दिल्ली में आप पार्टी की सरकार में हुआ शराब घोटाला संजय सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है। जो दो बार की सरकार के पतन का कारण बना। और बिहार के संजय यादव ने तो लालू यादव परिवार में ही खलबली मचा दी है। यहां भी एक ‘संजय’ ने दिल्ली तक हलचल मचा दी है। यहां के ‘संजय’ का नाम निजी मेडिकल कॉलेज की मान्यता घोटाले में प्रमुखता से उछला है। मामले की सीबीआई जांच चल रही है। ये अलग बात है कि इस ‘संजय’ का अभी तक बाल बांका तक नहीं हुआ। इस क्रोनोलाजी को देख कर यही कहा जा सकता है कि ‘संजय’ टारगेटेड काम ही करते हैं।
गृह मंत्री को खुली चुनौती का मतलब?

छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के अध्यक्ष अमित बघेल के बाद अब करणी सेना चर्चा में आ गया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व बीएसएफ जवान डॉ. राज शेखावत ने विवादों से घिरे एक मामले को उठाया है, जो इस चर्चा की वजह है। अनेक संगीन मामलों में रायपुर पुलिस ने जिस वीरेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार किया, उसे इस संगठन का उपाध्यक्ष बताया जाता है। शेखावत ने फेसबुक लाइव के जरिये इस गिरफ्तारी को लेकर तूफान खड़ा कर दिया। इसे उन्होंने राजपूत सम्मान के साथ जोड़ दिया है। आरोप लगाया कि तोमर के साथ आतंकवादी जैसा बर्ताव किया गया। एसएसपी और टीआई के घर में घुसकर प्रदर्शन करने की बात कही। पुलिस ने सरकारी काम में बाधा डालने, धमकी देने, अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करने जैसी धाराओं में शेखावत के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया। मगर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। शेखावत ने एक्स पर गृह मंत्री का मोबाइल नंबर जारी कर दिया है। ‘करणी सैनिकों’ को आदेश दिया है कि वे फोन लगाकर मंत्री से पूछें कि मां करणी के सपूतों को गिरोह कैसे कह दिया? कुछ आपत्तिजनक शब्दों का फिर इस्तेमाल करते हुए कहा है कि वोट के जरिये करारा जवाब दिया जाएगा।
करणी सेना का गठन 19 साल पहले राजस्थान के जयपुर में हुआ था। संगठन मुख्य रूप से राजपूत युवाओं का है, जो समुदाय के सम्मान, इतिहास और अधिकारों की रक्षा का दावा करता है। पहली बार यह चर्चा में तब आया था जब संगठन ने ठीक लोकसभा चुनावों के पहले पद्मावत फिल्म के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन किया था। आरोप लगाया गया था कि राजपूतों की छवि को इस फिल्म में विकृत कर दिया गया है। फिल्म लोकसभा चुनाव निपटने के बाद ही रिलीज हो पाई। ऐसे ही राजपूत सम्मान से जुड़े कई मामलों पर राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश में यह संगठन आंदोलन कर चुका है। छत्तीसगढ़ में राजपूतों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, पर अपना वोट बैंक तो उनका है ही। तोमर, जिस पर दर्जनों अपराध दर्ज हैं, उसे समुदाय का योद्धा बताकर पुलिस के लिए चुनौती खड़ी करने का मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ में संगठन के विस्तार की रणनीति पर काम हो रहा है। भले ही यहां सरकार भाजपा की क्यों न हो। करणी सेना संगठन दावा करता है कि उसका किसी राजनीतिक दल से कोई नाता नहीं, पर कांग्रेस ने कई बार आरोप लगाया है कि इस संगठन के माध्यम से भाजपा अपने राजनीतिक एजेंडे को साधती रही है। पुलिस अफसरों के बाद सीधे गृह मंत्री को चुनौती देने वाले इस संगठन के मुखिया पर फिलहाल तो एफआईआर ही दर्ज हुई है। सरकार इस नए तनाव से किस तरह निपटेगी- यह देखना होगा।


