राजपथ - जनपथ
सरगुजा के मंत्रियों का इतिहास
साय कैबिनेट में विस्तार के साथ सरगुजा संभाग से सीएम मिलाकर पांच मंत्री हो गए हैं। सरगुजा संभाग में 14 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन कैबिनेट में संभाग को इतना बड़ा प्रतिनिधित्व पहले कभी नहीं मिला। पहली बार सरगुजा संभाग से विष्णुदेव साय सीएम बने। साय कैबिनेट में रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े पहले से थे, और अब अंबिकापुर के विधायक राजेश अग्रवाल मंत्री बन गए हैं। यही नहीं, निगम-मंडलों में भी सरगुजा इलाके का दबदबा है।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद सरगुजा संभाग से कांग्रेस की जोगी सरकार में दिवंगत डॉ. रामचंद्र सिंहदेव, डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम मंत्री बने। बाद में जशपुर के भाजपा विधायक विक्रम भगत को दल बदलकर कांग्रेस में शामिल होने का इनाम मिला, और उन्हें अजीत जोगी कैबिनेट में राज्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। इसके बाद भाजपा की रमन सिंह सरकार में गणेश राम भगत, रामविचार नेताम, रेणुका सिंह मंत्री बने। इसके बाद भैयालाल राजवाड़े, और रामसेवक पैकरा भी मंत्री रहे। सबसे ज्यादा रामविचार 10 साल मंत्री रहे। भगत वर्ष-2008 के चुनाव में हार गए, और उन्हें दोबारा मौका नहीं मिला। रेणुका सिंह तीन साल में मंत्री रहीं। बाद में उन्हें हटाकर लता उसेंडी को मंत्री बनाया गया।
रामसेवक पैकरा पहले संसदीय सचिव रहे, और फिर बाद में पांच साल गृहमंत्री रहे। भूपेश बघेल सरकार में सरगुजा से टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम, अमरजीत भगत, और डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम को मंत्री बनाया गया। टेकाम आखिरी के तीन महीने कैबिनेट से बाहर हो गए थे। उन्हें राज्य योजना आयोग का चेयरमैन बनाया गया था। भूपेश बघेल सरकार के बाद भाजपा के सत्ता में आते ही सरगुजा को खास महत्व दिया गया। इसकी बड़ी वजह यह थी कि भाजपा सभी 14 सीटें जीतने में कामयाब रही।
विष्णुदेव साय ने सीएम की कुर्सी संभाली, तो रामविचार नेताम, श्याम बिहारी, और लक्ष्मी राजवाड़े को मंत्री बनने का मौका मिला। सरगुजा इलाके में लालबत्ती खूब बंटी है। आधा दर्जन से अधिक नेताओं को लाल बत्ती दी गई है। मसलन, युवा आयोग के अध्यक्ष विश्व विजय सिंह तोमर सरगुजा के ही हैं। इसके अलावा गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष अनुराग सिंहदेव, वन विकास के अध्यक्ष रामसेवक पैकरा, कुंभकार कल्याण बोर्ड के चेयरमैन शंभू चक्रवर्ती, अंत्यावसायी निगम के चेयरमैन सुरेन्द्र सिंह बेसरा, और सरगुजा विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष गोमती साय के अलावा कृषि सलाहकार धीरेन्द्र तिवारी भी सरगुजा के अलग-अलग जगहों से आते हैं। कुल मिलाकर सरगुजा में इतने ‘लाल बत्ती’ धारी पहले कभी नहीं रहे।
किसकी सिफारिश से कौन?
भाजपा में कैबिनेट विस्तार को लेकर पिछले कई महीनों से माथापच्ची चल रही थी। आखिरकार तीन पहली बार के विधायक गजेन्द्र यादव, राजेश अग्रवाल, और गुरु खुशवंत साहेब को मंत्री बनने का मौका मिला। गजेन्द्र यादव को मंत्री बनाने की राह में कोई रोड़ा नहीं था। वो आरएसएस पृष्ठभूमि के हैं। उनके पिता बिसरा राम यादव आरएसएस के प्रांत प्रमुख रह चुके हैं। यही नहीं, वो पिछड़ा वर्ग की दूसरी सबसे बड़ी आबादी यादव बिरादरी से आते हैं। इन सब वजहों से यादव का मंत्री पद तय माना जा रहा था। मगर सारी उलझन राजेश अग्रवाल, और खुशवंत साहेब को लेकर थी। हल्ला है कि राजेश अग्रवाल, और खुशवंत साहेब को मंत्री बनाने के लिए सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर ने भी सिफारिश की थी।
अंबिकापुर विधायक राजेश अग्रवाल, खुशवंत साहेब कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए। राजेश तो 2018 में आ गए थे, लेकिन खुशवंत साहेब 2023 में भाजपा में शामिल हुए। दोनों को ही टिकट दिलवाने में तत्कालीन प्रदेश भाजपा प्रभारी ओम माथुर की भूमिका रही है। और जब मंत्री बनाने की बारी आई, तो पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश ने भी एक मंत्री अनुसूचित जाति वर्ग से लेने की सिफारिश की।
अनुसूचित जाति वर्ग से अहिवारा के विधायक डोमन लाल कोर्सेवाड़ा को मंत्री बनाने पर विचार हुआ। डोमन लाल पहले भी विधायक रह चुके हैं। मगर दुर्ग जिले से गजेन्द्र यादव को मंत्री बनाने का निर्णय लिया जा चुका था। इसके बाद रायपुर जिले से खुशवंत साहेब के नाम विचार हुआ। पार्टी के अंदर खाने में उनको लेकर अलग-अलग राय थी। मगर सतनामी समाज में उनकी पकड़ को देखते हुए खुशवंत साहेब को मंत्री बनाने का फैसला लिया गया।
पार्टी के भीतर आम राय थी कि बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद से हटने के बाद वैश्य समाज से मंत्री बनाया जाना चाहिए। इसके लिए अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, संपत व राजेश अग्रवाल के नामों पर विचार हुआ। अमर, और राजेश मूणत पहले मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में नए को मौका देने का फैसला लिया गया, और राजेश अग्रवाल की लॉटरी निकल गई।
अब रेल यात्रा में फ्लाइट का आनंद लें
भारतीय रेलवे ने अब हवाई जहाज की तर्ज पर यात्रियों के सामान का वजन तौलना और उस पर शुल्क वसूलने का निर्णय लिया है। इसके मुताबिक एसी फर्स्ट क्लास में 70 किलो, स्लीपर में 40 किलो और जनरल डिब्बों में 35 किलो तक सामान मुफ्त ले जाया जा सकता है। लेकिन इससे अधिक वजन पर अतिरिक्त शुल्क या जुर्माना लगेगा। शुरूआत प्रयागराज, कानपुर, अलीगढ़, मिर्जापुर जैसे बड़े स्टेशनों से हो चुकी है और धीरे-धीरे यह व्यवस्था देशभर में लागू की जाएगी।
अब सवाल उठता है कि रेलवे किस मुंह से यात्रियों पर यह नया बोझ डाल रहा है? हवाई जहाज़ की तरह शुल्क तो वसूले जा रहे हैं, पर क्या ट्रेनें कभी हवाई जहाज़ जैसी सुविधा देंगी? आम आदमी रोज देखता है—जनरल डिब्बों में यात्री ठूंसे जा रहे हैं, धक्के खाते हैं, बैठने की जगह तक नहीं होती। एसी कोच से लेकर सेकंड क्लास और जनरल तक, हर जगह गंदगी पसरी रहती है। ट्रेनों की समयबद्धता की हालत यह है कि घंटों लेट होना आम बात है। ट्रेनें अचानक रद्द कर दी जाती हैं, लेकिन यात्रियों को कोई मुआवज़ा नहीं मिलता। जबकि हवाई जहाज़ रद्द होने पर कंपनियां यात्रियों को राहत राशि या वैकल्पिक सुविधा देती हैं।
रेलवे करोड़ों रुपये अमृत भारत स्टेशनों को ‘एयरपोर्ट जैसा’ बनाने पर खर्च कर रही है। एसी लाउंज, फूड कोर्ट और चमचमाती इमारतें तो बन रही हैं, लेकिन असल सेवा, साफ डिब्बे, समय पर चलती ट्रेनें, यात्रियों की सुरक्षा और आराम वहीं की वहीं है। ऐसे में यह नया ‘वजन शुल्क’ यात्रियों की जेब पर एक और बोझ डालने जैसा है।


