राजनांदगांव

अपनों से झिझक व गैरों से मित्रता, सनातनी संस्कृति के लिए खतरनाक - गोस्वामी
02-Jan-2024 3:44 PM
अपनों से झिझक व गैरों से मित्रता, सनातनी संस्कृति के लिए खतरनाक - गोस्वामी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबागढ़ चौकी, 2 जनवरी।
श्रीमद शिवमहापुराण कथा के चौथे दिन सनातन संस्कृति व धर्म को श्रेष्ठ बताते कथावाचक पं. विनोद बिहारी गोस्वामी ने जनसमूह से भारतीय धर्म, संस्कृति, परंपराओं व संस्कार की रक्षा के लिए आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने पश्चिमी संस्कृति व परंपराओं को भारतवासियों के लिए खतरनाक व पथ भ्रष्ट करने वाला बताया।
सृजन निकेतन सेवाभावी संस्था एवं नगरवासियों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कथा का यह निरंतर चौथा वर्ष है। जबकि श्रीमद् शिवमहापुराण कथा का निरंतर दूसरा वर्ष है। कथा के चौथे दिन शिव कथा के दौरान व्यासपीठ से श्रीकृष्ण चैतन्य आश्रम व भक्ति संस्थान के प्रमुख पं. विनोद बिहारी गोस्वामी ने भारत की अतिप्राचीन सनातनी धर्म व संस्कृति को सबसे श्रेष्ठ धर्म व संस्कृति बताया। उन्होंने कहा कि हम अपनी धर्म, संस्कृति व संस्कार एवं परंपराओं को त्याग कर पाश्चात्य संस्कृति को अच्छा समझने लगे हैं। यह हमारी बड़ी भूल है। अब समय आ गया है कि हम निद्रा त्यागे और और अपनी धर्म, संस्कृति व संस्कारों की रक्षा के लिए आगे बढ़े।

कथावाचक पं. विनोद बिहारी गोस्वामी ने कहा कि आज हम अपनों को भूल व त्याग रहे हैं और अपरिचितो से रिश्ता जोड़ रहे हैं।  यह हमारे धर्म, संस्कृति के लिए कैंसर से कहीं अधिक खतरनाक है। कथावाचक ने बताया कि आज फेसबुक, वाटसअप, इंस्ट्राग्राम, मोबाईल के चक्कर में हम अपनों व परिचितों के साथ झिझक करते हैं और गैरों व अपरिचितों के साथ संबंध जोड़ रहे हैं। इन भौतिक सुविधाएं ने आज हमारे युवा पीढ़ी को हमारे धर्म व संस्कृति से विमुख कर रहे हैं। आज हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपने बच्चों को अपने धर्म, संस्कृति व परंपराओं एवं संस्कारों की शिक्षा दें। जिससे आने वाली पीढ़ी भारत वर्ष की गौरवशाली सभ्यता व संस्कृति को समझते उसका अनुशरण करें। कथावाचक ने कहा कि हमें अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए और एक सीमा तक ही हमें लाड-दुलार करना चाहिए। जिससे उनका जीवन सुखद हो और हम अपने बच्चों को आज्ञाकारी, सदाचारी व संस्कारी तथा धर्म की राह में चलने वाला एक अच्छा मनुष्य बना सके। 

नाम से शरीर व मनुष्य की उसके गुण, कर्म व चरित्र से होती है पहचान
कथावाचक गोस्वामी ने कहा कि नाम में क्या रखा है, नाम से तो केवल शरीर की पहचान होती है। जबकि मनुष्य की सही पहचान तो उसके गुण व कर्मों से होती है। नाम ईश्वर का रख लिया और काम शैतानों  जैसा हो तो उससे भला होने वाला नहीं है।

कथावाचक ने बताया कि गुणानिधि में उनके नाम के अनुरूप कोई गुण नहीं था। वह अवगुणो व विकारो से भरा हुआ था। माता की सीमा से अधिक लाड-दुलार व बुरी संगति से कई प्रकार के दुव्र्यवसनों की लत में पड़ गया। आखिरकार गुणानिधि के पिता ने अपने पुत्र को त्याग दिया। कथाावाचक ने कहा कि मनुष्य में मनुष्यता का गुण होना चाहिए। व्यक्ति के कर्म, वाणी व चरित्र से हीउसकी असली पहचान होती है। नाम रख लेने मात्र से ही भला नहीं होने वाला है, अच्छा तब होगा, जब हम अपने नाम के अनुरूप बनकर दिखाएं और अपने नाम को सार्थक करें। 
 


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