रायपुर

प्रवचन जीवन में उतारनेका अध्याय है- साध्वी
13-Jul-2025 7:14 PM
प्रवचन जीवन में उतारनेका अध्याय है- साध्वी

आत्मा को पहचानिए, बार-बार अपने मन में ‘मैं आत्मा हूं’ का भाव दोहराइए।

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 13 जुलाई। दादाबाड़ी में जारी आत्मोत्थान चातुर्मास  प्रवचन में  रविवार को साध्वी हंसकीर्ति ने कहा कि प्रवचन केवल सुनने की चीज नहीं हैं, बल्कि उनका असर हमारे विचारों, व्यवहार और कर्मों पर गहराई से पड़ता है।

प्रवचन के प्रभाव से मन में गलत कार्यों की प्रवृत्ति समाप्त होने लगती है। जब व्यक्ति नियमित रूप से धर्म की बातें सुनता है, तो उसका चित्त शांत होता है और जीवन में संयम व विवेक जागृत होता है। साध्वीजी ने कहा कि जैसे कोई पुरानी फिल्म या भोजन का स्वाद वर्षों बाद भी स्मृति में बना रहता है, उसी तरह अगर मन में अराधना का भाव गहराई से उतर जाए, तो वह भी जीवन में स्थायी असर छोड़ता है।

उन्होंने कहा, हर व्यक्ति के भीतर अराधक भाव होना चाहिए। जब तक भीतर से यह भाव जागृत नहीं होगा कि मैं आत्मा हूं, तब तक आत्म-साक्षात्कार की यात्रा अधूरी रहेगी। जब कोई जीव बार-बार किसी कार्य का प्रयास करता है, तो एक दिन उसमें दक्षता भी आ जाती है। साध्वीजी ने बताया, जैसे एक भंवरा गुनगुनाता है और उसके आसपास उड़ती लट धीरे-धीरे उसी ध्वनि को अपनाने लगती है, वैसे ही जब हम बार-बार कहेंगे कि ‘मैं आत्मा हूं’, तो एक समय ऐसा आएगा कि भीतर से भी वही ध्वनि गूंजने लगेगी। यह आत्मिक अभ्यास हमें बाहरी राग-द्वेष से दूर ले जाएगा।उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जब कोई पूछता है कि आप कौन हैं, तो हम अपने नाम या शरीर से परिचय देते हैं, जबकि वास्तव में हमारी पहचान आत्मा है, शरीर नहीं। यह शरीर केवल आत्मा का वस्त्र है, असली अस्तित्व आत्मा ही है।

साध्वीजी ने आगे कहा कि जब व्यक्ति बार-बार स्वयं से यह कहता है कि मैं आत्मा हूं, तो धीरे-धीरे वह आत्म-चिंतन की दिशा में बढ़ता है। उसका ध्यान बाहरी संसार से हटकर अपने भीतर केंद्रित होने लगता है।

 यह प्रक्रिया सरल नहीं, परंतु निरंतर प्रयास से संभव है। उन्होंने यह भी समझाया कि जैसे एक बच्चा बार-बार अभ्यास करने से नई भाषा सीखता है, वैसे ही आत्मा को पहचानने के लिए भी अभ्यास चाहिए। जीवन की गति तब ही सुधरती है जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को समझते हैं। प्रवचन का सार यह रहा कि आत्मा को पहचानिए, बार-बार अपने मन में ‘मैं आत्मा हूं’ का भाव दोहराइए। यही अभ्यास एक दिन आपको बाहरी मोह-माया से ऊपर उठाकर सच्ची आत्मिक शांति की ओर ले जाएगा।


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