रायपुर
छत्तीसगढ़ पर ग्लोबल वार्मिंग का असर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल। मौसम वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2070 तक छत्तीसगढ़ का औसत तापमान में 2.9 डिग्री सेन्टिग्रेट की वृद्धि होगी, वार्षिक वर्षा में लगभग 4.5 प्रतिशत की कमी होगी और फसल उत्पादन में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जाएगी जो मानव तथा अन्य जीव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगा।
कृषि मौसम विभाग के डॉ. केएल नंदेहा ने कहा कि दंतेवाड़ा, बस्तर, बीजापुर, जांजगीर, जशपुर, महासमुंद, रायगढ़, सरगुजा, नारायणपुर, बलरामपुर एवं कोण्डागांव जिलों में वार्षिक अधिकतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं पांच जिलों जशपुर, कोरिया, सरगुजा, बलरामपुर एवं सूरजपुर में वार्षिक न्यूनतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक छत्तीसगढ़ के वार्षिक अधिकतम तापमान में 0.6 डिग्री सेन्टिग्रेट तथा वार्षिक न्यूनतम तापमान में 1.3 डिग्री सेन्टिग्रेट की वृद्धि हो जाएगी। आगामी 40-50 वर्षां में रायगढ़, बिलासपुर एवं कोरबा जिलों में अधिकतम तापमान में सर्वाधिक वृद्धि होगी, जबकि जशपुर, गरियाबंद एवं कोण्डागांव जिलों में वार्षिक तापमान में कमी दर्ज की जाएगी। इसी प्रकार रायगढ़, मुंगेली एवं रायपुर जिलों में वार्षिक न्यूनतम तापमान में सर्वाधिक वृद्धि तथा बस्तर, जशपुर एवं कोण्डागांव जिलों में वार्षिक न्यूनतम तापमान में कमी दर्ज की जाएगी। कोरबा, बिलासपुर एवं दुर्ग जिले फसल उत्पादन की दृष्टि से सर्वाधिक प्रभावित होंगे।
औद्योगिक क्रान्ति की शुरूआत के बाद से वायुमण्डल का तापमान 1.1 डिग्री सेन्टिग्रेट बढ़ चुका है। अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले दो दशकों में औसत तापमान 1.5 डिग्री सेन्टिग्रेट और बढ़ जाएगा।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग ने ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य में जलवायु परिवर्तन की समस्याएं चरम मौसम घटनाओं के लिए अनुकूलन और शमन रणनीतियां’’ विषय पर संगोष्ठी में मौसम वैज्ञानिकों ने ये आशंकाएं जताईं।
नीम, पीपल चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाले पेड़ - कुलपति डॉ. चंदेल ने कहा कि ग्लोबन वार्मिंग रोकने के लिए नीम, पीपल जैसे चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाले पौधों का रोपण करना होगा। इसी प्रकार प्लास्टिक वेस्ट मटेरियल का उपयोग सडक़ निर्माण में किया जा सकता है।
डॉ. बल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा पिछले तीस वर्षां से काफी चर्चा में है। इन वर्षां में धरती के औसत तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। सूखा और गर्म हवाओं से फसलां की पैदावार प्रभावित हुई है। कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1970 के पूर्व कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में वार्षिक वृद्धि की दर 1.32 पीपीएम थी जो 1970 के बाद बढक़र 3.4 पीपीएम हो गई।
प्रबंध मण्डल सदस्य आनंद मिश्रा ने कहा कि बिजली के आपूर्ति के लिए लगाए जाने वाले थर्मल पावर प्लान्ट जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। इन थर्मल पावर प्लान्ट में प्रति दिन हजारों टन कोयला और हजारो लीटर पानी लगता है। कोयला खनन के लिए प्रति वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल काट दिए जाते हैं। नदियों के लाखों लीटर पानी उपयोग होता है।


