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वायु प्रदूषण से गर्भवती मां और उसके बच्चे को भी खतरा
14-Nov-2025 2:44 PM
वायु प्रदूषण से गर्भवती मां और उसके बच्चे को भी खतरा

प्रदूषित हवा में सांस लेने से गर्भ में बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ता है. इससे समय से पहले जन्म और गर्भपात का खतरा बढ़ रहा है.

 डॉयचे वैले पर शिवांगी सक्सेना की रिपोर्ट - 

भारत में वायु प्रदूषण का गर्भावस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. इस हवा में सांस लेने का असर गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चे की सेहत पर सीधे पड़ता है. लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत और दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण, खासकर पीएम 2.5, के उच्च स्तर से गर्भपात और समय से पहले जन्म का खतरा बढ़ जाता है. हर साल लगभग तीन लाख से अधिक गर्भपात प्रदूषण के कारण हो रहे हैं.

बढ़ते प्रदूषण के चलते जन्म के समय बच्चे का वजन कम रह जाता हैं. आईआईटी दिल्ली और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (मुंबई) ने ब्रिटेन और आयरलैंड के संस्थानों के साथ मिलकर हाल ही में इस विषय पर अध्ययन किया है. स्टडी में पाया गया कि गर्भावस्था में पीएम 2.5 के अधिक संपर्क में आने से समय से पहले डिलीवरी का जोखिम लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. वहीं जन्म के समय बच्चे का वजन कम होने का जोखिम करीब 40 प्रतिशत तक ज्यादा होता है. ऐसे बच्चे, जो प्रदूषित हवा में पलते हैं, उनके विकास में रुकावट आती है. बच्चों को आगे चलकर सांस की परेशानी, एनीमिया और दिल की बीमारी हो सकती है.

क्या प्रदूषण कम कर रहा है भारत में धूप के घंटे?

उत्तर भारत के बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे इलाकों में पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर बहुत ज्यादा है. जबकि देश के दक्षिण और पूर्वोत्तर हिस्सों में यह कम है. यही वजह है कि उत्तर भारत के राज्यों में समय से पहले जन्म के मामलों की संख्या भी अधिक पाई गई. हिमाचल प्रदेश में 39 प्रतिशत, उत्तराखंड में 27 प्रतिशत, राजस्थान में 18 प्रतिशत और दिल्ली में 17 प्रतिशत बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ. वहीं पंजाब ऐसा राज्य रहा, जिसमें जन्म के समय सबसे ज्यादा बच्चों का वजन औसत से कम था. 

पीएम 2.5 क्या होता है?

हवा में धूल हमें दिखती है लेकिन पीएम 2.5 बहुत छोटे होते हैं. पीएम का अर्थ है पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 मतलब 2.5 माइक्रोन, उसका आकार बताता है. ये इतने बारीक होते हैं कि आंखों से नहीं दिखते. ये इंसानी बाल की मोटाई से लगभग तीस गुना छोटे होते हैं. 

फैक्ट्रियों और गाड़ियों के धुंए, लकड़ी, कचरा या पराली जलाने से ये कण हवा में फैल जाते हैं. सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. ये फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और खून में भी मिल सकते हैं. इससे सांस की परेशानी, दिल की बीमारी, स्ट्रोक और बच्चों के विकास में दिक्कत जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

आईआईटी दिल्ली के अध्ययन से पता चलता है कि गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे का वजन कम हो सकता है. साथ ही पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन के अधिक स्तर से बच्चे का जन्म 37 हफ्ते तक पहले हो सकता है.

मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है गंभीर असर

प्रदूषण का असर मां से कहीं ज्यादा बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है. प्रदूषित हवा में पीएम 2.5 जैसे बहुत बारीक कण और कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं. सांस लेते समय ये गंदी हवा गर्भवती महिला के शरीर में प्रवेश करती है. जिससे ये कण फेफड़ों से होकर खून में पहुंच जाते हैं. गर्भ में पल रहे बच्चे को बढ़ने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन चाहिए होती है. ये प्रदूषक खून में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देते हैं. ऑक्सीजन की कमी से बच्चे का विकास रुक सकता है.

नई दिल्ली के बीएलके मैक्स अस्पताल में स्त्रीरोग विभाग की निदेशक डॉ तृप्ति शरण ने डीडब्ल्यू को बताया कि डॉक्टर, गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ड्रग्स या सिगरेट ना लेने की सलाह देते हैं. लेकिन प्रदूषण इससे भी ज्यादा हानिकारक हो सकता है. प्रदूषक, हवा के रास्ते सीधे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. ये मां और बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचाता है. 

डॉ. तृप्ति कहती हैं, "प्लेसेंटा मां और बच्चे के बीच एक कनेक्शन होता है. इसके जरिए ऑक्सीजन और पोषण बच्चे तक पहुंचता है. जिससे बच्चा सही ढंग से बढ़ सके. पीएम 2.5 जैसे प्रदूषित कण प्लेसेंटा के जरिए बच्चे तक पहुंच जाते हैं. प्लेसेंटा को भी नुकसान होता है. प्लेसेंटा के ठीक से काम ना करने पर बच्चे को जरूरी ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिलते. मां का गर्भाशय जल्दी सिकुड़ने लगता है. जिससे बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है."

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ करुणाकर मरीकिनति भारत और ब्रिटेन में प्रैक्टिस करते हैं. वह डीडब्ल्यू से बातचीत में बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 और अन्य प्रदूषकों के संपर्क में आने से मां के शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है. महिलाओं में हाइपरटेंशन, प्री‑एक्लेम्सिया, तनाव, एंग्जायटी और अस्थमा जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इनसे भी बच्चे तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की आपूर्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है. ये प्रभाव विशेष रूप से दूसरी और तीसरी तिमाही में अधिक दिखाई देता है. उस समय भ्रूण का तेज विकास और अंगों का निर्माण हो रहा होता है.

जन्म के बाद बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है

भारत की तरह अन्य देशों में भी प्रदूषण बड़ी समस्या है. प्रदूषण बच्चे के लिए दीर्घकालिक समस्याएं पैदा कर सकता है. इसलिए गर्भावस्था के दौरान मां का विशेष ध्यान रखने की जरुरत है. 

डॉ करुणाकर मरीकिनति कहते हैं, "ऐसे वातावरण में पैदा होने वाले बच्चों को जन्म के बाद भी सांस की बीमारियां, फेफड़ों और दिल की समस्याएं, विकास में रुकावट और एनीमिया जैसी परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपना विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है. उन्हें सबसे अच्छा फेस मास्क पहनना चाहिए. प्रदूषित हवा में कम समय बिताना चाहिए. साथ ही, ऐसे क्षेत्रों में जाने से बचना चाहिए जहां हवा ज्यादा गंदी है. अगर संभव हो तो सुरक्षित और साफ वातावरण के लिए गांव जैसी किसी जगह पर जाकर रहना सही रहेगा.”

हालांकि सभी प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए गांव या साफ जगह पर जाकर रहना विकल्प नहीं हो सकता. खासकर तब जब भारत के सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं उतनी कारगर नहीं हैं. 

पुरानी कारों को लेकर दूसरे देशों में क्या हैं नियम

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में एंड ऑफ लाइफ व्हीकल पर रोक लगाकर कार मालिकों को राहत दी. कोर्ट ने दिल्ली में पुरानी गाड़ियों के मालिकों के खिलाफ सख्ती पर फिलहाल रोक लगा दी. जानिए, दूसरे देशों में क्या हैं नियम.

दिल्ली-एनसीआर के लिए क्या थे नियम

जुलाई 2025 में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने नो फ्यूल फॉर ओल्ड व्हीकल पॉलिसी का एलान किया था. सरकार ने 1 जुलाई, 2025 से 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल और 10 साल से अधिक पुराने डीजल वाहनों को ईंधन नहीं देने का फैसला किया. इसका उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना था. लोगों के विरोध के बाद इस नीति पर रोक लगा दी गई.

अलग-अलग देशों में अलग-अलग नियम

कारों की उम्र को लेकर अलग-अलग देशों के अपने नियम हैं. कार कितनी पुरानी है और वह सड़क पर चलने लायक है या नहीं उसकी फिटनेस तय होने के बाद वह सड़क पर फर्राटा भर सकती है. रखरखाव के आधार पर यह अवधि बढ़ भी सकती है.

जापान

जापान टोयोटा, निसान, सुजुकी और होंडा जैसी कारों को बनाता है और उसकी कारें दुनिया भर में बिकती है. जापान में कारों की औसत उम्र आठ से नौ साल है. अच्छे रखरखाव के साथ वहां के लोग अपनी कार को 13 से 15 साल तक चला सकते हैं. यहां कारों को कचरे में डालने से पहले उसकी स्थिति की जांच की जाती है.

अमेरिका

अमेरिका में पुरानी गाड़ियों के लिए अलग से कोई संघीय कानून नहीं है. इस मामले में पर्यावरण से जुड़े नियमों और राज्यों के नियमों के आधार पर कार्रवाई होती है. कुछ राज्यों में यहां साल में दो बार और कुछ में एक बार जांच करानी होती है. हालांकि कुछ राज्यों में यह नहीं होता बल्कि सिर्फ प्रदूषण जांच की जाती है. 25 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ियों को क्लासिक का दर्जा मिलता है.

चीन

चीन में पुरानी गाड़ियों की औसत उम्र लगभग 12 साल है. चीन में गाड़ियों का नियमित रूप से फिटनेस टेस्ट किया जाता है. चीन में 10 साल से ज्यादा पुरानी कार को पुरानी कार मान लिया जाता है.

ब्रिटेन

ब्रिटेन में कारों की औसत उम्र लगभग नौ साल है. 2019 में यह आठ साल थी. यहां एक तिहाई से ज्यादा कारें 12 साल से अधिक पुरानी है. यहां नई गाड़ी खरीदना काफी महंगा है इसलिए लोग अपनी गाड़ियों को अच्छे तरीके से मेनटेन करते हैं.

यूरोपीय संघ

यूरोपीय संघ के देशों में अमूमन सभी गाड़ियों को पहली बार 4 साल और उसके बाद हर दो साल पर उनकी जांच करानी पड़ती है. इन नियमों का पालन करते हुए लंबे समय तक कार चलाई जा सकती है. कुछ देशों में यह नियम 3 साल के बाद हर दूसरे साल या फिर हर साल जांच कराने का भी है.

फ्रांस

फ्रांस में कारों के लिए कोई आयु प्रतिबंध नहीं है, लेकिन यूरो 6 मानकों को पूरा करना होगा. हालांकि फ्रांस के कुछ शहरों में उत्सर्जन की वजह से पुराने वाहनों पर प्रतिबंध है.

आयरलैंड

आयरलैंड में पुरानी कारों पर कोई आयु प्रतिबंध नहीं है, लेकिन पुरानी कारों पर अधिक टैक्स लग सकता है.

जर्मनी

जर्मनी में कारों के शौकीनों की कमी नहीं है. इसलिए यहां लोग कई सालों तक कारों को अच्छी तरह से रखते हैं. यहां पर 30 साल से अधिक पुराने वाहनों को "ओल्डटाइमर" (विंटेज या क्लासिक कारें) माना जाता है और उन्हें एच-प्लेट ("ऐतिहासिक" के लिए) के साथ रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है, जो टैक्स का भी लाभ देता है. साथ ही ऐसे इलाकों में प्रवेश की अनुमति देता है जो पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील है.


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