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चीफ जस्टिस की बेंच में अदालत बंद होने के चलते आर्थिक संकट से घिरे अधिवक्ताओं की याचिका पर सुनवाई
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 18 जून। कोरोना संक्रमण के कारण आर्थिक संकट से घिरे अधिवक्ताओं को आर्थिक सहायता पहुंचाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आज स्टेट बार काऊंसिल के जवाब पर असंतोष जताते हुए उन्हें एक सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब पेश करने के लिए कहा है।
चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की युगल पीठ में आज अधिवक्ता राजेश केशरवानी तथा आनंद मोहन तिवारी की ओर से दायर याचिकाओं पर आगे की सुनवाई हुई। पिछली तीन सुनवाई में स्टेट बार काउन्सिल की ओर से अधिवक्ताओं की मदद के लिए कार्रवाई जारी होने की बात की थी। स्टेट बार काउन्सिल की ओर से बताया गया कि उनके पास 2100 अधिवक्ताओं ने आर्थिक मदद के लिए आवेदन किया था, जिनमें से 1100 को तीन-तीन हजार रुपये की सहायता दी गई है। यह राशि बार काऊंसिल ऑफ इंडिया से मिले 45 लाख रुपयों में से है। मदद की राशि करीब 30 लाख रुपये है।
याचिकाकर्ता केशरवानी का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि स्टेट बार काऊंसिल ने अपनी ओर से कोई मदद नहीं की है। अधिवक्ताओं द्वारा टिकट की राशि जमा कराई जाती है जिसमें एक बड़ी राशि जमा है। इस राशि को खर्च करने के लिये काऊंसिल की ओर से ट्रस्टी कमेटी में प्रस्ताव जाना चाहिए, जो नहीं गया है। ट्रस्टी कमेटी के अध्यक्ष मो. अकबर ने इसकी पुष्टि की है, बल्कि यह भी कहा कि बार काऊंसिल ने ट्रस्ट में जमा राशि का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है। दुबे ने यह भी बताया कि अधिवक्ताओं ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर अपनी समस्या बताई थी, जिस पर विधिवत प्रस्ताव आने पर हरसंभव मदद का आश्वासन दिया गया है लेकिन उससे पहले बार काऊंसिल को ट्रस्ट में जमा राशि से मदद के लिए सहमति और प्रस्ताव देना होगा। राज्य सरकार की ओर से महाअधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने भी बताया कि उन्होंने काउन्सिल के सभी सदस्यों को एक पत्र लिखकर प्रस्ताव मांगा था ताकि मुख्यमंत्री से हुई चर्चा के अनुरूप अधिवक्ताओं की सहायता के लिए कार्रवाई की जा सके।
हाईकोर्ट ने इसे अत्यन्त संवेदनशील बताते हुए एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित समाचार का उल्लेख किया जिसमें बताया गया था कि बेरोजगारी के कारण अधिवक्ता को आदिवासी इलाकों की टोकनियां बेचकर गुजारा करना पड़ा है। बार कौंसिल की 3000 रुपये की मदद पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि एक बार की इतनी कम मदद से उनके 15 दिन का राशन भी पूरा नहीं हो पायेगा। यह कोई ठोस मदद नहीं है। यह सहायता बार काउन्सिल ऑफ इंडिया से आई राशि से की गई है। खुद स्टेट बार काऊंसिल की ओर से क्या सहायता की गई है यह जवाब में नहीं बताया गया है। अधिवक्ताओं को रोज कमाना, रोज खाना पड़ता है। अदालत स्टेट बार काउन्सिल के इस जवाब से सहमत नहीं थी कि अधिवक्ता कल्याण कोष का केवल अधिवक्ता की मौत पर इस्तेमाल किया जा सकता है। काऊंसिल ने मदद करने से फंड में कमी होने की चिंता जताई जिस पर कोर्ट ने कहा कि इससे बड़ा संकट कोई नहीं हो सकता, बाद में स्थिति सामान्य होने पर राज्य शासन से और मदद लेकर फंड में राशि प्राप्त की जा सकती है।
छत्तीसगढ़ बार एसोसिएशन की ओर से हस्तक्षेप याचिका के माध्यम से अपना पक्ष रखा। बार एसोसिएशन ने कोर्ट से भी सवाल किया कि उन्होंने इस मामले में क्या कदम उठाये हैं।
दूसरे याचिकाकर्ता आनंद मोहन तिवारी की याचिका को उपयुक्त नहीं बताने पर भी कोर्ट ने राज्य शासन के अधिवक्ता के तर्क पर असहमति जताई। उनकी याचिका पर तथा हाईकोर्ट के क्लर्क, टाइपिंग, फोटोकॉपी एसोसियेशन की अलग से सुनवाई की जायेगी।
कोर्ट ने स्टेट बार काऊंसिल से अधिवक्ता कल्याण न्यास की राशि का अधिवक्ता कल्याण के लिए उपयोग पर की गई कार्रवाई, अधिवक्ताओं को मिली मदद पर विस्तार से उत्तर देने के लिये कहा है जिसकी सुनवाई अगले सप्ताह 26 जून को होगी।