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80 के दशक में शुरू हुआ सशस्त्र नक्सल आंदोलन में 38 पुलिसकर्मी हुए शहीद, 45 नक्सली भी ढेर
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 12 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षाबलों की लड़ाई मध्यप्रदेश के बालाघाट में अब इतिहास में तब्दील हो गई है। मध्यप्रदेश के बालाघाट और मंडला-डिंडोरी के जंगलों में हथियारबंद आंदोलन चलाने वाले नक्सलियों ने पूरी तरह से अपना हथियार डाल दिया है।
इसी के साथ ही मध्यप्रदेश में सशस्त्र नक्सल आंदोलन के जरिये लाल गलियारा बनाने का रास्ता भी बंद हो गया है। औपचारिक रूप से बालाघाट आईजी संजय कुमार ने यह जानकारी उस वक्त दी, जब डीवीसी मेम्बर दीपक उर्फ सुधाकर ने अपने साथी रोहित उर्फ मंगलू के साथ सशस्त्र मुख्यधारा में वापसी की। आईजी का कहना है कि अब बालाघाट रेंज में सक्रिय नक्सल सदस्य नहीं रह गए। इसी के साथ विकास का द्वार इलाकों में खुलेगा।
इधर 80-90 के दशक से शुरू हुआ नक्सल आंदोलन में न सिर्फ पुलिस जवानों को, बल्कि आम लोगों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। पुलिस के मुताबिक नक्सलियों के खिलाफ पहला आपराधिक मामला सन् 1990 में बिरसा थाना क्षेत्र में हुए आपराधिक घटना के तहत दर्ज हुआ था। इसके बाद से धीरे-धीरे सुरक्षा बलों की तैनाती का सिलसिला शुरू हुआ। वर्ष 1990 से 2025 तक नक्सल विरोधी अभियान में 38 पुलिसकर्मी शहीद हुए। इसके अलावा 57 निर्दोषों की हत्या की गई। साथ ही पुलिस ने भी जवाबी लड़ाई में 45 हार्डकोर नक्सलियों को मार गिराया। इसके अलावा 28 नक्सली पुलिस के गिरफ्त में भी आए।
बताया जा रहा है कि करीब 4 दशक तक चली इस लड़ाई में हॉकफोर्स, सीआरपीएफ, कोबरा फोर्स और जिला पुलिस के जवानों ने संघर्ष किया। केंद्र सरकार ने नक्सल समस्या के खात्मे के लिए मार्च 2026 का डेडलाइन तय किया था। इससे पहले नक्सलियों ने सरेंडर का रास्ता चुना। पिछले दो साल के भीतर नक्सलियों पर फोर्स काफी हावी रही।
बताया जा रहा है कि नक्सल संगठन के लिए पुलिस के सामने टिकना असंभव सा बन गया। ऐसे में नक्सलियों ने समर्पण करने में अपनी भलाई समझी। बालाघाट रेंज में साल 2025 में 10 हार्डकोर नक्सलियों को ढेर किया गया। जिससे नक्सल संगठन की नींव हिल गई। पिछले 3 से 4 साल के भीतर बालाघाट पुलिस ने सिलसिलेवार सीमा पर सुरक्षा कैम्प खोलकर भी नक्सलियों की आवाजाही को सीमित रखा। इसके चलते नक्सल संगठन आगे नहीं बढ़ पाया। बहरहाल मध्यप्रदेश का सर्वाधिक नक्सलग्रस्त बालाघाट रेंज अब पूरी तरह से नक्सलियों के चंगुल से बाहर आ गया है। ऐसे में अब सुदूर इलाकों में विकास की रफ्तार तेज होगी।


