ताजा खबर
-चंदन कुमार जजवाड़े
केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने के लिए केंद्र सरकार ने एक विधेयक पेश करने का प्रस्ताव रखा है.
इस विधेयक के पास होने के बाद चंडीगढ़ में प्रशासक के रूप में एलजी (लेफ़्टिनेंट गवर्नर) की नियुक्ति की जा सकेगी.
लोकसभा और राज्यसभा के 21 नवंबर के बुलेटिन के अनुसार, सरकार 1 दिसंबर, 2025 से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में 131वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025 पेश करेगी.
मौजूदा समय में पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ (केंद्र शासित प्रदेश) के प्रशासक हैं.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग समेत कई नेताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध किया है.
इस विरोध के बाद गृह मंत्रालय ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट के ज़रिए सफाई दी है. मंत्रालय का कहना है कि यह मामला अभी विचाराधीन है और इस पर कोई अंतिम फ़ैसला नहीं लिया गया है.
गृह मंत्रालय के मुताबिक़, "केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के लिए सिर्फ केंद्र सरकार के कानून बनाने की प्रक्रिया को सरल करने का प्रस्ताव अभी विचाराधीन है. इस प्रस्ताव पर कोई अंतिम फ़ैसला नहीं लिया गया है. "
"इस प्रस्ताव में किसी भी तरह से चंडीगढ़ की शासन-प्रशासन की व्यवस्था या चंडीगढ़ के साथ पंजाब या हरियाणा के परंपरागत संबंधों को बदलने की कोई बात नहीं है."
"चंडीगढ़ के हितों को ध्यान में रखते हुए सभी हितधारकों से पर्याप्त विचार विमर्श के बाद ही उचित फ़ैसला लिया जाएगा."
मंत्रालय का कहना है, "इस विषय पर चिंता की ज़रूरत नहीं है. संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इससे जुड़ा कोई बिल पेश करने की केंद्र सरकार की कोई मंशा नहीं है."
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 240 देश के राष्ट्रपति को ख़ासकर केंद्र शासित प्रदेशों में शांति, विकास और व्यवस्था सुनिश्चित करने का अधिकार देता है.
यह अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव के साथ ही पुडुचेरी जैसे अन्य बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होता है.
चंडीगढ़ का प्रशासन फ़िलहाल पंजाब के राज्यपाल के अधीन है. राज्यपाल राज्य के मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करते हैं तो इस तरह से चंडीगढ़ से जुड़े मामलों पर पंजाब सरकार का परोक्ष दखल होता है.
लेकिन अगर यह एलजी के अधीन आ गया तो यह आशंकाएं है कि यह अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह केंद्र के अधीन आ जाएगा.
साल 1961 की जनगणना के बाद भाषा के आधार पर साल 1966 में पंजाब और हरियाणा राज्य अलग-अलग अस्तित्व में आए तो दोनों की राजधानी चंडीगढ़ बनी.
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी कहते हैं, "मैंने इस प्रस्ताव को बारीकी से नहीं पढ़ा है लेकिन मौजूदा व्यवस्था में चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल चलाते हैं. अलग से प्रशासक नियुक्त करने पर यह केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन आ जाएगा."
वो कहते हैं, "सबकुछ तो केंद्र सरकार के अधीन ही है, इसलिए इससे बहुत अंतर नहीं पड़ेगा, लेकिन चंडीगढ़ के साथ पंजाब के लोगों की भावना जुड़ी हुई है. वो इस पर अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहते."
पीडीटी आचारी कहते हैं कि 1970 के दशक में चंडीगढ़ को अपना बताते हुए पंजाब में एक स्लोगन बहुत लोकप्रिय था- 'खिड़िया फूल गुलाब दा, चंडीगढ़ पंजाब दा'.
चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा और पंजाब का दावा दशकों पुराना है. कई समझौतों और आयोग के बनने के बाद भी इस मसले का फ़ैसला नहीं हो पाया है.
चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "सरकार ने सफाई दी है कि वो फ़िलहाल ऐसा कोई विधेयक नहीं ला रही है. दरअसल सरकार ने ख़ुद इस मुद्दे को उछाला. ये मौजूदा सरकार का तरीका है कि पहले वो लोगों की प्रतिक्रिया देखती है और फिर उसके मुताबिक़ आगे बढ़ती है."
हेमंत अत्री के मुताबिक़ चंडीगढ़ शहर साल 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौर में बसाया गया था.
उस वक्त पेप्सू स्टेट की राजधानी पटियाला हुआ करती थी, जबकि पूर्वी पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ को बनाया गया.
हेमंत अत्री बताते हैं, "साल 1956 में दोनों को मिलाकर पंजाब राज्य बना और साल 1966 तक चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी थी. चंडीगढ़ को लेकर दावा उसी साल शुरू हुआ था, जब हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और पंजाब राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत चंडीगढ़ को यूटी घोषित कर दिया गया."
संविधान विशेषज्ञ संजय हेगड़े कहते हैं, "कहा जाता है कि चंडीगढ़ को बसाने के लिए 1950 के दशक में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों, अपने पास काम से आए लोगों को कहते थे कि चंडीगढ़ में ज़मीन ख़रीदो. इस शहर को पंजाब के कुछ गाँवों को अधिग्रहण कर बसाया गया है. यह एक इमोशनल मुद्दा है."
संजय हेगड़े के मुताबिक़, "साल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत भी चंडीगढ़ पूरी तरह पंजाब को मिलना था और हरियाणा को अपनी अलग राजधानी बनानी थी."
राजीव-लोंगोवाल समझौते में नई राजधानी और पानी के बंटवारे के साथ ही कुछ अन्य बातें भी थीं, जिसे पंजाब और हरियाणा में से किसी ने नहीं माना.
लेकिन संजय हेगड़े कहते हैं कि पंजाब के लोग आज भी मानते हैं कि एक दिन चंडीगढ़ उनका होगा.
चंड़ीगढ़ को अनुच्छेद 240 के अधीन लाने की ख़बर सामने आते ही कई विरोधी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस पर टिप्पणी शुरू कर दी.
पंजाब से राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने एक्स पर पोस्ट कर अपनी प्रतिक्रिया दी.
साहनी ने लिखा, "नए कानून के तहत, इसमें लक्षद्वीप और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के समान ही प्रशासनिक नियम होंगे और इसका एक स्वतंत्र प्रशासक भी हो सकता है."
पंजाब से राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी
उन्होंने लिखा कि चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे का ऐतिहासिक महत्व है. विभाजन के बाद, लाहौर पाकिस्तान में चला गया, इसलिए चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया. साल 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद, इसे पंजाब और हरियाणा की राजधानी बनाया गया.
वहीं पंजाब के मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा, "बीजेपी पंजाब और उसके लोगों से नफ़रत करती है... वे किसानों, विश्वविद्यालयों और पंजाब के लोगों पर लगातार हमला करते रहते हैं."
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट में लिखा कि यह संशोधन पंजाब के हित के ख़िलाफ़ है.
उन्होंने लिखा, "केंद्र सरकार पंजाब के ख़िलाफ़ जो साज़िश रच रही है, उसे हम कतई कामयाब नहीं होने देंगे. हमारे पंजाब के गांवों को उजाड़कर बनाए गए चंडीगढ़ पर सिर्फ़ पंजाब का हक़ है. हम अपने हक़ को बर्बाद नहीं होने देंगे. इसलिए हमें जो भी क़दम उठाने होंगे, हम उठाएंगे."
एक प्रेस बयान में मुख्यमंत्री ने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब का अभिन्न अंग था, है और रहेगा.
उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य अपनी राजधानी से वंचित नहीं है, जबकि पंजाब अपनी राजधानी से वंचित है और देश में कहीं भी ऐसा उदाहरण नहीं है जहां भाषा के आधार पर राज्य बनने के बाद उसे राजधानी से वंचित किया गया हो.
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने भी इस मुद्दे पर अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, "चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने के लिए भारत के संविधान में प्रस्तावित 131वां संशोधन काफ़ी चिंताजनक है."
उन्होंने कहा, "यदि यह कानून बनाया गया तो पंजाब में इसके गंभीर परिणाम होंगे. मैं भारत सरकार से इस मामले को स्पष्ट करने की अपील करता हूं क्योंकि इससे पूरे पंजाब में काफ़ी चिंता पैदा हो गई है."
उन्होंने लिखा कि चंडीगढ़ पंजाब का है, इसकी स्थिति बदलने की किसी भी कोशिश का विरोध किया जाएगा.
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया और कहा, "यह विधेयक चंडीगढ़ पर पंजाब के छोटे प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण को ख़त्म करने का प्रयास करता है और चंडीगढ़ पर पंजाब के राजधानी होने के दावे को स्थायी रूप से समाप्त कर देगा."
वहीं पंजाब के पूर्व मंत्री और भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे परगट सिंह ने कहा, "बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 131वाँ संविधान संशोधन विधेयक का मक़सद चंडीगढ़ को पंजाब से पूरी तरह छीनकर उसे एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाना है. इसे पंजाब कभी स्वीकार नहीं करेगा."
"मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करता हूं कि सोमवार के विधानसभा सत्र में इस पंजाब विरोधी कदम का कड़ा विरोध करें और इसके ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करें. इसके लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए ताकि पंजाब एकजुट हो सके."
पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि बीजेपी सरकार जो संविधान (131वाँ संशोधन) विधेयक ला रही है, वह मूलतः चंडीगढ़ पर कब्ज़ा करने की एक कोशिश है.
उन्होंने आरोप लगाया, "बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से, पंजाब ने पिछले 5-7 चुनावों में लगातार प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा-आरएसएस की विचारधारा के ख़िलाफ मतदान किया है, और अब चंडीगढ़ पर कब्ज़ा करने की यह उनकी अंतिम कोशिश है..."
विपक्षी दलों के विरोध के बाद इस मुद्दे पर बीजेपी नेताओं ने भी प्रतिक्रिया दी है.
बीजेपी नेता आरपी सिंह ने कहा, "भगवंत मान और अन्य विपक्षी नेता बिना किसी जानकारी के इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. इससे कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है."
"मैं भगवंत मान, बादल या किसी भी अन्य कांग्रेस नेता को चुनौती देता हूं कि वे आगे आएं और मेरे साथ इस मुद्दे पर बहस करें."
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "ये मौजूदा सरकार का एसओपी है कि पहले वो देखते हैं लोग किसी मुद्दे पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. जिस मुद्दे को 5-6 आयोग बनने के बाद नहीं सुलझाया जा सका है, वो कितना अहम हो सकता है, इसका सरकार को अंदाज़ा नहीं है." (bbc.com/hindi)


