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(कर्स्टन ए डोनाल्ड, केप टाउन विश्वविद्यालय और लुसिंडा त्सुंगा, केप टाउन विश्वविद्यालय)
केप टाउन, 17 नवंबर। दुनियाभर के कई देशों में बच्चे हिंसा के बीच बड़े हो रहे हैं। यह हिंसा घर पर, उनके पड़ोस में या दोनों जगह हो सकती है।
इससे कुछ बच्चों को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचता है जबकि कुछ बच्चों को उनकी देखभाल करने वालों के बीच या अपने समुदायों में हिंसा के कारण अप्रत्यक्ष नुकसान होता है। किसी भी प्रकार से हिंसा के बीच बड़े होने का बच्चों पर गहरा असर पड़ सकता है।
साक्ष्य दर्शाते हैं कि हिंसा और खराब मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध बच्चे के स्कूल की आयु से पहले ही देखा जा सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, बचपन में हिंसा के संपर्क में आने से इसका असर जीवन भर नजर आता है।
हम बाल चिकित्सा तंत्रिका विज्ञान एवं मनोविज्ञान के शोधकर्ता हैं और यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हिंसा के शुरुआती अनुभव छोटे बच्चों के संज्ञानात्मक और भावनात्मक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।
यहां हम 20 देशों में किए गए अध्ययनों की समीक्षा और दक्षिण अफ्रीका में बच्चों के एक बड़े समूह से प्राप्त नए आंकड़ों से प्राप्त निष्कर्षों पर चर्चा कर रहे हैं।
हमने पाया कि जिन देशों का हमने अध्ययन किया, उन सभी में बच्चों के लिए हिंसा का सामना करना बेहद आम है और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव बचपन में ही दिखाई देने लगता है।
इससे निपटने के लिए सभी स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता होगी - परिवार, समुदाय, स्वास्थ्य प्रणालियां और सरकारें।
अनुसंधान में कमियां
शैशवावस्था (जन्म से आठ वर्ष तक) बच्चों के भावनात्मक, सामाजिक और संज्ञानात्मक विकास की अत्यंत महत्वपूर्ण अवधि होती है। स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी या संज्ञानात्मक चुनौतियां किशोरावस्था और वयस्क जीवन को भी प्रभावित कर सकती हैं।
इसके बावजूद, कम और मध्यम आय वाले देशों में छोटे बच्चों पर हिंसा के प्रभाव को लेकर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, जबकि इन देशों में हिंसा की दर अक्सर अधिक होती है। अधिकतर शोध स्कूल जाने वाले बच्चों या किशोरों पर केंद्रित रहता है।
हमने इस कमी को दूर करने के लिए मौजूदा जानकारी को एकजुट किया और दक्षिण अफ्रीका के बच्चों पर आधारित नए प्रमाण जुटाए। यही कार्य सह-लेखक लुसिंडा के पीएचडी शोध का मुख्य आधार बना।
हमने बच्चों के जीवन में साढ़े चार वर्ष की आयु तक हुई विभिन्न प्रकार की हिंसा की घटनाओं का आकलन किया और पांच वर्ष की उम्र में उनके मानसिक स्वास्थ्य की जांच की।
हमने क्या पाया:
शोध में पाया गया कि छोटे बच्चों का हिंसा के संपर्क में आना विश्वभर में बेहद आम है। कुल 20 देशों के 27,643 बच्चों पर आधारित अध्ययनों में से 70 प्रतिशत से अधिक में यह सामने आया कि दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा और युद्ध जैसी स्थितियों का सामना करने वाले बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताएं कमजोर हो जाती हैं।
दक्षिण अफ्रीका से जुड़े अध्ययन में पाया गया कि 4.5 वर्ष की आयु तक 83 प्रतिशत बच्चों ने किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया।
बचपन में हिंसा मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है, इस बारे में दक्षिण अफ्रीका से जुड़े आंकड़ों से पता चला है कि अधिक हिंसा के संपर्क में आने वाले बच्चों में चिंता, भय या उदासी जैसे आंतरिक लक्षण और आक्रामकता, अतिसक्रियता और नियम तोड़ने जैसे बाहरी लक्षण नजर आते हैं।
जन स्वास्थ्य चुनौती
ये परिणाम एक बड़ी जन स्वास्थ्य चुनौती को उजागर करते हैं। हिंसा के असर स्कूल में प्रवेश से पहले ही दिखाई देते हैं, जिससे पता चलता है कि हिंसा का संपर्क औपचारिक शिक्षा शुरू होने से बहुत पहले ही विकास को प्रभावित कर सकता है।
हिंसा से जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम पांच साल की उम्र से ही दिखाई देने लगते हैं, इसलिए हस्तक्षेप करने के लिए स्कूल जाने की उम्र होने तक इंतजार करना ठीक नहीं है।
अब आगे क्या
वास्तविकता गंभीर है और सभी स्तरों-परिवार, समुदाय, स्वास्थ्य प्रणालियों और सरकारों के स्तरों पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है।
शुरुआती बाल्यावस्था में हिंसा से संपर्क निम्न और मध्यम आय वाले देशों में व्यापक है और इसका छोटे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर स्पष्ट असर पड़ता है। इनसे निपटने के लिए हर स्तर पर शीघ्र हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। भविष्य में स्वस्थ और सुरक्षित समुदायों के निर्माण के लिए सुरक्षा और समर्थन आवश्यक है। (द कन्वरसेशन)


