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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरुद, 6 नवंबर। एक सडक़ हादसे का शिकार होकर अपने जिस्म के 95 फीसदी हिस्से से नियंत्रण खो चुके बसंत ने अपनी जिजीविषा से कैनवास, कुची और रंगों के सहारे जीवन में फिर से बहार लाने का जो सफर तीन दसक पूर्व शुरु किया था, अब जाकर भारत सरकार ने इस कलाकार की साधना को मान्यता देते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चयनित किया है।
भारत सरकार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दिव्यांगजन सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार 2025 के अंतर्गत कुरुद के प्रसिद्ध चित्रकार बसन्त साहू को सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन चुना गया है। यहाँ पर यह बताना लाजमी होगा कि 15 सितंबर 1995 को एक सडक़ हादसे में बसंत के रीढ़ की हड्डी बुरी तरह प्रभावित हो गई। डॉक्टरों ने स्पष्ट कर दिया कि उनका 95 फीसदी शरीर काम नहीं करेगा। इस घटना के बाद वे महीनों बिस्तर पर रहे और बिस्तर पर लेटे हुए दीवारों पर लगी तस्वीरों को देख देख कर चित्रकारी का मन बना लिया। इसके बाद उन्होंने कोरे कागज पर चित्र उकेरने शुरू किया। लेकिन हाथों की उंगलियां साथ नहीं दे रही थी। तब उन्होंने अपने दाएं हाथ में एक पट्टा बंधवा उसमें ब्रश फंसाकर कैनवास में लकीरे उकेरने लगे।
वे रंगों में ब्रश डूबोते हैं और कांपते हाथों से उकेरे लकीरों को रंगों से भर देते हैं। एक तस्वीर बनने में उन्हें चार से पांच दिन लग जाते हैं। उनकी कलाकृतियों के बारे में कला प्रेमियों और विशेषज्ञों का मानना है कि बसंत की पेंटिंग्स सौंदर्य में बेजोड़ और उनमें संवेदनशीलता और गहराई का अद्भुत मेल भी होता है। 52 वर्षीय बसंत पिछले 30 वर्षों से व्हीलचेयर के सहारे रंगों का संसार रचने में लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर 3 दिसंबर को नई दिल्ली में बसंत साहू को राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया जाएगा।
भारत सरकार की ओर से उन्हें इस सम्मान से संबंधित आधिकारिक पत्र प्राप्त हो चुका है। इस बारे में बसंत का कहना है कि जब कर्म समर्पण बन जाए,और सीमाएं साधना तो पुरस्कार नहीं, परमात्मा की कृपा मिलती है। मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना जाना केवल मेरा नहीं, मेरी माँ की तपस्या, रंगों के विश्वास और लोगों के स्नेह का प्रतिफल है। मैंने जीवन से सीखा शरीर सीमित हो सकता है,पर आत्मा की उड़ान अनंत होती है। मेरी हर रचना उसी उड़ान की गवाही है।


