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तस्वीर / सोशल मीडिया
किसी जिंदगी में कैसा-कैसा उतार-चढ़ाव हो सकता है, यह देखना हो तो 9 महीने की उम्र में भारत से अमरीका गए वेदम सुब्रमण्यम की जिंदगी को देखना चाहिए। 1962 में वे परिवार सहित अमरीका पहुंचे, अमरीकी संस्कृति के हिसाब से उन्हें उनके संक्षिप्त नाम सुबु से बुलाया जाने लगा, और कॉलेज छात्र रहते हुए उनके एक सहपाठी का कत्ल हो गया, बिना सुबूत, बिना हथियार, बिना हत्या के इरादे के, सिर्फ परिस्थितियों को देखते हुए सुबु को सजा सुना दी गई। 1983 में सुनाई गई उम्रकैद अभी 2025 में अमरीका की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एफबीआई की इस रिपोर्ट पर खारिज की गई जिसमें कहा गया था कि जिस बंदूक से गोली चलना बताया गया है, उससे गोली चली ही नहीं थी। अब इसी महीने 3 तारीख को जब उनकी बहन उनकी रिहाई के लिए जेल पहुंची, तो अमरीका से प्रवासियों को बाहर निकालने वाली एजेंसी आईस ने उन्हें फिर गिरफ्तार करके एक हिरासत केन्द्र में रख दिया, क्योंकि उनके खिलाफ 1999 का एक और मामला दर्ज था। अब उन्हें विदेशी अपराधी कहकर भारत भेजने की तैयारी हो रही है जहां वे 9 महीने की उम्र के बाद कभी रहे नहीं, जहां उनके कोई रिश्तेदार भी नहीं रह गए। वेदम सुब्रमण्यम 64 बरस की उम्र में अमरीका और भारत के बीच हिरासत में अटके हुए हैं, और यह नौबत 43 बरसों की बेगुनाही वाली कैद के बाद अब एक छोटे से मामले को लेकर अचानक फिर सामने आई है। अमरीका में भारतवंशी लोग बरसों से सुबु की रिहाई के लिए लगे हुए थे, और रिहाई का दिन आकर, उन्हें एक दूसरी हिरासत में भेजकर चले गया।
किसी देश के कानून के बारे में हम कोई राय कायम करना नहीं चाहते, लेकिन जिंदगी कैसे खेल खेलती है, यह जरूर सोचने की जरूरत है। हर किसी को अपनी जिंदगी में कई तरह के नाटकीय मोड़ झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। दो दिन पहले बीबीसी की एक रिपोर्ट बता रही थी कि किस तरह अमरीका में भारतीय सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ लगने की वजह से भारत में अच्छे-खासे चलते कारोबार बंद हो रहे हैं, और उनमें काम करने वाले कामगार और मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं। कालीन बनाने वाले बुनकरों के बच्चों की पढ़ाई छूटने की नौबत आ गई है क्योंकि अमरीकी कारोबारियों ने कालीन आयात करने के ऑर्डर रद्द कर दिए हैं। अब एक वक्त जो कारोबार डॉलर में कमाई करते थे, आज उनके पास रूपयों में देने के लिए भी मजदूरी नहीं है। जिंदगी की ऐसी कहानियों को हम अहमियत इसलिए देते हैं कि हममें से किसी का भी दिल-दिमाग यह मानने को तैयार नहीं रहता कि इतना बुरा कुछ उनके साथ हो सकेगा। अब दो दिन पहले की ही छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की एक घटना है। एक नौजवान दुकान बंद करके घर जा रहा था, और दुपहिया रात में सामने खड़ी ट्रक से जा टकराया, उसकी मौके पर ही मौत हो गई। यह जानकारी फोन पर उसके भाई को मिली, और वह दुपहिए पर सवार होकर इस घटनास्थल की तरफ निकल पड़ा, रास्ते में उसकी टक्कर एक कार से हो गई, और सडक़ पर वह भी मर गया। एक ही रात, एक ही शहर में दो सगे भाई इस तरह गुजर जाएंगे, क्या उनकी बूढ़ी मां ने कभी ऐसी कल्पना की होगी? कौन यह सोच सकते थे कि दो अलग-अलग हादसों में दो सगे भाईयों की एक सरीखी मौत हो जाएगी? लेकिन जिंदगी कई तरह के खेल खेलती है।
कई ऐसे मामले सुनाई पड़ते हैं जिनमें पति-पत्नी किसी झगड़े की वजह से एक-दूसरे को मार देते हैं, और खुद भी मर जाते हैं। कुछ दूसरे मामलों में एक को मारकर दूसरे को जेल जाना भी मंजूर रहता है। पीछे उनके छोटे-छोटे से बच्चे रह जाते हैं। अभी एक मामला हमारे पास ही ऐसा हुआ जिसमें एक गरीब परिवार के तीन या चार छोटे-छोटे बच्चे मां के पास बैठे हुए ही थे, और पिता की किसी बात को लेकर मां से बहस हुई, और उसने बच्चों की मौजूदगी में अपनी पत्नी को काट डाला। वह तो मर गई, पति जेल चले गया, और तीन-चार बच्चे बेसहारा हो गए। गरीबों के बीच में आसपास के रिश्तेदारों की भी इतनी क्षमता तो रहती नहीं है कि बिना मां-बाप के तीन-चार बच्चों को और लोग पाल लें। अब इनका भविष्य, और उसके भी पहले उनका वर्तमान कैसा होगा, यह सोचने की बात है। अभी कल की ही खबर है कि एक परिवार में घर के मुखिया की शराबखोरी की आदत, और नशे में रोज झगड़ा झेल-झेलकर थके हुए मां-बेटे ने ही मिलकर बाप को मार डाला, और अब मां-बेटा दोनों गिरफ्तार भी हो गए। इस तरह की घटनाएं रोज हो रही हैं। इनके बाद परिवार की क्या हालत होती होगी, यह कल्पना बहुत मुश्किल नहीं है।
इन दिनों चलते हुए साइबर क्राईम की वजह से लोगों को ब्लैकमेल करना, उनकी पाई-पाई निचोड़ लेना, उन्हें खुदकुशी को मजबूर कर देना, यह चलते ही रहता है। अब सोचिए कि किसी की जिंदगी भर की कमाई अगर ऐसी एक अकेली जालसाजी और धोखाधड़ी में पूरी की पूरी चली जाए, तो जिंदगी क्या रह जाएगी? कैसे कटेगी? ऐसा कई जगह हो रहा है। लोगों को डिजिटल अरेस्ट करके रखा जा रहा है, उनके कुछ नग्न या अश्लील वीडियो भी बना लिए जा रहे हैं, और ब्लैकमेलर जोंक की तरह उनके बदन के खून की एक-एक बूंद चूस ले रहे हैं। दुनिया भर की साइबर-सुरक्षा एजेंसियां, और पुलिस मिलकर भी मुजरिमों का कोई मुकाबला नहीं कर पा रही हैं, जो कि हर दिन अपना जाल अधिक बड़ा करते चल रहे हैं।
इस बारे में लिखते हुए हमारे पास और तो कोई समाधान नहीं है, सिवाय इसके कि लोग जहां तक हो सके, जितनी हो सके, उतनी सावधानी बरतें। कुछ हादसे सिगरेट-तम्बाकू से दूर रहकर कैंसर से बचकर टाले जा सकते हैं, कुछ हेलमेट के इस्तेमाल से टल सकते हैं, और कई हादसे साइबर जालसाजी-धोखाधड़ी की खबरों को पढक़र सावधान रहकर टाले जा सकते हैं। लोग नशे से दूर रहकर भी बच सकते हैं। अब अमरीका में एक प्रोफेसर पिता और लाइब्रेरियन मां के बेटे सुबु वेदम को नशे के सामान के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था, और 1999 में उनके वकीलों ने यही बेहतर पाया कि वे अमरीकी कानून के मुताबिक न जुर्म मंजूर करें, और न ही जुर्म का खंडन करें। आज 43 बरस बाद जब वे एक आजाद नागरिक हो सकते थे, तब 1999 का यह मामला आज 25 बरस बाद उन्हें अमरीका से मुजरिम की तरह, कैदी बनाकर, भारत भेज देने के लिए काफी है। जिन लोगों को किस्मत, बदकिस्मती, संयोग-दुर्योग पर भरोसा है, उनकी बात वे जानें, हम तो सिर्फ यह कह सकते हैं कि लोग मुसीबत और हादसों से बचने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर लें, पूरी सावधानी बरत लें, और उससे हर हादसा चाहे न टले, बहुत किस्म की मुसीबतें टल सकती हैं, कम हो सकती हैं। जिंदगी और दुनिया में ऐसी मुसीबतों को कम करना छोटी बात नहीं रहती, और उसके लिए कोशिश करनी चाहिए, बजाय दूसरों के संयोग या दुर्योग को गिनाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


