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‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
नेपाल, 10 सितंबर । हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा देश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक चुनौतियों और सामाजिक असंतोष के कारण बार-बार सुर्खियों में रहा है। 8 सितंबर 2025 को काठमांडू और अन्य शहरों में हुए उग्र प्रदर्शन इस असंतोष की एक तीव्र अभिव्यक्ति थे, जिनमें कम से कम 19 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। इन प्रदर्शनों को 'जेन-जी' (Gen Z) प्रोटेस्ट कहा गया, क्योंकि इनमें मुख्य रूप से युवा शामिल थे, जो सोशल मीडिया बैन के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे। लेकिन यह सिर्फ एक ट्रिगर था; असल वजहें गहरी जड़ें वाली हैं, जैसे भ्रष्टाचार, आर्थिक अवसरों की कमी, बेरोजगारी और राजनीतिक नेतृत्व की विफलता। इस लेख में, हम इन वजहों को 1500 शब्दों में विस्तार से समझेंगे, ताकि एक संपादकीय की पृष्ठभूमि तैयार हो सके। हम तथ्यों पर आधारित रहेंगे, विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी का उपयोग करेंगे, और नेपाल की ऐतिहासिक-सामाजिक संदर्भ को भी शामिल करेंगे।
तत्काल ट्रिगर: सोशल मीडिया बैन का फैसला
8 सितंबर के प्रदर्शनों का सबसे प्रत्यक्ष कारण नेपाल सरकार द्वारा लगाया गया सोशल मीडिया बैन था। सरकार ने 3 सितंबर 2025 तक 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व ट्विटर), यूट्यूब, व्हाट्सएप और लिंक्डइन – को नेपाल में रजिस्टर करने का अल्टीमेटम दिया था। ये प्लेटफॉर्म्स रजिस्टर नहीं हुए, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने इन्हें ब्लॉक कर दिया। अधिकारियों का दावा था कि यह कदम सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया था, जिसमें फेक न्यूज, हेट स्पीच, फ्रॉड और साइबर अपराध शामिल थे। नेपाल के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि रजिस्ट्रेशन से प्लेटफॉर्म्स को स्थानीय कानूनों के तहत जवाबदेह बनाया जा सकता था।
यह बैन अचानक और व्यापक था, जिसने नेपाल की 3 करोड़ आबादी के 90% से अधिक इंटरनेट यूजर्स को प्रभावित किया। कई नेपाली विदेश में काम करने वाले प्रवासियों से जुड़े रहने के लिए इन प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर थे। उदाहरण के लिए, व्हाट्सएप का उपयोग परिवारों से संपर्क के लिए आम था, और यूट्यूब एंटरटेनमेंट व शिक्षा का स्रोत। बैन के बाद लोग वाइबर जैसे अल्टरनेटिव्स पर शिफ्ट हुए, लेकिन यह असुविधा ने युवाओं में गुस्सा भड़का दिया। प्रदर्शनकारी इसे सेंसरशिप का हथियार मानते थे, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रहा था। अधिकार समूहों, जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल, ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया।
काठमांडू में संसद भवन के बाहर शुरू हुए प्रदर्शन जल्दी ही उग्र हो गए। हजारों युवा, जिनमें स्कूल-कॉलेज छात्र शामिल थे, ने नारे लगाए: "सोशल मीडिया बैन हटाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ।" पुलिस ने बैरिकेड्स तोड़े जाने पर वाटर कैनन, आंसू गैस, रबर बुलेट्स और लाइव फायरिंग का इस्तेमाल किया। काठमांडू के अलावा इटाहारी जैसे पूर्वी शहरों में भी हिंसा हुई, जहां दो मौतें हुईं। कुल 19 मौतें और 300 से अधिक घायल दर्ज किए गए। सरकार ने कर्फ्यू लगाया और सेना को तैनात किया, लेकिन प्रदर्शन इतने बड़े थे कि वे दशकों में सबसे हिंसक माने गए।
गहरे कारण : भ्रष्टाचार और राजनीतिक विफलता
सोशल मीडिया बैन सिर्फ आग में घी का काम किया; असल आग भ्रष्टाचार की थी, जो नेपाल में एक पुरानी बीमारी है। प्रदर्शनकारियों ने इसे मुख्य मुद्दा बनाया, आरोप लगाते हुए कि प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार भ्रष्टाचार पर कार्रवाई में विफल रही है। नेपाल में भ्रष्टाचार इंडेक्स में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, देश निचले पायदान पर है। हाल के वर्षों में कई घोटाले उजागर हुए, जैसे 2017 का एयरबस डील, जिसमें नेपाल एयरलाइंस ने दो A330 जेट खरीदे, लेकिन इसमें कमीशन और अनियमितताओं के आरोप लगे। इसी तरह, कोविड-19 वैक्सीन खरीद और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में नेपोटिज्म के मामले सामने आए।
ओली सरकार, जो 2024 में सत्ता में आई, ने भ्रष्टाचार मिटाने का वादा किया था, लेकिन विरोधियों का कहना है कि यह सिर्फ बातें हैं। संसद में चर्चाएं होती हैं, लेकिन जांच कभी पूरी नहीं होती। युवाओं का मानना है कि भ्रष्टाचार आर्थिक अवसरों को छीन रहा है। नेपाल की जीडीपी ग्रोथ 4-5% के आसपास है, लेकिन बेरोजगारी 12% से ऊपर। हर साल हजारों युवा विदेश (भारत, खाड़ी देश, मलेशिया) काम की तलाश में जाते हैं। रेमिटेंस अर्थव्यवस्था का 25% है, लेकिन घरेलू नौकरियां नहीं हैं। जेन-जी, जो 1997-2012 के बीच जन्मे हैं, सोशल मीडिया पर इन मुद्दों को उठाते रहे हैं, लेकिन बैन ने उन्हें सड़कों पर ला दिया।
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता भी एक बड़ा कारण है। 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद, देश में 10 से अधिक सरकारें बदल चुकी हैं। कम्युनिस्ट और कांग्रेस पार्टियों के गठबंधन अस्थिर रहे हैं। ओली, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (UML) के नेता हैं, पर आरोप है कि वे सत्ता बचाने के लिए भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करते हैं। कुछ प्रदर्शनकारियों ने राजशाही बहाली की मांग भी की, जो मार्च 2025 में हुए प्रोटेस्ट्स से जुड़ी है, जहां दो मौतें हुईं। लेकिन मुख्य धारा युवाओं की थी, जो लोकतंत्र में सुधार चाहते थे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : नेपाल में प्रदर्शनों की परंपरा
नेपाल में प्रदर्शन कोई नई बात नहीं। 1990 का जन आंदोलन राजशाही को सीमित करने में सफल रहा, और 2006 का दूसरा जन आंदोलन राजा ज्ञानेंद्र की निरंकुशता समाप्त कर गणतंत्र लाया। लेकिन गणतंत्र के बाद भी असंतोष रहा। 2015 का भूकंप, जिसमें 9000 मौतें हुईं, ने सरकार की अक्षमता उजागर की। फिर, 2020-21 में कोविड महामारी ने अर्थव्यवस्था को झटका दिया, और भ्रष्टाचार बढ़ा।
हाल के वर्षों में, युवा-केंद्रित प्रोटेस्ट्स बढ़े हैं। 2023 में टिकटॉक बैन के खिलाफ प्रदर्शन हुए, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े थे। 2024 में पर्यावरण और जलवायु मुद्दों पर मार्च निकले। लेकिन 2025 के प्रदर्शन सबसे बड़े थे, क्योंकि सोशल मीडिया ने युवाओं को संगठित किया। बैन से पहले, एक्स और फेसबुक पर हैशटैग जैसे #EndCorruptionNepal और #LiftSocialMediaBan ट्रेंड कर रहे थे। यह दिखाता है कि डिजिटल स्पेस नेपाल में सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन चुका है।
आर्थिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण है। नेपाल की 60% आबादी 25 साल से कम उम्र की है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश कम है। विश्व बैंक के अनुसार, युवा बेरोजगारी 20% तक है। पर्यटन, कृषि और हाइड्रोपावर मुख्य सेक्टर हैं, लेकिन भ्रष्टाचार से प्रोजेक्ट्स रुकते हैं। उदाहरण के लिए, मेलमची वाटर प्रोजेक्ट वर्षों से लंबित है। युवा मानते हैं कि भ्रष्ट नेता उनके भविष्य को चुरा रहे हैं।
प्रदर्शनों का विवरण और पुलिस की भूमिका
8 सितंबर को सुबह काठमांडू के संसद भवन के बाहर हजारों जमा हुए। नारे लगाए गए, पत्थर फेंके गए, और बैरिकेड्स तोड़े गए। पुलिस ने पहले आंसू गैस यूज की, फिर रबर बुलेट्स, और अंत में लाइव फायरिंग। काठमांडू डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, 17 मौतें काठमांडू में हुईं, और 2 इटाहारी में। घायलों में कई युवा थे, जिनमें महिलाएं भी शामिल। प्रदर्शनकारियों ने संसद की सुरक्षा इमारत पर कब्जा करने की कोशिश की, जिससे हिंसा बढ़ी।
यह हिंसा नेपाल की पुलिस की ट्रेनिंग और मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठाती है। संयुक्त राष्ट्र ने जांच की मांग की, कहते हुए कि "हम हत्या और घायलों से स्तब्ध हैं।" विपक्षी पार्टियों ने ओली सरकार की आलोचना की, और कुछ गठबंधन सदस्यों ने इस्तीफे की मांग की।
सरकार की प्रतिक्रिया और बाद के घटनाक्रम
प्रदर्शनों के बाद, सरकार ने सोशल मीडिया बैन हटा लिया। गृह मंत्री ने कहा कि "जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए" यह फैसला लिया गया। एक जांच कमिटी बनाई गई, जो हिंसा के कारणों की जांच करेगी। ओली ने संसद में कहा कि प्रदर्शन "राजनीतिक रूप से प्रेरित" थे, लेकिन युवाओं की शिकायतों को मान्यता दी। हालांकि, आलोचक इसे देर से उठाया कदम मानते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अमेरिका, भारत और यूरोपीय संघ ने चिंता जताई। भारत, नेपाल का प्रमुख पड़ोसी, ने सीमा पर सतर्कता बढ़ाई, क्योंकि प्रदर्शन सीमा क्षेत्रों तक फैल सकते थे।
निष्कर्ष : सबक और भविष्य की दिशा
ये प्रदर्शन नेपाल के लिए एक वेक-अप कॉल हैं। वे दिखाते हैं कि युवा अब चुप नहीं रहेंगे। सोशल मीडिया बैन जैसे फैसले, जो अच्छे इरादे से लिए जाते हैं, लेकिन बिना विचार के, उल्टे पड़ सकते हैं। सरकार को भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई करनी होगी, जैसे स्वतंत्र जांच आयोग बनाना और पारदर्शिता बढ़ाना। आर्थिक सुधार, जैसे स्किल डेवलपमेंट और जॉब क्रिएशन, जरूरी हैं।
अगर नेपाल इन मुद्दों को नजरअंदाज करता रहा, तो ऐसे प्रदर्शन दोहराए जा सकते हैं। संपादकीय के नजरिए से, यह लोकतंत्र की ताकत दिखाता है, लेकिन पुलिस हिंसा की निंदा जरूरी है। अंत में, नेपाल के युवा एक बेहतर भविष्य चाहते हैं – भ्रष्टाचार मुक्त, अवसरपूर्ण और डिजिटल रूप से जुड़ा। यह बदलाव का समय है। (लेख 'छत्तीसगढ़' न्यूजडेस्क ने कई स्रोतों की जानकारी लेकर AI ग्रोक की मदद से बनाया है)