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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 9 सितंबर। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के फर्जी प्रमाणपत्र के मामले में बिलासपुर की तीन छात्राओं का मेडिकल कॉलेज में प्रवेश निरस्त कर दिया गया है। नीट परीक्षा पास करने के बाद छात्राओं ने दाखिले के लिए ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र पेश किया था, लेकिन तहसील कार्यालय की जांच में यह प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए।
करीब पखवाड़ेभर पहले सुहानी सिंह, श्रेयांशी गुप्ता और भव्या मिश्रा के परिजनों ने तहसील कार्यालय से ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र बनवाया था। मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया के दौरान संचालक चिकित्सा शिक्षा (डीएमई) ने दस्तावेजों को वेरिफिकेशन के लिए तहसील भेजा। तहसीलदार गरिमा ठाकुर ने जांच में साफ कहा कि तीनों प्रमाणपत्र नियमों के तहत जारी ही नहीं हुए और दस्तखत व सील फर्जी हैं। रिपोर्ट कलेक्टर संजय अग्रवाल को सौंपी गई।
डीएमई ने छात्राओं को 8 सितंबर तक सही दस्तावेज और स्पष्टीकरण देने का मौका दिया, लेकिन समय सीमा तक वे प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं कर सकीं। इसके बाद नियमों के तहत उनका प्रवेश रद्द कर दिया गया। अब तीनों इस साल किसी भी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाएंगी।
कलेक्टर संजय अग्रवाल ने कहा कि चूंकि छात्राओं ने नियमानुसार ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र नहीं बनवाया था, इसलिए वेरिफिकेशन में ही मामला उजागर हो गया। जांच में पता चला कि जारी किए गए प्रमाणपत्रों पर अलग-अलग सील लगी हैं और तहसीलदार के हस्ताक्षर भी मेल नहीं खाते। जबकि प्रमाणपत्र जारी होने की अवधि में केवल एक ही तहसीलदार पदस्थ थीं। तहसीलदार और एसडीएम ने इसे फर्जी बताते हुए रिपोर्ट कलेक्टर और चिकित्सा शिक्षा आयुक्त को भेज दी थी।
परिजनों का दावा है कि उन्होंने नियमानुसार ऑनलाइन आवेदन और दस्तावेज जमा किए थे, लेकिन कागज तहसील कार्यालय से गायब हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि सील या हस्ताक्षर में बदलाव दफ्तर के अंदर हुआ होगा।
वहीं, तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। ऑनलाइन आवेदन के बावजूद रिकार्ड गायब होना गंभीर लापरवाही माना जा रहा है। इस बीच, मामले में क्लर्क प्रहलाद सिंह नेताम को नोटिस जारी कर प्रभार से हटाया जा चुका है।