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राजपथ-जनपथ : चिंतामणि महराज गदगद
08-Sep-2025 5:55 PM
राजपथ-जनपथ : चिंतामणि महराज गदगद

चिंतामणि महराज गदगद

उप राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कल दिल्ली में भाजपा के देश भर के सांसदों की कार्यशाला हुई। इसमें हुए एक घटनाक्रम को लेकर सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज के निकटवर्ती समर्थक गदगद हैं। और फेसबुक पर तस्वीर देखकर एक से बढक़र एक कमेंट भी होने लगे हैं। हुआ यूं कि इस कार्यशाला में प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए। वे परंपरा से हटकर इस बार सांसदों की पिछली पंक्ति में सांसद चिंतामणि महराज के बाजू की कुर्सी पर जा बैठे।

यह कार्यशाला वैसे तो तीन सत्रों में शाम तक चली। लेकिन मोदी, अपने संबोधन तक रहे। और उनका नाम पुकारे जाने तक मोदी महाराज के बाजू ही बैठे रहे। इतने निकट बैठे प्रधानमंत्री, चिंतामणि महाराज से बात किए बगैर चुप तो नहीं बैठे होंगे। बात हुई होगी तो प्रदेश की राजनीति हवा की जानकारी ली होगी। बस कुछ ऐसे ही संकेत महाराज की ओर से सरगुजा तक परकुलेट होते ही समर्थक गदगद हैं।

उनका कहना है कि आने वाले दिनों में केंद्रीय कैबिनेट का भी विस्तार होना है। और मोदी शाह की पहल पर ही महाराज कांग्रेस से भाजपा में आए थे। और चुपचाप अपना काम कर रहे हैं। और फिर महाराज संत गहिरा गुरू के पुत्र भी हैं। फेसबुक पर कमेंट करने वाले अंबिकापुर, रेणुकूट रेल लाइन की मंजूरी की उम्मीद जता रहे हैं।  देखें इस सान्निध्य का क्या फायदा होगा।

हड़ताल, और सरकार

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधिकारी-कर्मचारी हड़ताल पर हैं। सरकार ने 25 कर्मियों को नौकरी से निकाला, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। हड़ताली कर्मचारियों ने उल्टे सामूहिक इस्तीफा भेजना शुरू कर दिया है।  चर्चा है कि ज्यादातर मांगों पर सहमति बन गई है, लेकिन हड़ताली कर्मचारी नियमितीकरण के लिए अड़े हैं। सरकार की दिक्कत यह है कि नियमितीकरण के मसले पर कोई आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है।

चूंकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन केन्द्र सरकार का प्रोजेक्ट है, और 60 फीसदी राशि केन्द्र सरकार उपलब्ध कराती है। ऐसे में 16 हजार अधिकारी-कर्मचारियों  के नियमितीकरण का फैसला आसान नहीं है। राज्य सरकार ने नियमितीकरण पर विचार के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस पर कर्मचारी नेताओं के बीच मंथन चल रहा है। बताते हैं कि नियमितीकरण की कमेटी के प्रस्ताव पर कर्मचारी नेताओं के बीच एकमत नहीं है। पिछली सरकार में भी संविदा, और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण  के लिए सचिवों की एक कमेटी बनी थी। भूपेश सरकार के पांच साल में कमेटी की कई बैठक हुई, लेकिन कमेटी यह भी पता नहीं लगा पाई कि  प्रदेश में कुल कितने संविदा, और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं। कुल मिलाकर कमेटी के गठन प्रस्ताव पर कर्मचारी भरोसा नहीं जता पा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।

फर्जी ई-चालान से साइबर ठगी का नया जाल

छत्तीसगढ़ में परिवहन विभाग ने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर नजऱ रखने के लिए तकनीक का सहारा लिया है। जगह-जगह चौक-चौराहों पर कैमरे लगाए गए हैं, जो बिना पुलिस की मौजूदगी के भी नियम तोडऩे वालों को पकड़ लेते हैं और ऑनलाइन चालान भेज देते हैं। देखने में यह व्यवस्था आधुनिक और पारदर्शी लगती है, क्योंकि ओवरस्पीडिंग, रेड सिग्नल क्रॉसिंग या ओवरटेकिंग जैसी घटनाएं सीधे कैमरे की नजऱ में आ जाती हैं। चालान भी सीधे वाहन मालिक के मोबाइल पर पहुंच जाता है।

लेकिन इस व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसका भी फायदा अब साइबर ठग उठा रहे हैं। नकली ई-चालान और फर्जी लिंक भेजकर लोगों से ठगी की जा रही है। दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर में कई मामले हाल ही में सामने आए हैं। मगर, कम पढ़े-लिखे मजदूर, दिहाड़ीदार और पढ़े-लिखे मगर, डिजिटल तकनीक से अनजान लोग इन जालसाजों का आसान शिकार बन रहे हैं। चालान न भरने पर कार्रवाई का डर दिखाकर क्यू आर कोड या फर्जी लिंक के जरिए उनसे पैसे ऐंठे जा रहे हैं।

परिवहन विभागर और यातायात पुलिस की ओर से तो सलाह दे दी गई है कि आधिकारिक पोर्टल पर जाकर ही ई-चालान की जांच करें और भुगतान करें। असली चालान की जानकारी लेने के लिए वेबसाइट पर ‘पे ऑनलाइन’ पर क्लिक कर वाहन नंबर या चालान नंबर डालना होता है। इसके बाद ओटीपी वेरिफिकेशन से सही जानकारी मिल जाती है। सवाल है कि क्या सिर्फ अपील करना काफी है? जब सरकार ने चालान वसूली को पूरी तरह तकनीकी बना दिया है तो सुरक्षित और भरोसेमंद सिस्टम देना भी उसकी जिम्मेदारी है। समस्या का हल केवल लोगों को सतर्क रहने की सलाह देकर नहीं निकलेगा। यातायात पुलिस का जो चालान आता है वह किसी ऐसे यूनिक फॉर्मेट में नहीं है कि लोग आसानी से पहचान सकें। लाखों की संख्या में वाहन का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। दुर्घटनाओं से बचने के लिए इनके बीच जागरूकता अभियान तो चलाया जाता है लेकिन सही ई चालान को लोग पहचानें इसके लिए कोई मुहिम नहीं चल रही है। ट्रैफिक पुलिस का कोई हेल्पलाइन भी नहीं है कि ई चालान मिलने पर लोग विभाग में फोन लगाकर पूछ सकें कि क्या वह वास्तविक है? गाड़ी नंबर फर्जी लगाकर घूमने वालों पर भी यातायात पुलिस की तकनीक विफल है। गोरखपुर के एक वकील की गाड़ी कभी बिलासपुर आई थी नहीं, उसके नाम पर हाल ही में चालान भेज दिया गया था। आखिर उन्होंने कोर्ट जाने की चेतावनी दी तो चालान रद्द किया गया।  ई-चालान व्यवस्था ने ट्रैफिक प्रबंधन को तो आसान बना दिया है, लेकिन फर्जीवाड़ा रोकने के उपाय नहीं किए गए तो यह सुविधा लोगों के लिए मुसीबत ही बनती जाएगी।


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