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नयी दिल्ली, 27 जुलाई। मथुरा स्थित ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर की प्रबंधन समिति ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है, जिसमें मंदिर के प्रशासन का नियंत्रण राज्य सरकार द्वारा अपने हाथ में लिए जाने की बात कही गई है।
अधिवक्ता तन्वी दुबे के माध्यम से दायर याचिका में मंदिर प्रबंधन समिति (जिसमें 350 सदस्य और ‘सेवायत’ रजत गोस्वामी शामिल हैं) ने कहा कि सरकार का आचरण स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण के लिए मंदिर के धन के उपयोग से संबंधित मुद्दे पर उच्च न्यायालय ने 8 नवंबर, 2023 को पहले ही फैसला कर दिया था और उसने राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के 8 नवंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं की और इसके बजाय शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिका में एक पक्षकार आवेदन दायर किया गया।
याचिका में कहा गया है, ‘‘उक्त एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) गिरिराज सेवा समिति के चुनावों से संबंधित एक पूरी तरह से अलग मुद्दे से संबंधित थी, जो बांके बिहारी जी महाराज मंदिर से पूरी तरह से अलग मुद्दा है। उच्चतम न्यायालय ने 15 मई, 2025 के आदेश में एक निर्देश पारित किया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार को पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण करने के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।’’
यह याचिका सोमवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
इसके बाद, शीर्ष अदालत के 15 मई के आदेश के खिलाफ एक आवेदन दायर किया गया, जिसका मुख्य आधार यह था कि न तो मंदिर और न ही ‘सेवायतों’ को वर्तमान विवाद में कभी पक्षकार बनाया गया।
प्रबंधन समिति ने कहा कि विवादित अध्यादेश, बांके बिहारी मंदिर के प्रशासन के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित जनहित याचिका के परिणाम को अवैध रूप से रोकता है और विफल करता है।
याचिका में कहा गया है कि ऐसे अध्यादेश को पारित करना जो सीधे तौर पर उच्च न्यायालय में लंबित मुद्दों से संबंधित है, सरासर सत्ता का दुरुपयोग और असंवैधानिक है।
पंद्रह मई को शीर्ष अदालत ने सरकार द्वारा दायर एक आवेदन को अनुमति दे दी और भक्तों के लाभ के लिए मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विकसित करने की उत्तर प्रदेश सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त किया।
न्यायालय ने सरकार की इस याचिका को स्वीकार कर लिया था कि बांके बिहारी मंदिर के धन का उपयोग केवल मंदिर के चारों ओर पांच एकड़ भूमि खरीदकर एक ‘होल्डिंग क्षेत्र’ बनाने के लिए किया जाए।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर और गलियारे के विकास के लिए अधिगृहीत की जाने वाली भूमि देवता या ट्रस्ट के नाम पर होनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा में बांके बिहारी मंदिर की दयनीय स्थिति और उचित प्रशासन एवं सुविधाओं की कमी की ओर ध्यान दिलाया था।
उन्होंने कहा कि मंदिर केवल 1,200 वर्ग फुट के सीमित क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां प्रतिदिन लगभग 50,000 श्रद्धालु आते हैं, जो सप्ताहांत में 1.5 लाख से दो लाख के बीच तथा त्योहारों के दौरान पांच लाख से अधिक हो जाते हैं।
सरकार ने कहा था कि उत्तर प्रदेश ब्रज योजना एवं विकास बोर्ड अधिनियम, 2015 मथुरा जिले में ब्रज विरासत के विकास, संरक्षण और रखरखाव के लिए अधिनियमित किया गया था। (भाषा)