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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ट्रम्प नाम का काला बादल भारतीयों पर मंडरा रहा...
अमरीका को लेकर वैसे तो पूरी दुनिया फिक्रमंद है कि एक सनकी-तानाशाह की मनमानी किस देश को, कहां के नागरिकों को, किन उद्योग-व्यापारों को कहां ले जाकर पटकेगी, लेकिन जैसे-जैसे एक-एक जानकारी में इजाफा होता है, भारत जैसे देश में समझदार लोगों को निराशा बढ़ती जा रही है, समझदार लोगों को। बाकी लोगों के लिए अभी ट्रम्प के हित में हवन करने के लिए पर्याप्त हवन सामग्री बची हुई है, और उसकी तस्वीरें भी। आज लोगों को ट्रम्प नाम की इस महामारी से होने वाले पूरे नुकसान का अंदाज नहीं बैठ रहा है, लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं गुजर रहा है जब भारत का नुकसान बढ़ न रहा हो। अमरीका के आंकड़ों को देखें, तो अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के काम संभालते ही इस बरस अमरीका में भारतीयों के एफ-1 वीजा की संख्या 27 फीसदी गिर गई क्योंकि अब ट्रम्प वहां पढऩे आने वाले छात्रों के सोशल मीडिया खातों की जासूसी को अनिवार्य कर चुका है, और वीजा नीतियों को कड़ा कर चुका है। इसके साथ-साथ वह अमरीकी विश्वविद्यालयों पर सौ किस्म की रोक भी लगा चुका है जिसकी वजह से वहां अब विदेशी छात्रों की गुंजाइश घट गई है। अब भारतीय छात्रों की वीजा अर्जियां रद्द होना बढ़ गया है। नतीजा साफ है कि आने वाले बरसों में अमरीका में पढक़र तैयार हुए भारतीय नौजवानों की संख्या घट जाएगी, और वहां काम पाने वाले भारतीय छात्र भी इसी अनुपात में घट जाएंगे। यह बात भी तमाम लोग समझते हैं कि भारत से गए हुए जो लोग अमरीका में काम करते हैं, या पढऩे के बाद कोई काम पाते हैं, वे अपनी बचत का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करते हैं, या परिवार के लिए भेजते हैं, और यह रकम छोटी नहीं होती है। अब ट्रम्प की मेहरबानी से इसमें खासी गिरावट आने का खतरा है। अभी तक के जितने आंकड़े हमारे सामने है, वे ट्रम्प के इस कार्यकाल में कम से कम एक चौथाई गिरावट के हैं। एक अंदाज बताता है कि ट्रम्प के चार बरस पूरे होने तक अमरीका में भारतीय छात्रों और कामगारों की गिनती आधी रह सकती है। और इस अनुपात से परे भी यह समझना जरूरी है कि अभी हर बरस भारत से साढ़े सात लाख के करीब लोग अमरीका पहुंचते रहे हैं, इसलिए इनकी गिनती में आधी गिरावट भारत के लिए कई लाख होगी। फिर ट्रम्प की यह चेतावनी अनदेखी नहीं करनी चाहिए जिसमें उसने दो दिन पहले ही अमरीका की बड़ी टेक कंपनियों को एक सम्मेलन में कहा है कि वे भारत और चीन से कर्मचारियों को न लें, और निर्माण भी विदेश में न करें। उसने कहा कि इन टेक कंपनियों ने अमरीकी आजादी का फायदा उठाया, और भारत और चीन को अपना उत्पादन केन्द्र बना लिया। अब समय अमेरिका फस्र्ट का है। ट्रम्प ने कुछ अरसा पहले एप्पल कंपनी को चेतावनी दी थी कि उसे भारत में आईफोन का उत्पादन बंद करना चाहिए, और अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उस पर 25 फीसदी टैरिफ लगेगा। ट्रम्प की इस नई चेतावनी के बाद अगर अमरीकी टेक कंपनियां भारत में कर्मचारी रखना बंद करती हैं, तो इससे यहां पर उनके लिए काम करने वाले करीब 50 लाख लोगों की गिनती घटेगी, और इसमें पांच-दस फीसदी गिरावट आ सकती है। ऐसे नुकसान के अनुमान की बड़ी लंबी लिस्ट है, और उसे और अधिक विस्तार से गिनाने पर आज का यह पूरा कॉलम ही खत्म हो जाएगा।
भारत के सफल या महत्वाकांक्षी लोगों के लिए अमरीका में पढऩा, वहां काम करना, और वहां बस जाना एक बहुत बड़ा सपना रहता है। भारत के लोगों की पहली पसंद अमरीका रहते आई है। लेकिन अब ट्रम्प ने जो आक्रामक राष्ट्रवाद अमरीका पर लादा है, उसके चलते दूसरे देशों से वहां पहुंचने वाले लोगों को खुदकुशी की हद तक नकार दिया जा रहा है, उन प्रवासी-कामगारों की खुदकुशी नहीं, अमरीकी-अर्थव्यवस्था की खुदकुशी। लेकिन एक बिफरे हुए साँड को तर्कों की जरूरत नहीं रहती है, आज ट्रम्प ने अमरीका के दोस्तों और दुश्मनों के बीच फासला खत्म कर दिया है, उसने दिन और रात के बीच भी फासला खत्म कर दिया है, अब बाकी दुनिया को हर वक्त यह देखना पड़ता है कि आज उसकी कैसी किस्मत ट्रम्प ने लिखी है, और एक दिन पहले के लिखे भविष्यफल में क्या-क्या फेरबदल किया है। ऐसे अनिश्चित भविष्य वाली हो चुकी इस दुनिया में भारत को लेकर भी ट्रम्प की मनमानी हर किस्म से जारी है, और ट्रम्प के सामने हिन्दुस्तान बेबस दिखाई पड़ता है, तकरीबन बाकी दुनिया की तरह।
भला कौन सोच सकता था कि जिस ट्रम्प ने नमस्ते ट्रम्प के नाम पर पांच बरस पहले का चुनाव अभियान भारत से ही शुरू किया था, जो कि मोदी के अमरीका प्रवास के मंच पर भी जारी रहा, और आज वह भारत को तरह-तरह से बेइज्जत करने में लगा हुआ है। वह बाकी दुनिया के साथ जैसी बदतमीजी कर रहा है, वैसी ही भारत के साथ भी कर रहा है, और बर्ताव से परे कारोबार-रोजगार पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है। आने वाले दिन अमरीका को लेकर भारत के लिए, कारोबारियों और कामगारों के लिए, छात्रों के लिए कितने खराब होंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है। अब तक तो अमरीकी सरहदों से गैरकानूनी तरीके से जान खतरे में डालकर हिन्दुस्तानी वहां पहुंच जाते थे, लेकिन अब तो कानूनी रूप से वहां गए लोगों का भी भविष्य अंधेरे में है। अपने हाथ जलाकर जो हिन्दुस्तानी ट्रम्प की तस्वीरें टांग-टांगकर इस देश में हवन करते थे, उन्हें अगले हवन के पहले भारत के हितों के बारे में भी सोचना चाहिए।