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नयी दिल्ली, 21 जुलाई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने कहा कि वह ‘‘स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने’’ के लिए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं।
धनखड़ ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, "स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं संविधान के अनुच्छेद 67 (ए) के अनुसार, तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहा हूं।"
धनखड़ (74) ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था।
राज्यसभा के सभापति धनखड़ का इस्तीफा संसद के मानसून सत्र के पहले दिन आया।
हाल में उनकी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एंजियोप्लास्टी हुई थी और इस वर्ष मार्च में उन्हें कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
कुछ अवसरों पर उनकी हालत ठीक नहीं दिखी थी, लेकिन संसद सहित सार्वजनिक कार्यक्रमों में वह अक्सर ऊर्जावान ही दिखे।
राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने कार्यकाल में धनखड़ का विपक्ष के साथ कई बार टकराव हुआ, जिसने उन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव भी पेश किया था। उन्हें हटाने का प्रस्ताव, बाद में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। यह प्रस्ताव स्वतंत्र भारत में किसी वर्तमान उपराष्ट्रपति को हटाने का पहला मामला था।
वह वीवी गिरि और आर वेंकटरमन के बाद कार्यकाल के दौरान इस्तीफा देने वाले भारत के तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। गिरि और वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
नियमों के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद के लिए अगले छह महीनों के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है। हालांकि, राज्यसभा के उपसभापति नये उपराष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक सदन की कार्यवाही संचालित कर सकते हैं।
धनखड़ 2022 में उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार थे।
धनखड़ का अचानक इस्तीफा राज्यसभा में सरकार के लिए एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम के बाद आया है, क्योंकि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने सदन में इसका उल्लेख किया था और महासचिव से आगे आवश्यक कदम उठाने को कहा।
यह घटनाक्रम सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक झटका है, जिसने लोकसभा में इसी तरह का नोटिस प्रायोजित किया था और विपक्ष को भी इसमें शामिल किया था।
कांग्रेस ने धनखड़ के अचानक इस्तीफे पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह "पूरी तरह से अप्रत्याशित" है और इसमें जो दिख रहा है, उससे कहीं अधिक है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, "उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति का अचानक इस्तीफा देना जितना चौंकाने वाला है, उतना ही समझ से परे भी।’’
रमेश ने कहा कि धनखड़ ने मंगलवार दोपहर एक बजे कार्य मंत्रणा समिति की बैठक तय की थी। कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्हें (धनखड़) न्यायपालिका से जुड़ी कुछ बड़ी घोषणाएं भी करनी थीं।
अपने त्यागपत्र में, धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मंत्रिपरिषद और सभी सांसदों को उनके कार्यकाल के दौरान सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया।
उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, "मैं भारत की राष्ट्रपति के प्रति गहरी कृतज्ञता प्रकट करता हूं, जिनका अटूट समर्थन रहा। उनके साथ मेरा कार्यकाल शांतिपूर्ण और बेहतरीन रहा।’’
धनखड़ ने कहा, "मैं प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है।"
उन्होंने कहा, "सभी संसद सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह मिला है, वह सदैव मेरी स्मृति में रहेगा।"
धनखड़ ने यह भी कहा कि वह भारत के लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में प्राप्त अमूल्य अनुभवों और ज्ञान के लिए बहुत आभारी हैं।
उन्होंने पत्र में कहा, "इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति और अभूतपूर्व विकास को देखना और उसका हिस्सा बनना सौभाग्य और संतुष्टि की बात है। हमारे राष्ट्र के इतिहास के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना एक सच्चा सम्मान है।"
उन्होंने कहा, "इस सम्मानित पद से विदा लेते हुए, मैं भारत के वैश्विक उत्थान और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा हूं और इसके उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास रखता हूं।"
धनखड़ के 23 जुलाई को जयपुर में क्रेडाई राजस्थान की नवनिर्वाचित समिति के साथ बातचीत करने की संभावना थी।
धनखड़ का जन्म राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में एक किसान परिवार में 18 मई, 1951 को हुआ।
वर्ष 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में राजनीतिक परिदृश्य में उनका फिर से उभरना कई लोगों को आश्चर्यचकित कर गया, ठीक उसी तरह जैसे उपराष्ट्रपति के पद पर उनका चुनाव हुआ।
धनखड़ ने शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका पर तीखा प्रहार किया और उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लगभग हर दिन राज्यसभा में विपक्ष के साथ उनका टकराव होता था।
उन्होंने इसी महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि "ईश्वर" ने चाहा तो वह "सही समय" पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
धनखड़ ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा था, "ईश्वर ने चाहा तो, मैं सही समय पर, अगस्त 2027 में, सेवानिवृत्त हो जाऊंगा।"
उपराष्ट्रपति बनने से पहले, उन्होंने 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
धनखड़ ने इससे पहले 1990 से 1991 तक चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार में संसदीय मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने 1989 से 1991 तक राजस्थान के झुंझुनू लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
धनखड़ 1993 से 1998 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। वह भाजपा, कांग्रेस और जनता दल से जुड़े रह चुके हैं। (भाषा)