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नयी दिल्ली, 18 जुलाई। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने शुक्रवार को कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एकमत हैं। न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से नोटों की जली हुई गड्डियां बरामद हुई थीं।
रीजीजू ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये एक विशेष वीडियो साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैंने विभिन्न राजनीतिक दलों के सभी वरिष्ठ नेताओं से बात की है। मैं एकमात्र सांसद वाले कुछ दलों से भी संपर्क करुंगा, क्योंकि मैं किसी भी सदस्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहता। ताकि यह भारतीय संसद की एक संयुक्त राय के रूप में सामने आए।’’
केंद्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लाने की पहल सरकार की नहीं, बल्कि विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की है, जिनमें कांग्रेस के सांसद भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर मामला है, क्योंकि न्यायपालिका ही वह जगह है जहां लोगों को न्याय मिलता है। अगर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, तो यह सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इसी कारण न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव सभी राजनीतिक दलों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।’’
रीजीजू ने कहा कि उन्हें खुशी है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मामले की गंभीरता को समझा है और इस मुद्दे पर साथ देने पर सहमति जताई है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि उसने चीजों को वैसे ही समझा जैसा उसे समझना चाहिए, क्योंकि कोई भी पार्टी भ्रष्ट न्यायाधीश के साथ खड़ी या भ्रष्ट न्यायाधीश को बचाती हुई नजर नहीं आ सकती।’’
रीजीजू ने कहा, ‘‘जब न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बात आती है, तो हमें एकजुट होना होगा। इसमें कोई दलीय आधार पर रुख नहीं होना चाहिए और इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।’’
कांग्रेस ने कहा है कि उसके सभी सांसद न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन करेंगे।
रीजीजू ने कहा कि किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने के नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि नोटिस लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष को और राज्यसभा में सभापति को प्रस्तुत किया जाएगा, जो सदन को सूचित करेंगे, न्यायाधीश जांच अधिनियम के अनुसार जांच समिति गठित करेंगे तथा तीन महीने में रिपोर्ट प्राप्त करेंगे।
रीजीजू ने कहा, ‘‘इसलिए तीन महीने की अवधि की आवश्यकता पूरी करनी होगी। उसके बाद जांच रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगी और दोनों सदनों में इस पर चर्चा होगी।’’
इस साल मार्च में न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना हुई थी और घर के बाहरी हिस्से में जली हुई नकदी से भरी बोरियां बरामद हुई थीं। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में पदस्थ थे।
न्यायमूर्ति वर्मा को बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के आदेश पर हुई आंतरिक जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने हालांकि किसी भी गलत कार्य में संलिप्त होने से इनकार किया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति ने निष्कर्ष निकाला है कि न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों का उस भंडारकक्ष पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां नकदी पाई गई थी। इससे यह साबित होता है कि उनका कदाचार इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।
पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव के बीच तुलना करने संबंधी टिप्पणी पर रीजीजू ने कहा कि संसद को एक वकील-सांसद के निजी एजेंडे से निर्देशित नहीं किया जा सकता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सिब्बल एक वरिष्ठ व्यक्ति हैं और आरोप लगाया कि वह केवल अपने ‘निजी एजेंडे’ से प्रेरित हैं।
रीजीजू ने कहा, ‘‘हम किसी एक वकील-सांसद के एजेंडे से प्रेरित नहीं होंगे। हम यहां कोई एजेंडा तय करने या उसे आगे बढ़ाने के लिए नहीं हैं। हम पूरी तरह देश के हित में काम कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि सिब्बल को यह अहसास नहीं है कि कई सांसद समझ, बौद्धिक क्षमता और कानून के ज्ञान के मामले में उनसे कहीं आगे हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘वह एक बहुत ही साधारण वकील हैं... वह भारत की संसद का मार्गदर्शन नहीं कर सकते। भारत की संसद का मार्गदर्शन सभी संसद सदस्यों द्वारा किया जाएगा।’’ (भाषा)