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नयी दिल्ली, 15 जुलाई। कांग्रेस ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के चीन के दौरे का हवाला देते हुए मंगलवार को कहा कि पड़ोसी देश से जुड़ी चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की जरूरत है और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 21 जुलाई से आरंभ हो रहे संसद के मानसून सत्र में इसके लिए सहमति देंगे।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सवाल किया कि जब 1962 के युद्ध के समय संसद में खुली चर्चा हो सकती है तो फिर आज क्यों नहीं हो सकती?
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, "14 जुलाई, 2025 को चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ अपनी बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध "पिछले साल अक्टूबर में कजान में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात के बाद से लगातार सुधर रहे हैं" और यह भी कहा कि "हमारे संबंधों का निरंतर सामान्य होना दोनों देशों के लिए लाभदायक हो सकता है।"
उन्होंने कहा कि शायद विदेश मंत्री को याद दिलाना जरूरी है कि प्रधानमंत्री की राष्ट्रपति शी चिनफिंग से हुई पिछली मुलाकात के बाद भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में क्या-क्या घटनाक्रम हुए हैं।
रमेश ने दावा किया कि चीन ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया तथा पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन को नेटवर्क-केंद्रित युद्ध प्रणाली और जे-10सी लड़ाकू विमान, पीएल-15ई एयर-टू-एयर मिसाइल और ड्रोन जैसे हथियारों के लिए टेस्टिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल किया।
कांग्रेस नेता ने कहा, "भारतीय सेना के उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत ऑपरेशन सिंदूर में तीन दुश्मनों से लड़ा-जिनमें चीन भी शामिल था, जिसने पाकिस्तान को खुफिया जानकारी मुहैया कराई।’’
उन्होंने दावा किया, "मोदी सरकार का चीन के सामने झुकना हैरान नहीं करता है, क्योंकि विदेश मंत्री स्वयं दो साल पहले एक साक्षात्कार में यह आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं- "देखिए, वे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। मैं क्या कर सकता हूं? एक छोटी अर्थव्यवस्था होने के नाते क्या मैं बड़ी अर्थव्यवस्था से भिड़ जाऊं?" उनके आका, लाल आंखों वाले प्रधानमंत्री ने भी ठीक इसी तरह 19 जून 2020 को दिए अपने बयान में चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी थी।"
रमेश ने सवाल किया कि विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री, भारत की जनता को विश्वास में लेकर चीन के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा कब करेंगे ?
उन्होंने कहा, "इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कांग्रेस पिछले पांच वर्षों से लगातार करती आ रही है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस बार मानसून सत्र में इस पर चर्चा के लिए सहमत होंगे।"
कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि जब नवंबर 1962 में, चीन के आक्रमण के सबसे भीषण दौर में भी संसद में सीमा की स्थिति पर खुली चर्चा संभव थी, तो आज यह चर्चा क्यों नहीं हो सकती?
रमेश ने कहा, "यह बेहद जरूरी है कि चीन के वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में उभरने और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तथा आने वाले दशक में अमेरिका को पीछे छोड़ने की संभावना से उत्पन्न हो रहे गंभीर सुरक्षा और आर्थिक खतरों पर राष्ट्रीय सहमति बने, ताकि भारत अपनी सुरक्षा और आर्थिक रणनीति को स्पष्टता और एकजुटता के साथ तय कर सके।" (भाषा)