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दिल्ली के एक महंगे रिहायशी इलाके लाजपत नगर में एक महिला और उसका 14 बरस का बेटा दोनों अपने घर में मरे हुए मिले। घर के बाहर तक खून बहकर निकल रहा था, इस पर महिला के पति और पड़ोसियों ने पुलिस को खबर की। मां-बेटे की लाशें अलग-अलग पड़ी मिलीं, दोनों खून से सनी थीं, और धारदार हथियार से गला रेतकर दोनों को मारा गया था। शक के आधार पर घर के नौकर को पकड़ा गया तो पूरे मामले का खुलासा हुआ। उसे इस महिला ने किसी बात पर डांटा था, उससे नाराज होकर उसने महिला का गला काट दिया, और यह कत्ल करते हुए बेटे ने देख लिया था, तो उसने उसे भी मार डाला। यह कैसी भयानक नौबत है कि जिस घरेलू कामगार को लोग इतने भरोसे के साथ रखते हैं, वे ही गला काटने पर उतारू हो जाएं! बड़े शहर हों, या छोटे शहर, संपन्न तबके के लोगों में यह आम बात रहती है कि वे घरेलू नौकर-नौकरानी रखते हैं, और उनकी पहुंच सारे घर तक होती है, तमाम लोगों तक रहती है। लेकिन इससे कुछ और सवाल भी उठ खड़े होते हैं जिनके बारे में हर किसी को सोचना चाहिए।
यह लोगों के अपने मिजाज पर रहता है कि वे घर-दफ्तर, या दुकान पर अपने मातहत काम करने वाले लोगों से कैसा बर्ताव करते हैं। जो लोग भले रहते हैं, उनका व्यवहार भी अच्छा रहता है, और उनके साथ काम करने वाले लोग दस-बीस बरस तक भी उन्हें छोडक़र नहीं जाते। लेकिन कुछ लोग ऐसे रहते हैं जिनकी जुबान पर गालियां बसी ही रहती हैं, जो अपने मातहत काम करने वाले लोगों का जीना हराम किए रहते हैं, और बात-बात पर उनको बेइज्जत करते रहते हैं। ऐसे लोगों के नौकर-चाकर कब उनके साथ बुरा करने या दगा करने की सोच लें, इसकी कोई गारंटी तो रहती नहीं है। और यह तो इस नौकर ने घर के दो लोगों के गले काट दिए, तो कत्ल की वजह से यह बात खबरों में आई, लेकिन अगर वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए खाने-पीने में कुछ मिलाते चलता, घर की दवाईयों में कोई छेड़छाड़ करते रहता, सामानों की बर्बादी होने देता, तो ऐसी कई बातें तो अनदेखी भी रह जातीं, और गृहस्वामी को इसकी खबर भी नहीं होती।
जब लोग अपने निजी कामकाज के लिए घर, दफ्तर, या कार में किसी कामगार पर निर्भर करते हैं, तो उनको अपमानित करने से बचना चाहिए। कुछ लोग अपने ड्राइवर को भला-बुरा कहने के आदी रहते हैं, और अपमानित ड्राइवर जब तनाव और नफरत में गाड़ी चलाते हैं, तो जाहिर है कि वे गाड़ी मालिक के लिए भी एक खतरा तो रहते ही हैं। पुराने वक्त में तो यह बात भी कही जाती थी कि खाना पकाने वाले लोग जैसे मन से खाना पकाते हैं, वैसे ही वह खाना तन को लगता है। इसीलिए लोग यह मानते हैं कि मां के हाथ से बने हुए खाने से अच्छा और कोई खाना नहीं हो सकता, क्योंकि वह बहुत मोहब्बत के साथ बनाया जाता है। अब अगर लोग घर पर खाना बनाने वाले को बात-बात में भला-बुरा कहते रहें, तो जाहिर है कि वे पकाकर तो धर देंगे, लेकिन उसके साथ उनकी शुभकामनाएं नहीं रहेंगी।
दिल्ली की इस घटना के पहले भी कुछ और जगहों पर ऐसी घटनाएं हुई हैं। हो सकता है कि ऐसे कामगार भी बदमाश और मुजरिम हों, लेकिन यह भी हो सकता है कि मालिक-मालकिन का बर्ताव बर्दाश्त के बाहर हो। लोगों को अपनी खुद की सेहत और हिफाजत के लिए निजी कामगारों से संबंध एक सीमा से अधिक खराब नहीं करने चाहिए। और अगर साथ में गुजारा बिल्कुल भी मुमकिन न हो, तो कामगारों को बिदा कर देना चाहिए, कुछ दूसरे लोगों को ढूंढ लेना चाहिए। यहां पर हम उन तरीकों और तरकीबों को गिनाना नहीं चाहते जिनसे निजी कामगार बदला निकाल सकते हैं, क्योंकि जिन्हें ऐसी बातें सूझ नहीं रही होंगी, वे भी इन्हें तरकीबों की एक लिस्ट की तरह इस्तेमाल करने लगेंगे। लेकिन यह मानकर चलिए कि आपके एकदम आसपास काम करने वाले लोग अगर आपसे बहुत खफा हैं, आपका बर्ताव उनके साथ बहुत खराब है, तो आप खुद भी सुरक्षित नहीं हैं।
परिवार के भीतर तो लोग अपने बच्चों को भी काम करने वाले लोगों के भरोसे छोड़ते हैं। कुछ लोग इतने संवेदनाशून्य रहते हैं कि कामगारों को मिलने वाली बहुत ही मामूली तनख्वाह से उनका घर कैसे चलेगा, इस बारे में सोचते भी नहीं, और उनके सामने अपने शाही खर्चों के बारे में, महंगे सामानों के बारे में खुलकर चर्चा करते रहते हैं। जब आपके आसपास काम करने वाले तकलीफ और मुश्किल से अपना काम चलाते हों, तब आप अपनी फिजूलखर्ची की कहानियां उनकी मौजूदगी में रूबरू किसी से बताएं, या टेलीफोन पर किसी से कहते रहें, उनके मन में नाराजगी तो बढ़ती ही चलती है। आमतौर पर लोग घरेलू नौकर-नौकरानी को लेकर भी अगर बाहर जाते हैं, तो उनके खानपान, या उनके रहने का ठीक से कोई इंतजाम नहीं करते। लोग 50 लाख की गाड़ी में जाते हैं, लेकिन रात कहीं रूकने पर ड्राइवर के लिए दो-चार सौ रूपए का कोई कमरा देखने के बजाय उससे उम्मीद करते हैं कि वह कार में ही सो जाए। और नींद पूरी न होने पर अगले दिन उसकी ड्राइविंग सुरक्षित नहीं रहेगी, इसकी परवाह लोग नहीं करते।
आज की हमारी बात लोगों को महत्वहीन लग सकती है क्योंकि यह हममें से हर किसी को सोचने पर मजबूर करेगी, और कुछ शर्मिंदगी भी देगी। लेकिन अपने और परिवार के, दफ्तर और कारोबार के भले के लिए, सेहत और हिफाजत के लिए इन बातों पर गौर करना जरूरी है। अपने आसपास के लोगों को खुश और सुखी रख सकें, तो आपकी अपनी जिंदगी भी खुश और सुखी रह सकती है। अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने का इससे सस्ता और कोई जरिया नहीं हो सकता कि इर्द-गिर्द के कामगारों को वाजिब-मुनासिब तनख्वाह दें, उनसे अच्छा बर्ताव करें, और उनकी भावनाओं का भी ख्याल रखें।