कोरबा
तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर सहित अन्य अफसरों पर कार्रवाई की अनुशंसा की कलेक्टर ने
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
कोरबा, 16 अगस्त। आदिवासी विकास विभाग में करोड़ों रुपये की गड़बड़ी का बड़ा मामला सामने आया है। करीब दो साल चली जांच के बाद विभाग ने अब एफआईआर दर्ज करवाई है। यह पूरा मामला उन पैसों से जुड़ा है जो केंद्र सरकार से 2021-22 में अनुच्छेद 275 (1) के तहत मिले थे। इस राशि से छात्रावास और आश्रमों की मरम्मत व नवीनीकरण का काम होना था।
जांच में खुलासा हुआ कि जिन कामों का टेंडर जारी हुआ और जिन पर लाखों–करोड़ों का भुगतान कर दिया गया, वे असल में पूरे हुए ही नहीं। कई जगह काम आधा-अधूरा छोड़ दिया गया, तो कई जगह आज तक शुरू भी नहीं हुआ। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कार्यालय से टेंडर, वर्क ऑर्डर, तकनीकी स्वीकृति, माप पुस्तिका और बिल-वाउचर जैसे मूल दस्तावेज ही गायब पाए गए।
जांच टीम ने बताया कि 48 लाख रुपये की चार योजनाएँ आज तक शुरू नहीं हुईं, जबकि करीब 80 लाख रुपये का फर्जी भुगतान ठेकेदार कंपनियों को कर दिया गया। कुल मिलाकर करीब 3 करोड़ 83 लाख रुपये के 34 काम सिर्फ चार फर्मों को बांटे गए थे। इनमें से 9 काम श्री साई ट्रेडर्स, 9 काम श्री साई कृपा बिल्डर्स, 6 काम एस.एस.ए. कंस्ट्रक्शन और 10 काम बालाजी इंफ्रास्ट्रक्चर कटघोरा को दिए गए। लेकिन इन सभी 34 टेंडरों से जुड़ा एक भी दस्तावेज विभाग के दफ्तर में नहीं मिला।
फील्ड में सत्यापन के दौरान भी यह साफ हुआ कि जिन कामों को कागजों में पूरा दिखा दिया गया, वे अधूरे थे या शुरू ही नहीं हुए थे।
इस पूरे मामले में उस समय की सहायक आयुक्त माया वारियर, एसडीओ अजीत टिग्गा और उप अभियंता राकेश वर्मा की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। कलेक्टर अजीत वसंत के निर्देश पर सहायक आयुक्त श्रीकांत केसरे ने सचिव को इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का पत्र भेजा है।
पुलिस में दर्ज एफआईआर में विभागीय डाटा एंट्री ऑपरेटर कुश कुमार देवांगन समेत चार फर्मों — श्री साईं ट्रेडर्स, श्री साईं कृपा बिल्डर्स, एसएसए कंस्ट्रक्शन और बालाजी इंफ्रास्ट्रक्चर कटघोरा — को भी आरोपी बनाया गया है। जांच में सामने आया कि इन चार कंपनियों को ही 34 टेंडर कार्यों का ठेका दिया गया था और बिना काम किए करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया।
इस बीच कई कलेक्टर बदले और फाइलें दबा दी गईं। पहले कलेक्टर संजीव झा ने जांच कराई थी, लेकिन उनके तबादले के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। उनके बाद आए कलेक्टर सौरभ कुमार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके चलते करोड़ों की गड़बड़ी की फाइलें कार्यालय से ही गायब करा दी गईं।
अब मौजूदा कलेक्टर अजीत वसंत ने मामले की दोबारा जांच कराई और जब बड़े पैमाने पर गड़बड़ी साबित हुई तो जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई का आदेश दिया। सहायक आयुक्त श्रीकांत केसरे ने कलेक्टर के निर्देश पर विभागीय सचिव को पत्र भेजकर तत्कालीन अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की है। साथ ही आदिवासी विकास विभाग के डेटा एंट्री ऑपरेटर कुश कुमार देवांगन और चार फर्मों के खिलाफ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है।


