जशपुर
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है बाबा का सालाना उर्स, सभी धर्म के लोग आते हैं मजार
‘छत्तीसगढ़’संवाददाता
जशपुरनगर, 23 मई। दो सौ बरस का अरसा गुजर गया और ऐसा लगता है जैसे मानो हाल-फिलहाल की ही बात हो। यह वाक्या है सूफी दरवेश बाबा मलंग शाह र.अ. के जशपुर आने का। घोड़े और हाथी का कारोबार करने के सिलसिले से जशपुर पहुंचे सूफी दरवेश अल्लाह के वलियों में से हैं, यह किसी को नहीं पता था। लेकिन उनके मुख से निकली दुआएं जिस तरह से कामयाब होती गई, उसे देखकर लोग हैरत में पडऩे लगे और सभी को यह यकीन होने लगा कि दो हाथी के साथ शहर में अजनबी की तरह आया एक फकीर दरवेश कोई सामान्य इंसान नहीं है
1800 इसवीं के दौरान जशपुर की सरजमीं पर कदम रखे बाबा मलंग शाह र.अ. को तत्कालीन जशपुर रियासत के राजा विशुण प्रताप सिंह जूदेव बाबा से प्रसन्न होकर उन्हें जशपुर में रहने की पेशकश की और उन्हें अपनी पसंदीदा जमीन तलाशने के लिए भी कहा था।
धार्मिक सद्भावना की मिसाल
बाबा मलंग शाह र. अ. की मजार की देखरेख विगत 38 वर्षों से कर रहे 86 वर्षीय मुजावर ईस्माइल अंसारी ने बताया कि उन्हें 200 साल पुराना इतिहास के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी जरूर है कि बाबा को स्थान रियासत के राजा विशुण प्रताप सिंह जूदेव ने दिया था।
बताया जाता है कि विशुण प्रताप सिंह जूदेव कुमार दिलीप सिंह जूदेव के परदादा थे। हालांकि इस बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिल सका।
राजपूत राजा के द्वारा दी गई भूमि में स्थापित करबला और मजार में सभी धर्म और समुदाय के लोग अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। यह मजार सांप्रदायिक सौहाद्र की मिसाल की तरह स्थापित है।
हाथी और घोड़ा के साथ आए थे बाबा
इतिहास के जानकार एनईएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विजय रक्षित ने बताया कि उनके शिष्य ने इस विषय पर शोध कार्य किया था जिसमें इस बात की जानकारी मिली कि राजा 1893 से 1931 तक दिलीप सिंह जूदेव के दादा राजा देवशरण सिंह जूदेव और उससे पहले 1864 से 1924 तक रहे राजा विशुण प्रताप सिंह जूदेव के दौरान बाबा मलंग शाह र.अ हाथी और घोड़ों के साथ जशपुर आए थे। उन्होंने अपने हाथी राजा को दे दिया था, जिसके बाद राजा ने उन्हें जमीन देने की इच्छा जाहिर की।
बाबा ने टिकैत गंज मार्ग में जमीन पसंद किया और वहीं रहने लगे। रोजाना मिलने वालों का तांता बाबा के पास लगा रहता। इस बात की जानकारी राजा को होने के बाद वे भी अपने पैलेस से पैदल उनके पास पहुंचे और अपने रियासत के लिए दुआ की दरख्वास्त किया था।
बाबा ने बनवाया था करबला
जानकारी बताते हैं कि जब टिकैतगंज रोड में उनकी चाहत की जमीन बाबा को मिल गई, तब उन्होंने मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए करबला की स्थापना कराई उनके वफात, निधन के बाद उसी स्थान पर उनका मजार बनाया गया, जहां लंबे समय से सालाना उर्स का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में सभी धर्म समुदाय के लोग अपनी मन्नतें लेकर आते हैं।


