जशपुर

विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा और बिरहोरों के लिए पारंपरिक खेल स्पर्धा
24-Jul-2022 6:57 PM
विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा और बिरहोरों के लिए पारंपरिक खेल स्पर्धा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जशपुरनगर, 24 जुलाई।
विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त के अवसर को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के लिए पारंपरिक जनजातीय खेल प्रतियोगिता का राज्य स्तरीय आयोजन किया जाना है। इसी क्रम में 23 जुलाई को ग्राम-सन्ना, विकास खण्ड-बगीचा में आदिम जाति कल्याण विभाग के तत्वावधान में जिला स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन सम्पन्न हुआ।

यह प्रतियोगिता विशेष पिछड़ी जनजातीय समुदाय के पारंपरिक खेले जाने वाले खेलों में बालक एवं बालिकाओं के लिए 6 वर्ष से 10 वर्ष तक, 10 वर्ष से 14 वर्ष तक, एवं 14 वर्ष से 18 वर्ष आयु वर्ग एवं खुली प्रतियोगिता अंतर्गत 18 वर्ष एवं अधिक की महिला एवं पुरूष हेतु पारंपरिक रूप से खेले जाने वाले खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की गई थी। इस वृहद आयोजन में जशपुर जिले के सभी विकास खण्ड में निवासरत एवं विद्यालय, छात्रावास-आश्रमों में अध्ययनरत विशेष पिछड़ी जनजाति समूह पहाड़ी कोरवा एवं बिरहोर परिवार के सदस्यों एवं विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा परम्परागत खेलों में दिखाई।

जिला स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में तीरंदाजी प्रतियोगिता, गुलेल प्रतियोगिता, फुगड़ी प्रतियोगिता, सुई-धागा दौड़, बोरा दौड़, एवं रस्सा-कस्सी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा।

6 से 10 वर्ष आयु समूह के बालक हेतु आयोजित खेल प्रतियोगिता में गुलेल में फिरोज राम, बालक आश्रम ब्लादरपाठ, तीन तंगड़ी दौड़ में योगेष राम एवं छोटू राम, एकलव्य घोलेंग, कबड्डी में बालक आश्रम रोकड़ापाठ। इसी प्रकार बालिका हेतु आयोजित फुगड़ी दौड़ में कु. सूर्यकांन्ती हसदा, कन्या आश्रम बगीचा, सुई-धागा दौड़ में सुनिमा बाई, कन्या आश्रम हर्रापाठ, मटका दौड़ में संगती बाई, बगीचा, तीन तंगड़ी दौड़ में उर्मिला पहाडिय़ा, संगती बाई, रामकृष्ण आश्रम बगीचा, कबड्डी में कन्या आश्रम मधुपुर की टीम प्रथम स्थान में रही।

10 से 14 वर्ष आयु समूह के बालक हेतु तीरंदाजी में जतरू राम, बालक आश्रम रजला, गुलेल में अंकित बालक आश्रम रोकड़ापाठ, बोरा दौड़ एवं गेडी दौड़ में अनुज राम एकलव्य घोलेंग, तीन तंगड़ी दौड़ में रामविलास, संतोष राम, एकलव्य घोलेंग, कबड्डी में बालक आश्रम सरबकोम्बो, रस्सा-कस्सी में एकलव्य सुखरापारा।

 इसी प्रकार बालिका के लिए मटका दौड़ में अंजली बाई, एकलव्य सन्ना, फुगड़ी दौड़ में रोशनी बाई एकलव्य ढुढरूडांड़, सुई-धागा और बोरा दौड़ में  दुर्गावती, एकलव्य घोलेंग, तीन तंगड़ी दौड़ में सुगन्ती बाई, गीता बाई, एकलव्य सन्ना, कबड्डी और रस्सा-कस्सी में एकलव्य सन्ना की टीम प्रथम स्थान पर रही।

14 से 18 वर्ष हेतु बालकों हेतु आयोजित प्रतियोगिता में तीरंदाजी में प्रथम सौरभ पहाडिय़ा, रामकृष्ण आश्रम बगीचा, गुलेल में रामकुमार, रामकृष्ण आश्रम बगीचा, बोरा दौड़ में षिवकुमार, एकलव्य घोलेंग, गेड़ी दौड़ में तेजकुमार, एकलव्य घोलेंग, तीन तंगड़ी दौड़ में अगस्तु राम, देवनाथ राम, रामकृष्ण आश्रम बगीचा, कबड्डी में रामकृष्ण आश्रम बगीचा, प्रथम स्थान में रहे।

18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग हेतु खुली प्रतियोगिता में तीरंदाजी में महेष राम, ग्राम-महनई, गुलेल में बेल साय ग्राम-मनोरा, कबड्डी में ग्राम-गेड़ई की टीम प्रथम स्थान पर रहे।

विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लिए आयोजित जिला स्तरीय प्रतियोगिता में सफल प्रतिभागियों को 6 से 9 अगस्त, तक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में जिले का प्रतिनिधित्व करते हुए, अपने हुनर के प्रदर्शन का अवसर प्राप्त होगा। खेल विद्या के अतिरिक्त जिला स्तर पर, सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, इसमें विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के पारम्परिक लोक नृत्य एकल एवं सामूहिक लोक गायन एकल एवं सामूहिक का आयोजन किया गया, जिसमें एकल नृत्य में एकलव्य सन्ना ने प्रथम, समूह गान में एकलव्य विद्यालय घोलेंग, समूह नृत्य में रामकृष्ण आश्रम बगीचा के बच्चे प्रथम स्थान पर रहेे।

कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष रायमुनी भगत ने बच्चों का उत्साहवर्धन करते हुए, स्वयं लोकगीत गाते हुए आदिवासी समाज की बहुआयामी संस्कृति से उपस्थित जनसमुदाय एवं विद्यार्थियों को अवगत कराया, साथ ही उन्होंने वर्तमान परिदृश्य में आदिवासी उत्थान के लिए, केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय स्व शासन निकायों द्वारा किए जा रहे प्रयासों एवं योजनाओं का लाभ उठाने के लिए जनजातीय परिवारों को आगे आने को कहा। उन्होंने विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल एवं सांस्कृतिक विद्याओं में भी निरंतर उत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया।

आदिवासी विकास विभाग के उपायुक्त बी.के. राजपूत ने कहा कि, यह आयोजन शासन का विलुप्त होती जनजातीय खेल विधाओं को पुनर्जीवित एवं संरक्षित करने का प्रयास है और ऐसे अवसर पर सम्पन्न हो रहा है, जब देश की प्रथम नागरिक के रूप में, आदिवासी समाज से द्रौपदी मुर्मू, भारत गणराज्य की राष्ट्रपति निर्वाचित हुई हंै, उनकी जीवन यात्रा के उतार-चढ़ाव के बावजूद आदिवासी समाज से होते हुए, शिक्षक, विधायक, राज्यपाल और उसके उपरान्त राष्ट्रपति के पद पर आसीन होना निश्चय ही उनकी प्रतिभा और योग्यता का सम्मान है। आदिवासी वर्ग के विद्यार्थी एवं युवाओं को उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर, शासन द्वारा उनके उद्धार और विकास के लिए चलाई गई योजनाओं का पूरा लाभ उठाना चाहिए, और समाज की मुख्य धारा में स्वयं को स्थापित कर शासन और प्रशासन में अपनी जगह बनाने का प्रयास करना चाहिए।


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