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म्यांमार में महिलाओं के लिए विरोध का हथियार बना 'अशुद्ध' कपड़ा
14-Mar-2021 5:06 PM
म्यांमार में महिलाओं के लिए विरोध का हथियार बना 'अशुद्ध' कपड़ा

MAY THA ZIN LEI/BBC BURMESE


-लारा ओवेन

म्यांमार में महिलाएं सैन्य शासन के ख़िलाफ़ अपने कपड़ों से संबंधित एक स्थानीय 'अंधविश्वास' का उपयोग कर रही हैं जिसे म्यांमार की 'सारोंग क्रांति' भी कहा जा रहा है.

म्यांमार में व्यापक रूप से यह माना जाता है कि अगर कोई पुरुष किसी महिला के 'सारोंग' के नीचे से गुज़र जाता है, तो वो अपनी मर्दाना ताक़त खो देता है.

म्यांमार में मर्दाना ताक़त को 'हपोन' कहा जाता है. वहीं सारोंग दक्षिण-पूर्व एशिया में महिलाओं द्वारा कमर पर पहने जाने वाले एक वस्त्र को कहा जाता है.

महिलाओं ने शहरों में जगह-जगह अपने कपड़े (सारोंग) टाँग दिये हैं

पुलिसकर्मियों और सेना के जवानों को रिहायशी इलाक़ों में घुसने और गिरफ़्तारियाँ करने से रोकने के लिए, म्यांमार के कई शहरों में महिलाओं ने अपने सारोंग सड़कों पर लटका दिये हैं और कुछ जगहों पर इसका असर भी देखा गया है.

सोशल मीडिया पर बर्मा के कुछ वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें पुलिसकर्मियों को गलियों में घुसने से पहले इन कपड़ों को उतारते हुए देखा गया.

प्रदर्शनकारी म्यांमार में सैन्य शासन को समाप्त करने और देश की चुनी हुई सरकार के नेताओं की रिहाई के लिए आह्वान कर रहे हैं जिसमें आंग सान सू ची भी शामिल हैं, जिन्हें एक फ़रवरी को सेना ने सत्ता से हटा दिया था.

सेना ने कहा कि उसने 'चुनावी धोखाधड़ी के जवाब में' ये कार्रवाई की और सेना प्रमुख को सत्ता सौंप दी. सेना का कहना है कि उसने देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू किया है.

व्यापक मान्यता
म्यांमार की महिलाओं का कहना है कि उन्होंने अपनी 'सारोंग क्रांति' को स्थापित करने के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय मान्यताओं पर भरोसा किया है.

हुतुन लिन नाम के एक छात्र ने कहा, "मैं इस अंधविश्वास के साथ बड़ा हुआ कि एक महिला का सारोंग कपड़े का एक अशुद्ध टुकड़ा है, जो अगर मेरे ऊपर रखा जाये तो वो मेरी शक्ति को कम कर देगा."

बर्मा की लेखिका मिमि आय, जो अब ब्रिटेन में रहती हैं, उन्होंने कहा कि "प्रदर्शनकारी महिलाएं अपने लाभ के लिए इन लैंगिकवादी मान्यताओं का उपयोग कर रही हैं."

उन्होंने कहा कि "अंधविश्वास मूल रूप से यह नहीं था कि कोई पुरुष सारोंग की वजह से अपनी शक्ति खो दे देगा, क्योंकि महिलाओं को अशुद्ध समझा गया. बल्कि वो यह था कि महिलाओं को यौन-प्राणी या एक प्रलोभन के रूप में देखा जाता है, जो किसी कमज़ोर पुरुष को बर्बाद कर सकती हैं."

बर्मा में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पुरुषों ने महिलाओं के सारोंग पहने

उन्होंने बताया कि पारंपरिक रूप से सारोंग का उपयोग 'सौभाग्य के प्रतीक' के रूप में भी किया जाता रहा है.

उन्होंने कहा, "एक समय, युद्ध में जा रहे पुरुष अपनी माँ के सारोंग का एक छोटा टुकड़ा अपने साथ लेकर जाया करते थे. वहीं, 1988 के विद्रोह के दौरान प्रदर्शनकारियों ने अपनी माताओं के सारोंग को बंडाना (सिर पर बांधे जाने वाला वस्त्र) के रूप में पहना था."

अब म्यांमार की महिला प्रदर्शनकारी सार्वजनिक जगहों पर सारोंग की शक्ति का उपयोग कर रही हैं.

8 मार्च को, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला प्रदर्शनकारियों ने अपने सारोंग जगह-जगह लटका दिये थे, जिसे एक क्रांति का हिस्सा बताया गया.

थिनज़ार शुनली यी, जो लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता है, उन्होंने अपनी एक तस्वीर ऑनलाइन पोस्ट की जिसके साथ उन्होंने लिखा, "मेरा सारोंग मुझे म्यांमार में सेना से ज़्यादा सुरक्षा देता है."

कुछ प्रदर्शनकारी महिलाओं ने जनरल मिन ऑन्ग ह्लाइंग की तस्वीरों को सैनिटरी पैड्स पर चिपकाकर, उन्हें सड़कों पर बिखेर दिया, इस उम्मीद के साथ कि सेना अपने जनरल की तस्वीरों पर पाँव नहीं रखना चाहेंगे और इस वजह से आगे नहीं बढ़ेगी.

तुन लिन ज़ॉ जो एक छात्र हैं, वे भी सारोंग को अपने सिर पर ओढ़कर इन प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं.

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "यह महिलाओं को सशक्त करने और विरोध करने जा रहीं बहादुर महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाने का एक तरीका है."

'तीन उंगलियों वाले सलाम' को म्यांमार में विरोध-प्रदर्शनों के प्रतीक के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार, अब तक के विरोध प्रदर्शनों में सुरक्षा बलों द्वारा 60 से अधिक लोग मारे गये हैं जिनमें कई महिलाएं शामिल हैं.

दर्जनों देशों ने म्यांमार की सेना द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई की निंदा की है, लेकिन तख्तापलट करने वाले सैन्य शासकों ने इसे काफ़ी हद तक नजरअंदाज किया है.

लेकिन महिला प्रदर्शनकारियों ने सैन्य शासन की अवहेलना जारी रखने के लिए अपने कपड़ों का उपयोग करते हुए, चुप रहने से इनकार कर दिया है.

उनका नारा बना गया है, "हमारा सारोंग, हमारा बैनर, हमारी विजय." (bbc.com)


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