अंतरराष्ट्रीय

photo from twitter
-आज़म ख़ान
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के नेतृत्व में केंद्रीय सरकार की कैबिनेट की बैठक में बलात्कार के अपराध के लिए बधिया कर दिए जाने की सज़ा को मंज़ूरी दे दी गई. लेकिन क्या सख़्त सज़ा या क़ानून महिलाओं को बलात्कार से बचा सकते हैं?
सरकार के इस फ़ैसले के बाद बीबीसी ने बलात्कार पीड़ितों, उनके परिजनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और क़ानूनी विशेषज्ञों से बात की.
'बलात्कार के मामलों में सख़्त सज़ा लागू करना सरकार के लिए अच्छा हो सकता है लेकिन सिर्फ़ सज़ा सख़्त करने से सबकुछ ठीक नहीं हो जाएगा.'
अपनी बेटी के बलात्कार के मामले में अदालत में पेश हो रहीं एक मां के ये शब्द हैं. अमीमा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, 'सख़्त सज़ा के बावजूद इंसाफ़ नहीं हो पा रहा है ना ही बलात्कार के मामलों में कई कमी आ रही है.'
सितंबर में बीबीसी से बात करते हुए अमीमा ने कहा था कि पुलिस उन्हें ये समझा रही थी कि उनकी बेटी के साथ बलात्कार का मामला बहुत कमज़ोर है. अमीमा के मुताबिक उनकी पहचान के एक युवक ने उनकी बेटी के साथ छह महीने पहले बलात्कार किया था और फिर वो समुदाय के लोगों पर उसकी शादी उनकी बेटी से करा देने का दबाव बना रहा था. लेकिन अमीमा अपनी बेटी की शादी उससे नहीं करना चाहती थीबं.
बलात्कार की पीड़ित एक छह साल की बच्ची ने बीबीसी संवाददाता शहर बलोच से बात की थी. इस बच्ची ने बताया था कि घटना के बाद से समाज का नज़रिया उसके प्रति बदल गया है और कोई उसकी कहानी पर यक़ीन नहीं करना चाहता था.
जब सोमवार को पाकिस्तान की कैबिनेट के फ़ैसले के बारे में उससे पूछा गया तो उसका कहना था कि वो ऐसी सख़्त सज़ा के ख़िलाफ़ है क्योंकि इससे अपराध नहीं रुकेंगे.
24 साल की एक बलात्कार पीड़ित के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया है. उसके पिता ने बीबीसी की हुमैरा कंवल को बताया था कि उनके लिए अदालत में पेश होना आसान नहीं था. हालांकि वो सरकार के फ़ैसले को एक अच्छा क़दम बताते हैं.
वो कहते हैं, 'यदि किसी दोषी को बधिया किया जाता है तो फिर वो जीवनभर शर्मिंदगी के साथ रहेगा. वो बाकी लोगों के लिए उदाहरण बन जाएगा. ऐसे व्यक्ति को समाज में सभी ताने मारेंगे. ऐसा अपराध करने वाले लोगों का जीवन फिर आसान नहीं रहेगा.'
उनके मुताबिक, 'मुझे नहीं लगता कि ऐसे अपराधियों को फांसी पर चढ़ाने का कोई फ़ायदा होगा. इससे अच्छा है उन्हें ज़िंदा रहते हुए सज़ा दी जाए और बाकी लोगों के लिए उन्हें एक उदाहरण बना दिया जाए.'
बच्चों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले एक ग़ैर सरकारी संगठन के साथ काम करने वाली मनाज़े बानो बताती हैं कि इस साल ही अब तक दो हज़ार से अधिक बच्चे यौन हिंसा का शिकार हुए हैं. इनमें से कई की बर्बरता से हत्या कर दी गई है.
उनके मुताबिक किसी व्यक्ति को बधिया बनाने की सज़ा निश्चित तौर पर समाज में डर पैदा करेगी. हालांकि वो कहती हैं कि इस समस्या का ये अंतिम समाधान नहीं है.
वो कहती हैं कि ऐसे समाज में जिसमें पितृसत्ता हावी है उसमें इस तरह की सज़ा मर्दों के लिए एक झटके की तरह होगी. उनके मुताबिक सबसे बड़ी चुनौती क़ानूनों को लागू करने की है.
कैबिनेट की बैठक में लिए गए फ़ैसले के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री शिबली फराज़ ने बताया था कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान सिंध में एक मां और उसकी बेटी के बलात्कार की घटना से बहुत दुखी थे. इसके बाद उन्होंने क़ानून मंत्रालय को निर्देश दिए थे. उन्होंने कहा था कि एक अध्याधेश लाया जाना चाहिए ताकि ऐसे अपराध करने वाले क़ानून की पकड़ से बच ना सकें.
photo from twitter
सूचना मंत्री शिबली फ़राज़ के मुताबिक कड़ी सज़ा का फ़ैसला लिया गया क्योंकि देश में बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं. ऐसी घटनाएं मासूम महिलाओं और बच्चियों के साथ होने लगी हैं.
शिबली फ़राज़ के मुताबिक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट ने सैधांतिक तौर पर सख़्त सज़ा को मंज़ूरी दी और क़ानून मंत्रालय को जल्द ही अध्याधेस तैयार करने के लिए कहा.
बैठक के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक प्रधानमंत्री ने कहा है कि किसी भी सभ्य समाज में ऐसे अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
कैबिनेट ने एंटी रेप (इंवेस्टिगेशन एंड ट्रायल) आर्डिनेंस 2020 और पाकिस्तान पीनल कोड (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2020 को मंज़ूरी दी है.
रसायनिक रूप से बधिया करने के अध्याधेश को मंज़ूरी देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमें अपने समाज में महिलाओं को सुरक्षित माहौल देना होगा.'
एक सवाल का जवाब देते हुए सूचना मंत्री शिबली फ़राज़ ने कहा, 'हमें लगता है कि ये क़ानून अच्छा बदलाव लाएगा. ये ऐसा अपराधों को रोकेगा और अपराधियों को सख़्त सज़ा दी जाएगी.'
उनके मुताबिक मूल रूप से क़ानून में नई परिभाषाएं जोड़ी गई हैं.
photo from twitter
शिबली फ़राज़ के मुताबिक रसायनिक रूप से बधिया करने के अलावा इन इस सख़्त सज़ा में मौत की सज़ा भी शामिल है. उनके मुताबिक जो अध्याधेश लाया जा रहा है वो एक सप्ताह में तैयार हो जाएगा.
ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि अगर पाकिस्तान की संसद में इस अध्याधेश को 120 दिनों के भीतर मंज़ूर नहीं किया गया तो ये निष्प्रभावी हो जाएगा. इसके अलावा संसद के पास इसे बहुमत से निषप्रभावी करने का अधिकार भी है.
केंद्रीय क़ानून मंत्री फ़रोग़ नसीम के मुताबिक अभी संसद नहीं चल रही है इसलिए अध्याधेश के ज़रिए ये क़ानून लाया जा रहा है.
आंतरिक मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार बैरिस्टर शहज़ाद अकबर ने एक ट्वीट में कहा है कि प्रधानमंत्री के दिशानिर्देश के बाद बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार रोकने के मक़सद से ये अध्याधेश लाया गया है.
उनके मुताबिक सख़्त सज़ा के प्रावधान के अलावा त्वरित और निष्पक्ष जांच के प्रावधान भी किए जा रहे हैं.
इसमें दस से पच्चीस साल की क़ैद की सज़ा भी शामिल है. साथ ही उम्रक़ैद और मौत की सज़ा का प्रावधान भी है.
बाल सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ वेलेरी ख़ान के मुताबिक ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में अपराधी की मर्ज़ी के बिना बधिया ना करने के प्रावधान हैं.
कुछ ऐसे आदतन अपराधी होते हैं जो अपने आप को इस तरह का अपराध करने से नहीं रोक पाते हैं और वो स्वयं इस तरह की सज़ा की मांग करते हैं.
वेलेरी ख़ान के मुताबिक पाकिस्तान ने इस सज़ा का विचार इंडोनेशिया से लिया है. उनके मुताबिक ये सज़ा आदतन अपराधियों को दी जाती है और इस दौरान कई शर्तों का पालन भी करना होता है.
वेलेरी ख़ान के मुताबिक इस सज़ा को लागू करने के लिए मेडिकल विशेषज्ञता और वैज्ञानिक प्रणाली की ज़रूरत होगी क्योंकि सिर्फ़ एक इंजेक्शन देकर किसी की यौन क्षमता ख़त्म नहीं की जा सकती है. इसे लागू करने के लिए संसाधनों की ज़रूरत होगी.
इसके लिए चिकित्सा विशेषज्ञ की राय भी ज़रूरी होगी. ये देखना पड़ेगा कि किसी अपराधी का स्वास्थ्य उसे ये इंजेक्शन लगाने की अनुमति देता है या नहीं.
इसके साथ ही इंजेक्शन लगाने के लिए एक निगरानी प्रणाली विकसित करने की ज़रूरत भी पड़ेगी क्योंकि कुछ समय बाद फिर से इंजेक्शन लगाने पड़ सकते हैं.
अमेरिका में रहने वाली पाकिस्तानी पत्रकार सबाहत ज़कारिया कहती हैं कि जब आम लोग इस बारे में सुनते हैं तो उनके दिमाग़ में इस तरह की सज़ा नहीं आती है.
'ये एक नशा है जो अपराधियों को दिया जाएगा ताकि उनकी यौन इच्छाएं दबी रहें.'
उनके मुताबिक ऐसे देश जहां इस तरह के क़ानून हैं वहां ऐसे अपराधी अपनी मर्ज़ी से ये नशा लेते हैं, उन्हें ख़ुद ये लगता है कि इससे उन्हें मदद मिलेगी.
वो कहती हैं कि दवा लेना और फिर यौन इच्छा के दबने का इंतेज़ार करना एक ऐसा काम है जिसका कोई नुक़सान नहीं हैं.
वो कहती हैं कि बलात्कार का संबंध सिर्फ़ यौन इच्छा से नहीं हैं. भारत में साल 2011 में हुए निर्भया बलात्कार मामले में पीड़िता के शरीर में लोहे की राड घुसा दी गई थी. ऐसे में सवाल उठता है कि कि क्या किसी की यौन क्षमता को समाप्त करके उसे यौन अपराध करने से रोका जा सकता है?
सबाहत के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी कमज़ोर व्यक्ति पर अपने आप को ज़बरदस्ती थोपता है तो यह भी बलात्कार की परिभाषा में आना चाहिए. वो कहती हैं कि किसी की यौन क्षमता भले ही प्रभावित हो जाए लेकिन वो हिंसा का कोई और दूसरा रास्ता खोज ही लेगा.
वहीं वलेरी ख़ान का मानना है कि किसी व्यक्ति की यौन क्षमता को ख़त्म कर देना ना सिर्फ़ अमानवीय है बल्कि असंवैधानिक भी है. उनके मुताबिक ये नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों के ख़िलाफ भी है. पाकिस्तान ने आईसीसीपी पर हस्तार किए हुए हैं.
लीगल एड सोसायटी से जुड़ी मलीहा ज़िया महिला अधिकारों पर भी काम करती हैं. वो कहती हैं कि अब तक सबसे बड़ी समस्या ये नहीं थी कि सज़ा सख़्त नहीं थी बल्कि सबसी बड़ी समस्या है कि जुर्म अदालत में साबित ही नहीं हो पाते हैं.
मलीहा ज़िया के मुताबिक कि फिलहाल पाकिस्तान में इस अपराध के लिए मौत की सज़ा भी मौजूद है तो फिर उससे भी सख़्ज सज़ा और क्या होगी? वो कहती हैं कि समस्या ये है कि सरकार का ध्यान सिस्टम सुधारने के बजाए सज़ा को सख़्त करने पर है.
मलीहा ज़िया के मुताबिक जितनी मुश्किल सज़ा होगी उतना ही मुश्किल जुर्म को साबित करना होगा.
वो कहती हैं, 'अभी हमारे पास फोरेंसिक जांच के लिए कोई तय मापदंड नहीं हैं. हम सही से जांच नहीं कर सकते हैं, हमारे पास आधुनिक उपकरण नहीं हैं और न ही जांचकर्ता हैं. यही वजह है कि इस तरह के मामले घटने के बजाए बढ़ रहे हैं.'
मलीहा ज़िया के मुताबिक सरकार ने साल 2016 में एक क़ानून पारित किया था जिसके तहत तीन महीने के भीतर बलात्कार के मामलों की जांच पूरी करने का प्रावधान किया गया था. लेकिन ख़राब जांच की वजह से बलात्कार के मामले सालों तक अदालतों में लंबित रहते हैं.
वो सुझाव देती हैं कि सरकार को बलात्कार की परिभाषा बदलनी चाहिए और यह सिर्फ़ किसी एक लिंग तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. सरकार को विशेष अदालतों के ज़रिए निष्पक्ष और तीव्र जांच सुनिश्चित करनी चाहिए. (bbc.com)