अंतरराष्ट्रीय
2024 में जर्मनी के 18 साल से कम उम्र के 15 फीसदी से ज्यादा बच्चों पर गरीबी का जोखिम मंडरा रहा था. इनमें भी प्रवासी पृष्ठभूमि वाले बच्चों और कम पढ़े लिखे माता-पिता वाले परिवारों में यह जोखिम कई गुना ज्यादा मिला.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट -
जर्मनी के संघीय सांख्यिकी कार्यालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2024 में जर्मनी में 18 साल से कम उम्र के करीब 22 लाख बच्चे और किशोर, यानी देश के 15.2 फीसदी बच्चे गरीबी के खतरे का सामना कर रहे थे. यह आंकड़ा 2023 में 14 फीसदी था.
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पूरे यूरोपीय संघ (ईयू) में बच्चों में गरीबी का हाल और भी बुरा है. इस समय ईयू के औसतन 19 फीसदी से ज्यादा बच्चे और टीनएजर्स गरीबी के खतरे में जी रहे हैं.
गरीबी का जोखिम कैसे तय होता है?
जर्मनी की कुल आबादी में 15.5 प्रतिशत लोग गरीबी के जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं. आंकड़ों में "गरीबी के खतरे” की परिभाषा उन लोगों पर लागू होती है, जिनकी आय अपने देश की मीडियन नेट इक्विवेलेंट इनकम के 60 फीसदी से भी कम होती है. यह आंकड़ा परिवार के आकार जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है. जैसे कि साल 2024 में एक अकेले व्यक्ति के लिये यह सीमा 1,381 यूरो (यानी लगभग एक लाख चालीस हजार रुपये) प्रति माह थी.
वहीं सिंगल पेरेंट्स और 14 साल से कम उम्र के बच्चे वाले परिवार के लिए यह सीमा 1,795 यूरो थी. दो वयस्कों और दो बच्चों (14 वर्ष से कम) वाले परिवार को गरीबी के जोखिम में तब माना गया, जब उनकी मासिक आय 2,900 यूरो से कम हो.
किन परिवारों में जोखिम ज्यादा?
रिपोर्ट से एक और अहम पहलू निकल कर सामने आया है. वह यह है कि कम पढ़े लिखे माता-पिता वाले परिवारों में आर्थिक जोखिम ज्यादा पाया गया.
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इसके अलावा, जो बच्चे खुद कहीं और से आकर जर्मनी में बसे हैं या जिनके माता-पिता दोनों प्रवासी हैं, ऐसे बच्चों में गरीबी का जोखिम 31.9 फीसदी तक दर्ज किया गया. बिना प्रवासी पृष्ठभूमि वाले बच्चों से तुलना करें तो उनमें यह आंकड़ा सिर्फ 7.7 फीसदी है.
बच्चों में गरीबी दिखती कैसी है
गरीब बच्चों में कम आमदनी का असर सीधे उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में हिस्सेदारी पर दिखता है. जर्मनी में 17 तरह की चीजों के आधार पर इसका मूल्यांकन किया जाता है. अगर इन 17 में से कम से कम तीन चीजें पैसों की कमी के कारण पूरी ना हो पायें, तो बच्चों को सामाजिक रूप से वंचित वर्ग का माना जाता है.
बीते साल जर्मनी में 11.3 फीसदी बच्चे और किशोर (16 साल से कम) इस श्रेणी में आए. पूरे ईयू के 13.6 प्रतिशत के औसत से यह थोड़ा ही कम है. मिसाल के तौर पर, देश के 19 फीसदी बच्चे ऐसे घरों में रह रहे थे, जहां टूटे या खराब फर्नीचर को बदला नहीं जा सकता था.
वहीं, 12 फीसदी बच्चों के लिए साल भर में एक हफ्ते की छुट्टी पर जाना भी पैसों की तंगी के कारण संभव नहीं था. तीन फीसदी बच्चे ऐसे थे जो दूसरी जोड़ी जूते नहीं खरीद सकते थे. यह रिपोर्ट दिखाती है कि जर्मनी जैसे विकसित देश में भी आर्थिक असमानता बच्चों और टीनएजर्स के रोजमर्रा के जीवन पर कितना गहरा असर डालती है.


