अंतरराष्ट्रीय
35 हजार फुट की ऊंचाई पर उड़ रहे यात्री विमान के पायलटों को अचानक जीपीएस सिग्नल न मिलना, या फिर किसी एयरस्पेस में दाखिल न होने देना। जमीन पर हो रहे संघर्ष, एयरलाइन कंपनियों के लिए जोखिम कई गुना बढ़ा रहे हैं।
डॉयचे वैले पर आर्थर सलिवन की रिपोर्ट-
मध्य पूर्व में ईरान और इस्राएल के बीच हुए संघर्ष विराम के बाद ईरान का हवाई क्षेत्र आंशिक रूप से फिर से खुल गया है, लेकिन फ्लाइट ट्रैकिंग वेबसाइट ‘फ्लाइटरडार24’ के डेटा से पता चलता है कि पश्चिमी एयरलाइंस अभी भी बड़े पैमाने पर इस देश के ऊपर से उड़ान भरने से बच रही हैं। ज्यादातर विमान या तो ईरान की पश्चिमी सीमा के करीब से, इराक के हवाई क्षेत्र से या फिर अरब प्रायद्वीप के ऊपर से उडऩा पसंद कर रहे हैं।
2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर हमला करने के बाद से रूस ने पश्चिमी देशों के विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया। इससे पता चलता है कि दुनिया भर में बढ़ते संघर्षों की वजह से हवाई यात्रा उद्योग यानी विमानन क्षेत्र किस तरह प्रभावित हो रहा है।
इस साल अप्रैल में एक और उदाहरण देखने को मिला, जब भारत और पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष के चलते, इस्लामाबाद ने भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया। भारत ने अपने इस सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया। हालांकि, पश्चिमी एयरलाइनों को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में जाने से नहीं रोका गया, लेकिन अधिकांश एयरलाइनें अब भी यहां जाने से बचना चाहती हैं।
सिंगापुर में रहने वाले विमानन क्षेत्र के विश्लेषक ब्रेंडन सोबी का कहना है कि संघर्ष के कारण एयरलाइनों का अपना मार्ग बदलना कोई नई बात नहीं है, लेकिन मौजूदा समय में चीजें विशेष रूप से ‘जटिल'हो गई हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, ‘ऐसा कई बार हुआ है, जब एक-दूसरे के बहुत करीब स्थित हवाई क्षेत्र के कई हिस्से एक ही समय में बंद हो गए।’
जोखिम भरा कारोबार
विमानन डेटा कंपनी ‘ओएजी’ के मुख्य विश्लेषक जॉन ग्रांट इस बात से सहमत हैं कि इस समय ‘बहुत ज्यादा गतिविधियां’ हो रही हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान-भारत हवाई क्षेत्र बंद होना एयर इंडिया के लिए एक खास समस्या है क्योंकि इसका मतलब है कि कंपनी के विमानों को अब अमेरिका की यात्रा के दौरान कहीं रुकना होगा।
नाइजर ने एयरस्पेस बंद किया, सैन्य कार्रवाई की आशंका
उनका तर्क है कि मध्य पूर्व में जो कुछ हो रहा है वह ‘निश्चित रूप से एक समस्या’ है। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि एयरलाइंस ‘अच्छी तरह से तालमेल बिठा रही हैं', खासकर अरब प्रायद्वीप के ऊपर से उड़ान भरकर।
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, ‘सऊदी अरब में कुछ लोग बेशक सामान्य से कहीं ज्यादा व्यस्त हैं, लेकिन इसका हवाई उड़ानों के शेड्यूल पर कोई असर नहीं पड़ा है। विमान अब भी समय पर आ-जा रहे हैं और हवाई उद्योग इन चुनौतियों से निपटना बखूबी जानता है।’
ग्रांट के मुताबिक, एयरलाइन कंपनियों के मैनेजरों के लिए, सशस्त्र लड़ाइयों से होने वाली परेशानियां, उस सामान्य अनिश्चितता का ही हिस्सा हैं जिसका वे हमेशा सामना करते रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर हम चार या पांच साल पहले की बात करें, तो एयरलाइन कंपनियों को एक बड़ी महामारी से निपटना पड़ा था, जो किसी भी अन्य चीज से कहीं ज्यादा खराब थी। मुझे नहीं लगता कि हवाई कंपनियों को इस वर्ष जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है वे पिछले दशक की चुनौतियों से बहुत ज्यादा अलग हैं।’
वह कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि हर एयरलाइन के सीईओ या कम से कम उसके फ्लाइट ऑपरेशन डायरेक्टर हर सुबह उठते ही यह सोचते हैं कि अगले दो वर्षों में कौनसी नई घटना या परेशानी सामने आएगी, जिसे उन्हें संभालना और सुलझाना पड़ेगा।’
सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं
ब्रेंडन सोबी का कहना है कि जब कमाई की बात आती है, तो हवाई क्षेत्र बंद होने से कम दूरी की उड़ानें सबसे ज्यादा नुकसान झेलती हैं। जैसे, ईरानी हवाई क्षेत्र बंद होने के बाद मध्य एशियाई देशों और मध्य पूर्व के बीच उड़ान भरने वाले विमान।
सोबी ने कहा, ‘ये उड़ानें अमूमन दो-तीन घंटे की होती हैं, लेकिन अब ये पांच-छह घंटे ले लेती हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पहले पूरी उड़ान लगभग ईरान के ऊपर से होती थी और अब विमानों को लंबा रास्ता तय करके जाना पड़ रहा है।’
उन्होंने कहा कि बार-बार हवाई क्षेत्र बंद करना ‘काफी महंगा हो सकता है’ क्योंकि इससे उड़ानें लंबी हो जाती हैं और मार्ग बदलने के कारण उड़ानें रद्द होने का जोखिम रहता है। इससे लागत बढ़ती है।
जॉन ग्रांट का मानना है कि यूरोपीय एयरलाइंस के पास रूसी हवाई क्षेत्र में लागू प्रतिबंध से निपटने के लिए तीन साल का समय था और उन्होंने इस स्थिति को काफी हद तक संभाल लिया है।
कुछ और वजहें भी हैं, जैसे पर्यावरण से जुड़े टैक्स का अचानक बढऩा, जो एयरलाइंस को उतना ही नुकसान पहुंचा रहा है। इससे उड़ानें ‘बहुत महंगी' हो रही हैं और यह अतिरिक्त खर्च ‘यात्रियों से वसूला जा रहा है।'
हालांकि, यह बात साफ है कि लोगों के मन में यह धारणा बन रही है कि दुनिया भर में चल रहे संघर्षों से हवाई यात्रा की सुरक्षा पर असर पड़ रहा है और यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ‘आईएटीए’ में ऑपरेशन, सेफ्टी और सिक्योरिटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष निक कैरन ने जून के आखिर में आईएटीए की वेबसाइट पर एक लेख लिखा। इसका शीर्षक था, ‘अधिक संघर्षपूर्ण दुनिया में सुरक्षित रूप से संचालन।’
दिसंबर 2024 में अजरबैजान एयरलाइंस की उड़ान 8243 को मार गिराए जाने के संदर्भ में उन्होंने लिखा, ‘मध्य पूर्व में हाल ही में हुए संघर्ष के कारण यात्रियों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि मिसाइल लॉन्च सहित अन्य सैन्य गतिविधियों के दौरान उड़ान को सुरक्षित रखने के लिए क्या उपाय किए गए हैं।’ जांच से पता चलता है कि अजरबैजान एयरलाइंस की उड़ान को रूसी मिसाइल ने मार गिराया था।
‘जीपीएस स्पूफिंग’ एक वास्तविक चिंता
कैरन ने हवाई जहाज के नेविगेशन सिस्टम में होने वाले हस्तक्षेप से जुड़ी समस्या को ‘एक और मुश्किल' बताया। उन्होंने कहा कि ‘ऐसी घटनाओं में अचानक उछाल आया है जहां युद्ध में शामिल पक्ष रेडियो सिग्नल का इस्तेमाल करके हवाई जहाजों के नेविगेशन के लिए जरूरी जीपीएस सिग्नल को जाम कर रहे हैं।’ यह खासकर उन इलाकों में ज्यादा हो रहा है जो सीधे तौर पर संघर्ष में उलझे हुए हैं।
फ्लाइटरडार24 का जीपीएस जैमिंग मैप दुनिया का एक ऐसा नक्शा दिखाता है जहां जीपीएस में कम या ज्यादा दखलअंदाजी होती है। सबसे ज्यादा दखलअंदाजी वाला इलाका बाल्टिक देशों से शुरू होकर यूक्रेन और रूस को पार करते हुए तुर्की और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ एक बड़ा गोलाकार क्षेत्र है।
ग्रांट ने कहा कि जीपीएस जैमिंग, एयरलाइन उद्योग के लिए ‘एक और संभावित खतरा’ है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि एयरलाइनें ‘इस बारे में बहुत सचेत हैं और इन हवाई क्षेत्रों में अपना रास्ता बनाने के लिए उनके पास एक से ज्यादा सिस्टम हैं।’
इंटरनेशनल फ्लाइट ऑपरेशन मेंबरशिप ऑर्गनाइजेशन ‘ओपीएस ग्रुप’ की ओर से किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि 2023 और 2024 के बीच तथाकथित ‘जीपीएस स्पूफिंग’ 500 फीसदी बढ़ी है। जीपीएस स्पूफिंग का मतलब है कि जीपीएस रिसीवर में हेरफेर की जाती है और इससे गलत जीपीएस जानकारी प्राप्त होती है।
जॉन ग्रांट मानते हैं कि यह चलन तेजी से बढ़ रहा है, और बताते हैं कि एयरलाइंस के पास इसके खतरों से निपटने के लिए मजबूत इंतजाम पहले से ही हैं।
उन्होंने कहा, ‘पूरा हवाई उद्योग हर तरह के संभावित खतरे को कम करने के सिद्धांत पर चलता है। एयरलाइंस उन चीजों को बखूबी संभाल लेती हैं जो उनके नियंत्रण में होती हैं। हालांकि, कुछ ऐसी भी चीजें हैं जिन पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता।’
(dw.comhi)