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बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने उल्फा नेता की उम्रकैद की सजा को 14 साल की जेल में बदला
15-Jan-2025 10:59 PM
बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने उल्फा नेता की उम्रकैद की सजा को 14 साल की जेल में बदला

ढाका, 15 जनवरी। बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने दो दशक पहले असम में उल्फा के ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हथियारों की तस्करी की कोशिश से जुड़े मामले में संगठन के नेता परेश बरुआ की उम्रकैद की सजा को घटाकर 14 साल की कैद में तब्दील कर दिया है।

पिछले महीने, अदालत ने बरुआ की मौत की सजा को कम कर उम्रकैद में बदला था।

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के फरार सैन्य कमांडर बरुआ के बारे में माना जाता है कि वह अभी चीन में रह रहा है। उसे 2014 में उसकी गैरमौजूदगी में चलाए गए मुकदमे में मौत की सजा सुनाई गई थी। भारत में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के ‘सर्वाधिक वांछित’ व्यक्तियों की सूची में बरुआ का भी नाम शामिल है।

अटॉर्नी जनरल ब्यूरो के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया, “दो न्यायाधीशों की पीठ ने बरुआ और चार बांग्लादेशी दोषियों की उम्रकैद की सजा में कटौती की है।”

अधिकारी के मुताबिक, उच्च न्यायालय ने मंगलवार को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के पूर्व गृह राज्य मंत्री लुत्फुज्जमां बाबर और पांच अन्य को बरी कर दिया, जिन्हें इसी मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

उन्होंने बताया कि अदालत ने बरुआ सहित पांच अन्य दोषियों की जेल की सजा में कटौती की और तीन अन्य आरोपियों की मौत के कारण उनकी अपील निरस्त (समाप्त) घोषित कर दी।

अप्रैल 2004 में चट्टोग्राम (अब चटगांव) के रास्ते पूर्वोत्तर भारत में उल्फा के ठिकानों पर 10 ट्रक हथियार पहुंचाने के कुछ ‘प्रभावशाली लोगों’ के कथित प्रयासों को नाकाम कर दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों ने इन ट्रक पर लदे हथियार जब्त कर लिए थे, जिनमें 27,000 से अधिक ग्रेनेड, 150 रॉकेट लॉन्चर, 11 लाख से अधिक गोला-बारूद, 1,100 सब मशीन गन और 1.14 करोड़ गोलियां शामिल थीं।

घटना के सिलसिले में हथियारों की तस्करी के लिए विशेष शक्तियां अधिनियम 1974 के तहत एक मामला और अवैध रूप से हथियार रखने के लिए शस्त्र अधिनियम के तहत दूसरा मामला दर्ज किया गया था।

दोनों मामलों में पूर्व गृह राज्य मंत्री लुत्फुज्जमां बाबर, सेना खुफिया महानिदेशालय के पूर्व प्रमुख जनरल रजाकुल हैदर चौधरी, सरकारी उर्वरक संयंत्र के पूर्व प्रबंध निदेशक मोहसिन तालुकदार, इसके महाप्रबंधक इनामुल हक, उद्योग मंत्रालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव नुरूल अमीन और जमात-ए-इस्लामी नेता मोतिउर रहमान निजामी को मौत की सजा सुनाई गई थी।

वहीं, बरुआ सहित पांच आरोपियों के लिए उम्रकैद की सजा मुकर्रर की गई थी।

अपने हालिया आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले में उल्लिखित हथियारों के वास्तविक नियंत्रण और कब्जे के संबंध में सभी आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर सका।

बचाव पक्ष के एक वकील ने अदालत की टिप्पणी के हवाले से कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा विश्वसनीय सबूत के बिना नहीं दी जा सकती।” (भाषा)


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