गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 5 अगस्त। नवापारा नगर में दिगंबर जैन समाज में आर्यिका रत्न 105 स्वाध्याय एवं चर्यामाता जी का चातुर्मास हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो रहा हैं। रविवार के दिन आर्यिका रत्नों द्वारा अनेक मांगलिक कार्यक्रम संपन्न कराए गए। प्रात: सदर रोड स्थित 1008 शांतिनाथ जिनालय में अभिषेक उपरांत माता जी के मुखारबिंद से शांतिधारा संपन्न हुई।
प्रतिदिन प्रात: चल रहे कार्यक्रम में आचार्य विभव सागर एवं विमद सागर जी महाराज जी की पूजन संपन्न कर आर्यिका स्वाध्याय द्वारा धर्म की गंगा प्रवाहित की गई। निर्विघ्न दोनों माताजी की आहाराचार्य संपन्न कराई गई।
तप की साधना देखने को मिलती है, जब आर्यिका रत्न स्वाध्याय माताजी द्वारा एक दिन आहार और एक दिन उपवास कर अपने संपूर्ण जीवन को धर्म में करते देखने को मिलता है। आर्यिका रत्न चर्या माताजी द्वारा दोपहर 3 बजे प्रवचन में आगम वाणी में इंद्रियों के राग में फंसे जीवों में भेद बताए, पर यह नश्वर शरीर किसी का नहीं है। फिर भी जीव इंद्रियों के राग में फंसा रहता है, जबकि जीव अपने पुण्य और पाप के फल को स्वयं ही भोक्ता है। पुण्य और पाप से मुक्ति के लिए एक मात्र शरण धर्म ही है।
आर्यिका रत्न स्वाध्याय माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में बताया कि त्रिलोकी नाथ के केवल ज्ञान में दर्पण की तरह सब कुछ झलकता है। प्रत्येक जीव कषायो के कारण अपने भावों से विमुख हो जाता है और अपने परिणामों को बिगाड़ लेता है। व्यक्ति गरीबी में दु:ख सहन नहीं कर पाता और अमीरी में फुला नहीं समाता। भरत चक्रवर्ती इतनी संपदा और वैभव होते हुए भी, 6 खंड का राज्य जीतने के बाद भी अपने सगे भाई बाहुबली से तीन युद्ध कर लिए, परंतु बाहुबली युद्ध जीतने के बाद भी सारा राज्य वैभव छोड़ तप में लीन होकर अपना कल्याण कर लिए, क्योंकि यदि जन्म और मरण में सुख होता तो तीर्थंकर, चक्रवर्ती और अन्य महापुरुष अपना कल्याण कर मोक्ष प्राप्त करते ही नहीं, वह तो इस संसार में ही फंसे रहते। जीवन जीने का सच्चा सार मोक्ष की प्राप्ति ही है। शाम 6.30 बजे प्रतिदिन के अनुसार आज भी ज्ञान-यात्रा दोनों माताजी द्वारा संपन्न कराई गई। सभी कार्यक्रमों में समाज के सभी लोगों ने बढ़-चढक़र भाग लिया और अपने जीवन का कल्याण किया।


