संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बच्चों के स्कूल छोडऩे के आंकड़ों में गुजरात, असम, राजस्थान सबसे बदहाल!
सुनील कुमार ने लिखा है
08-Dec-2025 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बच्चों के स्कूल छोडऩे के आंकड़ों में गुजरात, असम, राजस्थान सबसे बदहाल!

भारत की संसद देश भर के आंकड़ों को पाने के लिए सबसे अच्छी जगह मानी जाती है। दिल्ली में पीएचडी करने वाले बहुत से लोग अलग-अलग सांसदों के दफ्तरों में शोधकर्ता की तरह काम करते हैं, और उन्हीं से कोई जानकारी पाने के लिए संसद में सवाल लगवा देते हैं। जिस जानकारी को देश भर से जुटाना किसी व्यक्ति के लिए नामुमकिन हो, उसे संसद में एक सवाल से आसानी से हासिल किया जा सकता है। इसलिए पीएचडी करने वाले कई छात्र-छात्रा सांसदों के साथ मुफ्त में भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। अभी राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने स्कूल छोडऩे वाले बच्चों के जो आंकड़े बताए हैं, वे हैरान-परेशान करते हैं। 2020-21 से 2025-26 के बीच 65 लाख 70 हजार बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, और इनमें 29.8 लाख कमउम्र छात्राएं शामिल हैं। यह हाल तब है जब केन्द्र सरकार का एक बड़ा बजट राज्यों को मिलता है स्कूली शिक्षा के लिए, और राज्यों का अपना पैसा भी इस पर खर्च होता है। लेकिन इन आंकड़ों से परे जो बात अधिक हैरान करती है वह अलग-अलग राज्यों के आंकड़े हैं। 2024 के मुकाबले इस बरस जो बढ़ोत्तरी हुई है उसमें सबसे कम बढ़ोत्तरी 12 फीसदी की ममता के बंगाल की है। फिर 14 फीसदी बढ़ोत्तरी कांग्रेस के कर्नाटक की है। 15 फीसदी बढ़ोत्तरी यूपी की है, झारखंड 16 फीसदी, एमपी 18 फीसदी, ओडिशा 20 फीसदी, बिहार 22 फीसदी बढ़ोत्तरी स्कूल छोडऩे वाले बच्चों में पिछले एक साल में हुई है। लेकिन सबसे ऊपर जो दो राज्य हैं, उनमें असम में 28 फीसदी बच्चों ने स्कूल छोड़ा है, और गुजरात में 340 फीसदी! चूंकि ये आंकड़े मोदी सरकार के दिए हुए हैं, और संसद में पेश हैं, इसलिए हम यह नहीं मान सकते कि गुजरात की ऐसी दुर्गति बताने वाले ये आंकड़े गलत होंगे।

देश में अलग-अलग राज्यों में स्कूलों के बाहर जो बच्चे रह गए हैं, उनके बारे में राज्यों ने अलग-अलग वजहें भी बताई हैं। असम में बाढ़, गरीबी, सामाजिक संघर्ष, और चाय बागानों के इलाकों को वजह बताया है। दूसरी तरफ गुजरात में लोगों के काम छोडक़र बाहर जाने, स्कूलों को जोडक़र उनकी संख्या कम करने, और औद्योगिक इलाकों के आर्थिक दबाव को बच्चों के स्कूल छोडऩे की वजह बताया है। एक वजह गुजरात के बारे में यह भी कही जा रही है कि पहले स्कूल छोडऩे वाले बच्चों के पूरे आंकड़े दर्ज नहीं होते थे, और अब बेहतर तरीके से दर्ज हो रहे हैं, इसलिए ये बढ़े हुए दिख रहे हैं। अब गुजरात के बारे में यह ध्यान रखना होगा कि यह न सिर्फ एक बहुत ही विकसित और कारोबार-संपन्न राज्य है, बल्कि पिछले 30 साल 2 महीने से यहां पर लगातार भाजपा सरकार रही है। 1995 से अब तक अंगद के इस पांव को कोई हिला नहीं पाए हैं। इसमें से कई बरस, 12 साल 7 महीने एक पखवाड़ा तो नरेन्द्र मोदी की सरकार भी रही है। अब पिछले 11 बरस से नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए भी गुजरात के साथ किसी भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं है। पिछले बरस आंकड़े सही दर्ज नहीं हुए थे, और इस बरस सही दर्ज हुए हैं, तो इन दोनों बरसों में भी वहां भाजपा की ही सरकार रही है। मोदी के प्रधानमंत्री रहते और गुजरात में भाजपा की सरकार रहते यह उम्मीद की जाती है कि गुजरात अधिकतर पैमानों पर देश की एक सबसे अच्छी मिसाल रहे। फिर भी अगर वहां पिछले बरस के मुकाबले इस बरस स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की संख्या में 340 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है, तो यह बहुत फिक्र की बात है। इसके तुरंत बाद जो दो राज्य आते हैं, वे असम और राजस्थान भी भाजपा शासन के ही हैं। केन्द्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी दोनों को अपने इन प्रदेशों पर खास गौर करना चाहिए।

हमने संसद में पेश इस रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ का जिक्र ढूंढने की कोशिश की, तो यह पिछले बरस के मुकाबले इस साल 12 फीसदी अधिक है। इन बच्चों के भीतर भी लड़कियां थोड़ी सी अधिक, 15 फीसदी बढ़ी हैं। पहली से आठवीं तक इस राज्य में स्कूल छोडऩे वाले बच्चे साल भर में 10 फीसदी बढ़े हैं, और नवमीं से बारहवीं के बीच 18 फीसदी। देश में स्कूल छोडऩे वाले बच्चों के राष्ट्रीय औसत से छत्तीसगढ़ के आंकड़े अधिक हैं। इस राज्य मेें नक्सल प्रभावित सुकमा में सबसे अधिक लड़कियों ने स्कूल छोड़ा है, और बहुत से मामलों में जल्दी शादी हो जाना, लड़कियों को घरेलू काम में लगा देना, और मां-बाप का मजदूरी के लिए दूसरे प्रदेश जाना भी एक वजह है।

आंकड़े कई तरह की गलत तस्वीर भी पेश कर सकते हैं, लेकिन हर बार, हर मामले में आंकड़े झूठ नहीं बोलते। कई मामलों में निर्विवाद आंकड़ों के समझदार विश्लेषण से कई तरह की सामाजिक हकीकत का पता लगता है। हर राज्य की स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की अलग-अलग वजहें उन राज्यों ने बताई हैं, और उन सबको ध्यान से देखना चाहिए, दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। कई राज्यों ने मजदूरों के बाहर जाने पर उनके बच्चों की पढ़ाई छूट जाने की वजह बताई है। देश की सरकारों को यह सोचना चाहिए कि क्या वे ऐसे प्रवासी मजदूरों के बच्चों को मजदूरी की जगह पर अस्थाई रूप से किसी स्कूल में दाखिल करवा सकती हैं? हो सकता है कि ये बच्चे इस वैकल्पिक व्यवस्था में पूरी अच्छी पढ़ाई न पा सकें, लेकिन वे स्कूल और दोपहर के भोजन से जुड़े तो रहेंगे। मां-बाप अगर किसी प्रदेश में मजदूरी या कोई दूसरा काम कर रहे हैं, तो वहां की राज्य सरकार उनके बच्चों को स्कूली पोशाक, किताब-कॉपी देकर अस्थाई दाखिला दे सकती है। सरकारों को अपनी योजनाओं में, और अपने नियमों में लचीलापन लाना चाहिए।

हमने यह चर्चा स्कूल छोडऩे वाले बच्चों से शुरू भर की है, लेकिन अगर संसद में पेश दूसरे आंकड़े देखें, तो देश के अलग-अलग प्रदेशों की हालत पता चलती है। इससे राज्य एक-दूसरे से अपनी तुलना भी कर सकते हैं, अपनी कमजोरियां और खामियां पहचान सकते हैं, और दूसरे राज्यों की खूबियों से कुछ सीख भी सकते हैं। राज्यों को अपना कामकाज सुधारने के लिए इन आंकड़ों को गंभीरता से लेना चाहिए। केन्द्र सरकार के अधिकतर सर्वे में सामाजिक पैमानों पर, आर्थिक और लैंगिक पैमानों पर केरल लगातार सबसे ऊपर बने रहता है। हालांकि देश के सबसे पिछले हुए राज्य भी राजनीतिक आधार पर केरल को अपने से सीखने की चुनौती देते रहते हैं, और केन्द्र सरकार के आंकड़े उन्हें उनकी जगह बताते रहते हैं। हम इन पैमानों की बात करते हुए राजनीतिक बात करना नहीं चाहते, लेकिन देश के निर्विवाद आंकड़ों में कोई राज्य लगातार सबसे अच्छा बना हुआ है, तो बाकी राज्यों को उससे सीखते हुए कोई राजनीतिक शर्म नहीं आनी चाहिए, राजनीतिक मुकाबला एक अलग बात रहती है, अपनी जनता की हालत को बेहतर बनाना किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बुनियादी प्राथमिकता रहनी चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


अन्य पोस्ट