संपादकीय

सरकार के कामकाज में जहां 25-30 बरस तक काम करने वाले अफसरों को योजनाएं बनानी चाहिए, या समस्याओं को सुलझाना चाहिए, वहां पर जब बार-बार अदालत को दखल देना पड़े, तो यह साफ रहता है कि निर्वाचित और सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधि अफसरों की अपनी टीम के साथ काम ठीक से नहीं कर पा रहे। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्रदेश के पहले सरकारी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में मरीजों के साथ आए घरवालों के रूकने या खाना बनाने का कोई इंतजाम न होने पर हाईकोर्ट ने अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग से जवाब-तलब किया है। अदालत का कहना है कि यह सरकारी अस्पताल है, और अगर एक हजार मरीजों की क्षमता वाले इस अस्पताल में मरीजों के साथ दो-दो लोग भी आते हैं, तो उतने लोगों के रहने-खाने का क्या इंतजाम किया गया है? वैसे तो मेकाहारा नाम से पहचाने जाने वाले इस अस्पताल के बगल में दो-दो ऐसे भवन बने हुए हैं, जहां बहुत ही मामूली भुगतान करके मरीजों के साथ के लोग ठहर सकते हैं, और खा सकते हैं। समाजसेवा के इस इंतजाम का भी खर्च जो लोग नहीं उठा पाते, या जिन्हें वहां जगह नहीं मिल पाती, ऐसे लोगों को अस्पताल कैम्पस में किसी भी जगह पड़े देखा जा सकता है।
आज हम राजधानी रायपुर की इस दिक्कत को लेकर जो चर्चा कर रहे हैं वह है तो रायपुर की, लेकिन बहुत से शहरों में योजना की इस तरह की दिक्कत है। यहां पर मेडिकल कॉलेज, कैंसर अस्पताल, मेडिकल कॉलेज का हॉस्पिटल, एडवांस हार्ट केयर सेंटर, डेंटल कॉलेज, फिजियोथैरेपी कॉलेज, जैसे कई संस्थान अगल-बगल में चल रहे हैं। लेकिन यहां पर आबादी का दबाव इतना बढ़ता चल रहा है कि हर किस्म की क्षमता चुक जा रही है। अब अगर इसी एक जगह की दिक्कत और संभावनाओं को देखें, तो दिखता है कि मेडिकल कॉलेज के ठीक सामने कई एकड़ पर बसा हुआ जेल का कैम्पस है, और जेल का पुराना मुख्यालय भी है जो कि खाली हो चुका है। अब अगर सरकार जेल को अपनी एक पुरानी योजना के मुताबिक शहर से कुछ दूरी पर ले जाती है, तो वहां पर कम खर्च में आधुनिक जेल बन सकती है, सबको अधिक सहूलियत हो सकती है, और जेल का यह बहुत बड़ा कैम्पस शहर के बीचोंबीच मौजूदा मेडिकल कॉलेज के सामने चिकित्सा उपयोग में लाया जा सकता है। इसके मिलने के बाद अगले 25-50 बरस तक चिकित्सा विभाग को शहर में और जगह की जरूरत नहीं रहेगी। दूसरी तरफ जेल को बाहर ले जाना 20-25 बरस पुरानी योजना है, और वहां से कैदियों को अदालत लाने का काम आज भी बसों से ही होता है, जो बाद में भी जारी रह सकता है।
सरकारी जमीन के लंबे समय के इस्तेमाल को योजना में तो लिया जा सकता है, लेकिन जब शहरी मास्टर प्लान बनते हैं, तो सत्ता का अधिकतम ध्यान इस पर रहता है कि कैसे जमीनों का उपयोग बदलकर खुद फायदा लिया जा सकता है, या पसंदीदा लोगों को दिलवाया जा सकता है। इसी के तहत अपनी ग्रीनलैंड, या आमोद-प्रमोद की जमीन को रिहायशी या कारोबारी बनवा लिया जाता है, या इसी तरह के पसंद-नापसंद के दूसरे काम किए जाते हैं। सरकार का जो ध्यान शहर के ढांचे, उसके विस्तार, और सरकारी या निजी जमीनों के सबसे बेहतर इस्तेमाल पर रहना चाहिए, वह जरूरत किनारे बैठी रह जाती है। फिर सरकारी जमीन पर खुद सरकार के अलग-अलग विभागों, स्थानीय संस्थाओं, शहर विकास प्राधिकरण या हाऊसिंग बोर्ड की नजर लगी रहती है, और सरकार के भीतर राजनीतिक खींचतान और दबाव के वजनतले शहरी विकास के तर्क धरे रह जाते हैं। जिस विभाग को जहां जमीन दिखी, उसे आबंटित कराकर वहां निर्माण करवाने में सबकी कमाई होती है, इसलिए जमीन पर सबकी नजर और नीयत लगी रहती है।
जब सरकार की खुद की योजनाएं रहती हैं, तो इन बातों को अनदेखा कर दिया जाता है कि शहर के किस हिस्से में कितनी भीड़ बढ़ाने वाली योजनाएं बनाना ठीक या गलत होगा। शहर के जो हिस्से लगातार ट्रैफिक जाम से घिरे रहते हैं, वहां पर भी पुरानी मंडी की बहुत लंबी-चौड़ी जमीन पर बहुमंजिला योजना बना ली जाती है, और यह भी नहीं देखा जाता कि उसका दबाव आसपास की सडक़ों पर कितना पड़ेगा। सरकार के भीतर भी कारोबार की संभावनाओं वाली योजनाओं को लेकर आपसी मुकाबला चलते रहता है, और जब जिस नेता की चलती है, वे अपने विभाग के लिए, या अपने म्युनिसिपल, प्राधिकरण, या मंडल के लिए जमीन ले लेते हैं। सच तो यह है कि शहरी मास्टर प्लान बनाना होता ही है 25-30 बरस बाद के हिसाब से, लेकिन हकीकत में आज बढऩे वाली दिक्कत को देखते हुए भी कई योजनाओं को आगे बढ़ा दिया जाता है।
हम एक बार फिर रायपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल से जुड़ी हुई दिक्कतों की बात करें, तो अस्पताल के ठीक सामने सौ-पचास एकड़ का जेल परिसर तुरंत ही अस्पताल की योजना में लेना चाहिए, जेल को शहर के बाहर ले जाना चाहिए, और चिकित्सा सुविधाओं, चिकित्सा शिक्षा का एक ऐसा विस्तार हो सकता है जिसके लिए सडक़ के दोनों तरफ के परिसरों को सुरंग और ओवरब्रिज से जोड़ा जा सकता है, जैसा कि मुम्बई जैसे शहरों में भी हुआ है। हालांकि अभी मामला अदालत की वजह से खबर में आया है, फिर भी राज्य सरकार की ही 25 बरस पुरानी योजना पर दुबारा गौर करने से कोई रोक तो है नहीं, और किसी शहर के लिए, शहर के बीच इतनी बड़ी संभावना निकलना आसान भी नहीं रहता है। राज्य सरकार को तुरंत इस बारे में गौर करना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)