संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : स्कूल में जानलेवा विस्फोट, छात्र-छात्राओं का क्या?
23-Feb-2025 4:03 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : स्कूल में जानलेवा विस्फोट, छात्र-छात्राओं का क्या?

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक ईसाई स्कूल, सेंट विसेंट पलोटी स्कूल के बाथरूम में बुरी तरह धमाका हुआ। इसमें चौथी कक्षा की एक छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई। जैसे ही एक छोटी बच्ची वहां गई और उसने फ्लैश किया तो उसके साथ ही एक रासायनिक विस्फोट हुआ और धमाके के साथ बच्ची के घायल होने के साथ-साथ आसपास नुकसान भी हुआ। खबरें बताती हैं कि इस स्कूल में पहले भी छात्राएं ऐसी हरकत कर चुकी हैं और चार बार फटाकों से धमाके किए गए हैं। अब घटना बड़ी होने की वजह से मामला पुलिस तक पहुंचा, और जांच हुई, तो जिम्मेदार लड़कियों की शिनाख्त हुई है। इससे जुड़ी दो सनसनीखेज बातें सामने आई हंै, एक तो यह कि ऑनलाइन ऑर्डर करके रसायन बुलाए गए थे। और दूसरी बात यह कि शायद किसी टीचर को सबक सिखाने के लिए विस्फोट की यह साजिश की गई थी। अब बाकी बच्चों के मां-बाप स्कूल पहुंचे हुए हैं कि वहां यह कैसी हिफाजत है।

स्कूली बच्चों का एक हाल अभी छत्तीसगढ़ के ही सरगुजा में सामने आया था जहां सरकार की सबसे अच्छी समझी जाने वाली आत्मानंद स्कूल के छात्र-छात्राओं ने फेयरवेल पार्टी में शराब पी, और शराब की बोतलें लेकर कारों के काफिले में जुलूस निकाला, गाडिय़ों के बाहर टंगे रहकर हंगामा किया, और शहर के टै्रफिक जाम के साथ जब ऐसे वीडियो सामने आए तो कुछ छात्र-छात्राओं को निलंबित किया गया है।

इसके पहले भी छत्तीसगढ़ की सरकारी स्कूलों में जगह-जगह शिक्षकों के शराब पीकर पहुंचने, स्कूल पहुंचकर सबके सामने शराब पीने, शिक्षा विभाग की महिला अधिकारी से मारपीट करने, शिक्षकों के छात्राओं के यौन शोषण करने जैसे तरह-तरह के दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। अभी चार दिन पहले स्कूल की एक फेयरवेल पार्टी में छात्राओं के साथ किसी अश्लील भोजपुरी गाने पर नाचते हुए प्राचार्य को निलंबित किया गया है। छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा हिस्सा आदिवासी इलाका है, और बहुत सा हिस्सा ग्रामीण स्कूलों का है। यहां पर सरकारी निगरानी बहुत ही कम रहती है, और ऐसे में इस तरह की सामने आने वाली घटनाओं को पूरा नहीं माना जा सकता, और इनकी असल गिनती इनके मुकाबले कई गुना होना तय है।

लेकिन हम बिलासपुर की इस घटना पर लौटें तो आज छात्र-छात्राओं के लिए ऑनलाइन ऑर्डर करके ऐसे रसायन बुलाना आसान है जिससे वे विस्फोट कर सकते हैं। घायल बच्ची के पैर जिस तरह से रसायन से जख्मी हुए हैं, वह भयानक नौबत है। यहां पर दो अलग-अलग सवाल उठ खड़े होते हैं, एक तो यह कि ऐसे रसायनों की बिक्री कैसे रोकी जा सकती है, और दूसरा यह कि स्कूलों में ऐसे सहज खतरों को कैसे रोका जाए? अभी तक तो हम शहरा-कस्बों में चाकू लेकर घुमते मवालियों के हमलों को ही अधिक फिक्र का मानते आए थे, अब यह एक बिल्कुल ही नए दर्जे का बहुत बड़ा खतरा दिख रहा है। ईसाई मिशनरी स्कूलों में अनुशासन बेहतर माना जाता है, लेकिन वहां पर छात्राओं ने किसी टीचर को सबक सिखाने के लिए स्कूल में बार-बार ऐसी हरकत की है, तो उससे स्कूली बच्चों में अराजकता का अंदाज लगाया जा सकता है। दूसरी बात यह कि जब लडक़ों में ऐसी ही अराजकता बढ़ती है तो हम नाबालिगों के मिलकर किसी नाबालिग लडक़ी से गैंगरेप भी देखते हैं। जुर्म अलग-अलग किस्म के हो सकते हैं, लेकिन जुर्म करने का हौसला एक ही किस्म का रहता है। स्कूलों के भीतर इतनी निगरानी और नियम-कायदे के बाद अलग लड़कियां ऐसी हिंसक वारदात कर रही हैं, या सरगुजा में सडक़ों पर दारू पीकर दारू की बोतलों के साथ कारों से बाहर लटके हुए जुलूस निकाल रही हैं, तो ऐसे ही लडक़े-लड़कियां साल-दो-साल बाद नशे की हालत में सडक़ पर लोगों का कुचलते भी हैं।

ये गिनी-चुनी चर्चित घटनाएं उतनी अधिक फिक्र की बात नहीं है, जितनी फिक्र की बात इस पीढ़ी में पनप रही अराजकता है। यह आपराधिक हौसला और रूख इन किशोर-किशोरियों से कहीं-कहीं पर परिवार के लोगों का कत्ल भी करवा रहा है क्योंकि घरवाले उनको मनमानी करने से रोकते हैं। ऐसे सारे मामले तुरंत ही कड़ी कार्रवाई के लायक हैं, और ऐसे लडक़े-लड़कियों के माँ-बाप की भी जवाबदेही तय होना चाहिए। अगर यह पीढ़ी गाडिय़ों पर सडक़ों पर गुंडागर्दी करती हैं, तो उन्हें गाडिय़ां देने वाले माँ-बाप पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, और ऐसी घटना एक से अधिक बार होने पर इन गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन साल-दो-साल के निलंबित करने का कानून भी बनाना चाहिए, या राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में कोई और कानून ऐसे माँ-बाप को सजा देने के लिए, और अगर वे संपन्न हों तो उन पर मोटा जुर्माना लगाने के लिए बनाए। कम उम्र की अराजकता, गुंडागर्दी और जुर्म, इन सब पर अगर तुरंत लगाम नहीं लगाई गई, तो ये बेकाबू होकर और अधिक संगीन जुर्म में तब्दील होने लगेंगे। सरकार को बिना देर किए स्कूली बच्चों में पनप रही हिंसा, और मनमानी को रोकने के ठोस इंतजाम करने चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


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