संपादकीय

-सुनील कुमार
छत्तीसगढ़ सरकार ने बाजार, कारोबार, और जनता के लिए एक बड़ा दोस्ताना फैसला लिया है। उसने दुकानों पर लागू होने वाले कानूनों को शहरी इलाकों के साथ-साथ अब बाकी प्रदेश पर भी लागू किया है, लेकिन यह नया कानून दस या अधिक कर्मचारियों वाली दुकानों और व्यापार पर ही लागू होगा, इससे छोटे कारोबार इससे मुक्त रहेंगे। कर्मचारियों के काम के दिनों को लेकर पहले से श्रम कानूनों में जो व्यवस्था है वह जारी रहेगी, लेकिन जो सबसे बड़ी चीज इस ताजा आदेश में हुई है वह दुकानों को सातों दिन चौबीसों घंटे खोलने की छूट है। कोई होटल, रेस्त्रां, खानपान की जगह, या मॉल और दुकान अब पूरे वक्त काम कर सकेंगे, शर्त बस यह रहेगी कि कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश दिया जाए। इसके साथ-साथ कुछ सुरक्षा शर्तों के तहत महिला कर्मचारियों को भी रात में काम करने की छूट रहेगी।
हम अपने इस अखबार में इस कॉलम में, और संपादक के साप्ताहिक कॉलम आजकल में दस-बीस बरस में दर्जन भर से अधिक बार यह बात उठा चुके थे कि सरकार को बाजार बंद करने के धंधे में नहीं पडऩा चाहिए। रात 10 बजे पुलिस घूम-घूमकर लाठी बजाकर पानठेले तक बंद करवाती है, और रेस्त्रां भी इसी वक्त नए ग्राहकों का भीतर आना बंद करते हैं। हमने अजीत जोगी, और रमन सिंह सरकार के समय भी उनके करीबी महत्वपूर्ण अफसरों को लिखकर भी यह सुझाव दिया था, और अखबार में भी कई बार लिखा था कि सरकार को सुरक्षा और मजदूर कानून लागू करने चाहिए, बाजार को अपनी मर्जी से रात-दिन चलने देना चाहिए। आज हालत यह है कि बड़े-बड़े मॉल में करोड़पतियों के पब और बार तो देर रात तक चलते हैं, राजधानी में दर्जनों ऐसे दूसरे ठिकाने देर रात तक दारू और दूसरा नशा परोसते हैं, लेकिन चाय दुकानों को दस-ग्यारह बजे बंद करने का हुक्म दे दिया जाता है। दूसरी तरफ जो पांच सितारा होटल हैं, उन्हें सितारा दर्जा मिलने की शर्त यह रहती है कि वहां चौबीस घंटे कॉफी शॉप चलना चाहिए। गरीब और अमीर की जरूरतों के बीच सरकार की तरफ से यह इतना बड़ा फासला है कि दो-चार सौ रूपए की कॉफी चौबीसों घंटे मिलती है, और दस रूपए की चाय रात दस-ग्यारह बजे बंद हो जाती है। कारखाने, स्टेशन, या कहीं और से लौटते मजदूर या कर्मचारी सडक़ किनारे कुछ खा-पी भी नहीं सकते। हमने यह भी लिखा था कि रात-दिन बाजार खुला रखने की छूट किसी कारोबारी पर रात भर दुकान खोलने की बंदिश नहीं रहेगी, जिसे मर्जी होगी वे रात में कारोबार करेंगे। इससे बाहर से आने वाले सैलानियों और मुसाफिरों को भी सहूलियत मिलेगी, और शहर की सडक़ों पर दिन में पडऩे वाला ट्रैफिक का दबाव भी खत्म होगा, कई लोगों को रात में खानपान और खरीददारी अधिक माकूल रहेगी, और उससे दिन में उतनी गाडिय़ां सडक़ों पर कम रहेंगी। हमने यह बात भी लिखी थी कि खुद कारोबारी रात नौ-दस बजे तक घर पहुंचते हैं, और फिर परिवार को लेकर बाहर निकलने का वक्त मिलता है, तो उस वक्त तक बाजार बंद होने लगता है। चौबीसों घंटे दुकान खुली रखने की छूट होने से वे व्यापारी इसका फायदा उठा सकेंगे जिनके ग्राहक देर रात भी आना चाहते हैं। पहले भी कई शहरों में पेट्रोल पंपों में रात भर खुली रहने वाली छोटे-मोटे सामानों की दुकानें चलती ही थीं। हमारा यह भी मानना है कि रात में देर तक या पूरी रात बाजार में चहल-पहल रहने से गुंडागर्दी और जुर्म भी घटेंगे क्योंकि अंधेरी सूनी सडक़ों पर मुजरिमों का हौसला बढ़ता है।
देर आयद, दुरूस्त आयद। राज्य बनने के बाद से यह पहली सरकार है जिसे कारोबारी और जनता को यह बहुत जायज हक देना सूझा है, और इससे कारोबार भी बढ़ेगा, और सरकार को टैक्स भी अधिक मिलेगा। कर्मचारियों को जरूर यह लग सकता है कि इससे उन्हें अधिक घंटे काम करना पड़ेगा, लेकिन असल में यह भी हो सकता है कि अब कारोबार दो शिफ्ट चलने लगें, और दोनों शिफ्ट के लिए अलग-अलग कर्मचारियों को रोजगार मिलने लगे। पुलिस के ऊपर जरूर इससे कुछ दबाव बढ़ेगा क्योंकि रात में भी सडक़ों की कुछ चौकसी रखनी पड़ेगी, और बाजार को भी चाहिए कि वह पुलिस के साथ तालमेल बिठाकर अपने सुरक्षा कर्मचारियों का कुछ इंतजाम करे। इसके साथ-साथ शहरों में सीसीटीवी कैमरों जैसे निगरानी नेटवर्क को बढ़ाना चाहिए ताकि जुर्म या ट्रैफिक गड़बड़ी पर तुरंत कार्रवाई हो सके। जहां तक बाजार की बिजली की खपत का सवाल है, तो रात के घंटों में बिजली मांग से अधिक पैदा होती है, और छत्तीसगढ़ को दूसरे राज्यों को यह कम रेट पर बेचनी भी पड़ती है।
सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार बाजार और जनता की जरूरतों को जरूरत से अधिक नियंत्रित कर रही थी, और इसी में कई किस्म का भ्रष्टाचार भी पनपता है। कुछ चुनिंदा कारोबार बहुत देर रात तक चलने देने के लिए एक भ्रष्टाचार पनप जाता है। विष्णुदेव साय सरकार का यह फैसला प्रदेश में पर्यटकों और प्रवासियों के लिए दोस्ताना भी रहेगा जो बाहर से आने पर यहां के बाजार में बारह घंटे का मरघटी सन्नाटा देखते हैं। सरकार के भीतर जिस किसी ने भी ऐसी पहल की है, वे तारीफ के हकदार हैं, और प्रदेश के व्यापारी संगठनों को भी इस छूट का फायदा उठाना चाहिए, और रात के बाजार विकसित करने चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)
(हम इस विषय पर कई बरस पहले लिखे गए और छपे अपने पिछले कुछ संपादकीय सिर्फ ऑनलाईन पढऩे के लिए पोस्ट कर रहे हैं। वेबसाईट पर देख सकते हैं।)
‘छत्तीसगढ़’31 दिसंबर 2013 का संपादकीय : जनता की जिंदगी पर सरकारी लगाम खत्म करने की जरूरत