संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्या बुलडोजरी-इंसाफ को सुप्रीम कोर्ट से छूट जारी है?
29-Oct-2024 3:22 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   क्या बुलडोजरी-इंसाफ को  सुप्रीम कोर्ट से छूट जारी है?

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में कल एक हत्याकांड के मुख्य आरोपी और उसके परिवार के अवैध निर्माण को बुलडोजर से गिरा दिया गया। अफसरों ने बताया है कि यह सरकारी जमीन पर किया गया अवैध कब्जा और अवैध निर्माण था, और चार अलग-अलग जगहों पर बड़ी कड़ी चौकसी के बीच यह तोडफ़ोड़ की गई है। जिस नौजवान मुजरिम ने पुलिस कार्रवाई से नाराज होकर एक प्रधान आरक्षक के घर घुसकर उसकी पत्नी और बेटी का कत्ल किया था, उसके ठिकानों पर बुलडोजर चलाने की मांग जनता कर रही थी। स्थानीय म्युनिसिपल ने पुराने नोटिस का हवाला देते हुए अवैध कब्जे और अवैध निर्माण को नया नोटिस दिया, और कुछ दिनों की मियाद पूरी होने पर उसे कल गिरा दिया।

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से जुड़े हुए, और पेशेवर मुजरिम इस नौजवान के साथ किसी की हमदर्दी नहीं है क्योंकि अपनी ड्यूटी करने के एवज में एक पुलिस कर्मचारी की बीवी और बेटी का कत्ल इसने जितने वीभत्स तरीके से किया, उसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। इसी सरगुजा के सबसे बड़े कांग्रेस नेता टी.एस.सिंहदेव ने इसे फांसी देने की मांग की थी। इसके साथ-साथ कत्ल में मददगार, सुबूत खत्म करने में भागीदार, और फरार होने में साथ देने वाले एनएसयूआई से जुड़े कुछ और नौजवान भी गिरफ्तार हुए हैं, इसलिए कांग्रेस का कुछ अधिक कहने का मुंह नहीं बचा है। लेकिन इन्हें फांसी की मांग करने वाले सिंहदेव ने भी इस अंदाज में आरोपी के परिवार के ठिकानों पर बुलडोजर चलाने का विरोध किया है। कहने के लिए स्थानीय अफसर यह कह रहे हैं कि इसका कत्ल की वारदात से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन यह तो पहली ही नजर में जाहिर तौर पर दिख रहा है कि किसी एक व्यक्ति के अवैध कब्जों, और अवैध निर्माणों पर अगर अचानक कार्रवाई हो रही है, तो उसके पीछे वही एक वजह है।

हमने खुद ने ऐसे भयानक मुजरिम के खिलाफ पिछले दिनों बहुत कुछ कहा और लिखा था, लेकिन हम बुलडोजरी-इंसाफ के खिलाफ हैं। हम उस वक्त से इसके खिलाफ हैं जब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सोया हुआ था, और उसने सुनवाई भी शुरू नहीं की थी। यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इंसाफ का यह नया तरीका ईजाद किया था, और बरसों बाद जाकर अब सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज जागे हैं, और उन्होंने देश के किसी भी राज्य में आरोपियों के परिवारों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाने पर कुछ किस्म की रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट के शब्द और उसकी भावना दोनों को समझने की जरूरत है। उसकी भावना को समझने से तो देश की राज्य सरकारें नासमझी जाहिर कर सकती हैं, लेकिन उसके शब्द बड़े साफ-साफ हैं जिन्हें बड़े छोटे से सरकारी वकील भी समझ सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आदेश दिया है कि केवल इसीलिए कि कोई व्यक्ति आरोपी है या दोषी है, यह उसकी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं हो सकता। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी तोडफ़ोड़ की वीडियोग्राफी कराई जानी चाहिए ताकि बाद में अदालत को पता चल सके कि क्या यह कार्रवाई अवैध कब्जे या निर्माण के अनुपात में थी? उन्होंने यह भी कहा कि अदालत के इस आदेश के खिलाफ की गई कार्रवाई उसकी अवमानना होगी, और अवमानना की कार्रवाई के बाद इस पर मुआवजा भी दिलवाया जाएगा। अदालत पहुंचे हुए एक वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने जजों से कहा था कि जिस तरह बंदूक की नली से शक्ति प्रदर्शन किया जाता है, उसी तरह यह बुलडोजर के जरिए शक्ति प्रदर्शन है, और इस तमाशे में जाने-माने टीवी एंकर बुलडोजर के केबिन से कैमरे पर बोलते हैं। उन्होंने कहा था कि इस तरह के प्रतिशोध की बात कानून में नहीं है। एक दूसरे वकील ने कहा था कि अपराधों से निपटने के लिए म्युनिसिपल के कानूनों का बेजा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसा करना आज एक चुनावी प्रचार का हथियार बना लिया गया है। उन्होंने अदालत में यह भी कहा था कि म्युनिसिपल के कानून स्थानीय उद्देश्यों के लिए हैं, अपराधों से लडऩे के लिए नहीं। अदालत ने अफसरों को यह एक छूट दी है कि वह सार्वजनिक भूमि, गलियों, सडक़ों, फुटपाथों पर किए गए अवैध कब्जों को बचाने का काम नहीं करेगी। लेकिन अदालत ने यह कहा कि अनाधिकृत निर्माण में भी रहने वालों को वैकल्पिक घर खोजने के लिए दस-पन्द्रह दिन का समय दिया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी साफ किया था कि अगर दो अवैध इमारतें हैं, लेकिन उनमें से किसी आरोपी के इमारत को ही गिराया जाता है, तो भेदभाव का मुद्दा उठेगा। अदालत ने एक अक्टूबर को ही यह कहा था कि राज्य बुलडोजर से इस तरह किसी निर्माण को ध्वस्त करने के स्थानीय अधिकार को सजा की तरह इस्तेमाल करने के खिलाफ दिशा-निर्देश तैयार करें।

हमारा ख्याल है कि सरगुजा में हत्या के जुर्म में गिरफ्तार, एक पुराने और पेशेवर मुजरिम के अवैध निर्माण भी जिस तरह कुछ दिनों के भीतर छांटकर गिराए गए हैं, वह अदालत की सोच के खिलाफ है, और कम से कम हमारी सोच के खिलाफ तो है ही कि किसी आरोपी, या साबित मुजरिम के अवैध कब्जे या अवैध निर्माण को भी बाकी को छोडक़र अकेले तोडऩा गलत है। न्याय की भावना बड़ी साफ है कि एक ही किस्म के गलत काम करने वाले कई लोगों में से किसी एक को छांटकर सिर्फ उसके खिलाफ कार्रवाई करना भेदभावपूर्ण होगा क्योंकि ये दो अलग-अलग किस्म के जुर्म हैं, एक आपराधिक मामला है, और दूसरा अवैध कब्जे या अवैध निर्माण का। अदालत ने जितने खुलासे से अपनी भावना जाहिर की है, उसे देखते हुए सरगुजा में अफसरों की कार्रवाई पहली नजर में गलत लगती है क्योंकि उसने उस शहर में और तो अवैध कब्जों पर ऐसी कार्रवाई की नहीं है। जनता के बीच से किसी आरोपी के खिलाफ होने वाली फरमाईश पर कार्रवाई करना जायज नहीं लगता। अदालती कार्रवाई के बाद ऐसे आरोपियों को फांसी हो जाए वह भी ठीक है, लेकिन बड़े खुलासे से अपनी बात कहने वाले सुप्रीम कोर्ट जजों की चेतावनी को ऐसा लगता है कि सरगुजा में अनदेखा किया गया है। जैसा कि अदालती कार्रवाई में ही बहस में सामने आया था कि बुलडोजरों को चुनाव प्रचार का एक हथियार बना लिया गया है, तो क्या सूरजपुर में हत्या के आरोपी, उसके पिता, और उसके चाचा के अलग-अलग अवैध कब्जे या अवैध निर्माण को म्युनिसिपल ने गिरा दिया है। सरकार को बड़ी कानूनी राय हमेशा ही हासिल रहती है, और अभी तो प्रदेश के म्युनिसिपल-मंत्री पहले प्रदेश के डिप्टी एडवोकेट जनरल भी रह चुके हैं, इसलिए यह बुलडोजरी-कार्रवाई पूरी कानूनी व्याख्या के साथ हुई होगी। अब इस व्याख्या में कोई चूक है या नहीं, यह आने वाले दिनों में अदालत में साबित होगा।

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