संपादकीय

छत्तीसगढ़ ने कल एक अलग किस्म का रिकॉर्ड कायम किया है, अपने ही देश भारत सरकार की घोषित नीतियों के खिलाफ जाकर इसकी पुलिस ने मुस्लिमों के ईद मिलादुन्नबी जुलूस में फिलीस्तीन के झंडे लगाने को लेकर जुर्म कायम किया है, और पांच मुस्लिमों को गिरफ्तार भी कर लिया है। पुलिस ने इन लोगों को नए लागू किए गए भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 197 (2) के तहत गिरफ्तार किया है। इस कानून को देखें तो यह राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले, लांछन लगाने, बयान देने, लिखने, या कोई नजारा पेश करने पर लागू होता है। इसका सेक्शन-2 किसी उपासना स्थल में या धार्मिक उपासना या धार्मिक कर्म में लगे हुए किसी जमाव में यही सब काम करने पर लागू होता है, और इसमें पांच बरस तक कैद का प्रावधान है। बिलासपुर के कुछ धर्मान्ध लोगों ने पुलिस में जाकर ईद के मौके पर फिलीस्तीनी झंडे फहराने को देशद्रोह करार करते हुए शिकायत दर्ज कराई थी, और ऐसे वीडियो जारी किए थे कि आतंकियों के हिमायती ऐसे लोगों को बिलासपुर में रहने नहीं दिया जाएगा। पुलिस ने आनन-फानन कुछ मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार किया, और देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाने का यह जुर्म लगा दिया।
यह मौका मुस्लिमों के एक बड़े सालाना त्यौहार ईद मिलादुन्नबी का था, और इस मौके पर फिलीस्तीन के झंडे फहराने का एक संदर्भ भी था। मुस्लिम देश फिलीस्तीन इजराइल के हमलों तले मलबा बन गया है, और 40 हजार से अधिक लोगों को मार डाला गया है। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ पिछले 11 महीनों में सौ से अधिक बार बोल चुका है, और दुनिया के बहुत से देश फिलीस्तीन पर इस जुल्म के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालतों में जा चुके हैं जहां से इजराइल के खिलाफ फैसले हुए हैं। खुद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इतने प्रस्ताव इजराइल के खिलाफ पास किए हैं, इतने बार सार्वजनिक रूप से इन हमलों को रोकने की मांग की है कि उसकी गिनती मुमकिन नहीं है। दूरदर्शन की वेबसाइट बताती है कि 22 अक्टूबर 2023 को भारत ने फिलीस्तीनियों के लिए साढ़े 6 टन मेडिकल मदद, और 32 टन आपदा प्रबंधन सामान भारतीय वायुसेना के विमान से भेजा है। फिलीस्तीन घोषित रूप से भारत का एक मित्र देश है, और भारत सरकार की वेबसाइट कहती है कि फिलीस्तीनियों को भारत का समर्थन भारत की नीति का एक अविभाज्य हिस्सा है। 1974 में भारत पहला गैर अरब देश था जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता दी थी, और 1988 में भारत फिलीस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले सबसे पहले देशों में से एक था। इस 15 जुलाई को भारत ने फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी को 25 लाख डॉलर का योगदान दिया है, और 1974 में भारत ने फिलीस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन करते हुए डाक टिकट जारी की थी।
हम यहां पर आज अगर फिलीस्तीन के बारे में गांधी ने क्या-क्या कहा था, उसका जिक्र करेंगे, तो आज देश और इसके कई प्रदेशों की सरकारों को वह बात नहीं सुहाएगी। लेकिन हम इनकी सहूलियत के लिए भारत के विदेश मंत्री बनने के पहले अटल बिहारी वाजपेयी का दिया गया एक ऐतिहासिक भाषण भारत सरकार की संस्था प्रसार भारती के संग्रहालय से लेकर यहां सुनाना चाहते हैं। 1977 के चुनाव की विजय रैली की आमसभा में अटलजी ने मंच और माईक से कहा था- ‘जनता पार्टी की सरकार के बारे में कहा जा रहा है कि वह अरबों का साथ नहीं देगी, इजराइल का साथ देगी, तो इस बारे में प्रधानमंत्री मोरारजी भाई स्थिति को स्पष्ट कर चुके हैं। गलतफहमी को दूर करने के लिए मैं कहना चाहता हूं कि मध्य-पूर्व के बारे में यह स्थिति साफ है कि अरबों की जिस जमीन पर इजराइल कब्जा करके बैठा है वह जमीन उसे खाली करना होगी। आक्रमणकारी आक्रमण के फलों का उपभोग करे, यह हमें अपने संबंध में स्वीकार नहीं है, तो जो नियम हम पर लागू है, वह औरों पर भी होगा। अरबों की जमीन खाली होना चाहिए, जो फिलीस्तीनी है उनके उचित अधिकारों की स्थापना होना चाहिए। इजराइल के अस्तित्व को तो हम भी स्वीकार कर चुके हैं, मध्य-पूर्व का एक ऐसा हल निकालना पड़ेगा जिसमें आक्रमण का परिमार्जन हो, और स्थाई शांति की स्थापना हो, गलतफहमी की गुंजाइश कहां है?’
छत्तीसगढ़ का हाईकोर्ट जिस बिलासपुर शहर में बसा हुआ है, और जहां बैठे जजों ने कल अपने शहर में यह बहुत बड़ा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जुर्म देखा है, अब उनसे इस पर प्रतिक्रिया की हम राह देख रहे हैं। एक छोटे से मुल्क फिलीस्तीन पर लगातार फौजी हमलों से इजराइल ने 40 हजार से अधिक लोगों को मार डाला है, और ये तकरीबन तमाम मुस्लिम लोग हैं। ऐसे फिलीस्तीनियों से एकजुटता दिखाने के लिए पश्चिमी दुनिया में जगह-जगह विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों में लोगों ने फिलीस्तीन के झंडे निकालकर उन्हें लहराया, थामकर फोटो खिंचाई। अनगिनत अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों में चैम्पियन खिलाडिय़ों ने फिलीस्तीन के झंडे लहराए। सभ्य दुनिया के लोकतांत्रिक लोगों में से कोई भी ऐसे नहीं है जो कि फिलीस्तीनियों के हमदर्द न हों। ऐसे में छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट के शहर में अगर घोर धर्मान्ध ताकतें एक मुस्लिम त्यौहार पर फिलीस्तीनियों से एकजुटता और हमदर्दी दिखाने के लिए उनके झंडे लगाने को राष्ट्रीय अखंडता पर हमला करार देती हैं, तो हमारा मानना है कि ये सुप्रीम कोर्ट में हेट-स्पीच के खिलाफ चल रहे मामले के तहत गुनहगार ताकतें हैं, और बिलासपुर पुलिस को मुस्लिमों और इन झंडों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली साम्प्रदायिक ताकतों पर सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के मुताबिक हेट-स्पीच का जुर्म दर्ज करना चाहिए था, लेकिन उसने एक मित्र राष्ट्र के झंडे लगाने पर जुर्म कायम करके गिरफ्तारियां करके खुद ही देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाया है, और एक मित्र राष्ट्र के साथ भारत के संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। इसलिए हमारा मानना है कि बिलासपुर पुलिस पर 197 (2) के तहत सोच-समझकर राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का जुर्म तुरंत ही दर्ज किया जाना चाहिए। कल जैसे ही यह खबर आई हमने बिलासपुर के एक बड़े पुलिस अफसर से बात करते हुए यह याद दिलाया कि फिलीस्तीन तो भारत का मित्र राष्ट्र है, उसके झंडे फहराना जुर्म कैसे हो गया, तो उनका कहना था कि यह अदालत को तय करने दीजिए। यह हैरान करने वाली बात है कि अब अदालत यह तय करेगी कि फिलीस्तीन भारत का मित्र राष्ट्र है या नहीं? बिलासपुर पुलिस को अगर धर्मान्ध और साम्प्रदायिक ताकतों की तरफ से कोई शिकायत मिली थी, तो अक्ल का इस्तेमाल करते हुए, कानून के मुताबिक उसे खारिज कर देना था, लेकिन पुलिस ने इस साम्प्रदायिकता के घोड़े पर सवार होकर मुस्लिमों को जिस तरह रौंदा है, वह सुप्रीम कोर्ट के हेट-स्पीच आदेश के तहत भी जुर्म है, और देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाना तो है ही।
पिछले कुछ महीनों में मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, और जम्मू-कश्मीर में फिलीस्तीनी झंडे फहराने को लेकर तरह-तरह से लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन पर जुर्म दर्ज हुए हैं। हमें हैरानी इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट खुद होकर इन घटनाओं का नोटिस क्यों नहीं ले रहा है क्योंकि जाहिर तौर पर धर्मान्ध और साम्प्रदायिक ताकतें फिलीस्तीनी झंडे लहराने को इस अंदाज में पेश कर रही हैं कि मानो उन्हें भारतीय झंडे के विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है। दुनिया के 21वीं सदी के सबसे बड़े जुल्म के शिकार फिलीस्तीन के साथ हमदर्दी दिखाते हुए उनके झंडे को लहराना, टांगना अगर हिन्दुस्तान की अखंडता पर खतरा बताकर लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, तो सुप्रीम कोर्ट को खुद होकर इस पर सुनवाई शुरू करनी थी। छत्तीसगढ़ सरकार के लिए आने वाले दिनों में अदालत की टिप्पणी एक बड़ी शर्मिंदगी लेकर आ सकती है। आज पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान के छत्तीसगढ़ को लेकर यह शर्मनाक नौबत है कि 40 हजार लाशों से हमदर्दी दिखाना इस प्रदेश में एक राष्ट्रीय जुर्म माना जा रहा है। दुनिया के सभ्य लोकतांत्रिक देश इस पुलिस कार्रवाई को कैसे देखेंगे, इसका अंदाज प्रदेश सरकार को चाहे न हो, भारत सरकार को तो कम से कम यह अंदाज होना चाहिए जिसे कि दुनिया भर में सवालों का सामना करना पड़ेगा। भारत में फिलीस्तीन का दूतावास है, केन्द्र सरकार उसे एक भाजपा शासित प्रदेश की इस कार्रवाई के बारे में क्या कहेगी? फिलहाल आज की सुबह तो बिलासपुर हाईकोर्ट के लिए एक चुनौती लेकर आई है कि वह अपने साये में एक मित्र राष्ट्र के साथ ऐसा सुलूक बर्दाश्त करते हुए चुप बैठता है, या कुछ करता है? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)