संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कई घटनाओं को जोडक़र बनी देश की असल तस्वीर
14-Sep-2024 9:35 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कई घटनाओं को जोडक़र बनी देश की असल तस्वीर

कई अलग-अलग किस्म की घटनाओं को जोडक़र एक साथ देखा जाए, तो यह समझ पड़ता है कि देश का माहौल किस तरह का है। अभी चार दिन पहले मध्यप्रदेश के महू में सेना के बहुत बड़े प्रशिक्षण केन्द्र के दो नौजवान अफसर अपनी महिला मित्रों के साथ सेना की फायरिंग रेंज में खुले में कुछ वक्त गुजार रहे थे, और वहां पहुंचे कुछ बाहरी नौजवानों ने आकर इन सबको बंधक बना लिया, फौजी अफसरों को जमकर पीटा, और एक अफसर, और एक युवती को पकडक़र रखा, और दूसरे जोड़े को छोड़ा कि दस लाख रूपए लेकर आओ, तब इन्हें छोड़ेंगे। जब तक छोड़ा गया यह जोड़ा फौज के अफसरों और पुलिस को खबर कर पाया, और पुलिस आई, तब तक उस बंधक महिला से गैंगरेप करके बदमाश भाग निकले थे। लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के इन अफसरों के खिलाफ इस तरह महिलाओं के साथ बाहर रहने की जांच भी शुरू हुई है। लेकिन फिक्र की बात यह है कि फौज के इलाके में फौजी अफसरों और उनकी दोस्तों के साथ ऐसी घटना असाधारण है। अभी हिन्दुस्तान बंगाल में महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसके कत्ल की घटना से उबरा नहीं है, पूरा बंगाल मुख्यमंत्री के इस्तीफे तक पहुंची नौबत को झेल रहा है, और सरकारी डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद काम बंद कर रखा है। अब मध्यप्रदेश की यह घटना हम किसी सत्तारूढ़ पार्टी से जोडक़र देखना नहीं चाहते क्योंकि देश की सरहद के भीतर जहां-जहां तक हिन्दुस्तानी समाज का माहौल है, और हिन्दुस्तानी मर्द मौजूद हैं, वहां तक हर लडक़ी और महिला से लेकर गाय तक पर बलात्कार का खतरा मौजूद है ही। हम इस खतरे, और इस किस्म के कुछ और खतरों के बारे में सोच रहे हैं कि आज हिन्दुस्तान कितना सुरक्षित रह गया है?

आज इस मुद्दे पर लिखते वक्त उत्तरप्रदेश में एक चलती हुई ट्रेन में एक आदमी को पीट-पीटकर मार डालने की घटना भी खबरों में है। इस आरोप के मुताबिक रात में एक महिला मुसाफिर शौचालय गई, और उसकी बच्ची से पास की सीट के मुसाफिर ने छेडख़ानी की। डिब्बे के बाकी मुसाफिरों ने इस आरोप पर उसे पीट-पीटकर मार डाला। भारत में इंसाफ की यह रफ्तार तालिबानों की गोलियों, और उनके छुरों से बस थोड़ी ही धीमी है। पीट-पीटकर मारने में थोड़ा सा वक्त लगा होगा। अब हम देश की कहीं गाय की रक्षा के नाम पर, तो कहीं बच्चों की चोरी के शक में, कई जगह कानूनी पशु कारोबारियों की पीट-पीटकर हत्या देख रहे हैं, तो कहीं विचलित लोग बच्चा चोर होने के आरोप में भीड़ के हाथों मारे जा रहे हैं। यह देश में बलात्कारियों और दूसरे मुजरिमों का ही नहीं, यह एक आम मिजाज हो गया है कि पांच-दस लोगों की भीड़ जुट जाने के बाद वे अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकते हैं, और मानो देश का कानून तीन या चार लोगों से कम की भीड़ पर ही लागू होता है, आधा दर्जन लोग अपने आपमें एक कानून होते हैं। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ हफ्ते ही हुए महाराष्ट्र में ट्रेन में सफर कर रहे 72 बरस के एक बुजुर्ग को गाय का मांस लेकर जाने के शक में अगल-बगल के मुसाफिर नौजवानों ने जमकर पीटा, मां-बहन की गालियां बकीं, और उसके वीडियो भी बनाकर फैलाए। अब बंगाल तो तृणमूल कांग्रेस के ममता बैनर्जी के शासन, या कुशासन का प्रदेश है, लेकिन बाकी की ये तीन घटनाएं तो दूसरी पार्टियों के राज की हैं, और मोटेतौर पर पूरे देश में कानून का इतना ही सम्मान रह गया है।

जिस प्रदेश, या जिस शहर-कस्बे, या मोहल्ले में जिस धर्म या जाति के लोगों की अधिक बड़ी आबादी है, वहां उन्हीं की मर्जी कानून है। एक किस्म से देखें तो पिछले 75 बरस में संविधान लागू करके लोगों के बीच कानून का राज धीरे-धीरे कायम किया जा रहा था, वह बहुत रफ्तार से खत्म हो रहा है। लोकतांत्रिक समझ वैसे भी एक मुश्किल बात रहती है, और इंसान की आदिम सोच के खिलाफ भी रहती है। कानून के राज का खात्मा ऐसी आदिम सोच को एक बार फिर से राजपाट सम्हलवा दे रही है। इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तल्खी के साथ देश के कई राज्यों में बुलडोजरी इंसाफ नाम की तानाशाही के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है, और आने वाले कुछ दिनों में पूरे देश के लिए एक दिशा-निर्देश अदालत से जारी होने वाले हैं। मतलब यह कि एक-एक करके कई प्रदेशों में सरकारों ने देखा-देखी बुलडोजरी इंसाफ लागू कर दिया था, और कानून के राज को धक्का देकर गिरा दिया था।

इन तमाम बातों को देखें तो ऐसा लगता है कि न केवल जनता की भीड़, बल्कि अलग-अलग दर्जे के मुजरिमों के छोटे-छोटे गिरोह भी कानून के राज को खत्म सा मान चुके हैं, और धड़ल्ले से संगीन जुर्म करने में लगे हुए हैं। दूसरी तरफ यूपी और एमपी की भाजपा सरकारों ने बुलडोजर-संस्कृति पर जैसा गर्व दिखाया है, वह एक तरफ है, और ममता बैनर्जी ने जैसा तानाशाह और अराजक रूप दिखाया है, वह दूसरी तरफ है। इन सबसे ऐसा लगता है कि किसी प्रदेश पर काबिज हो चुके नेता उसे अपनी जागीर की तरह देखते हैं, और किसी इलाके के मुजरिम अपने इलाके को अपनी जागीर की तरह। कोई मुसलमान ट्रेन में कौन सा मांस लेकर चल रहा है, इस पर मौके पर ही तालिबानी फैसला देने वाले नौजवान मौजूद हैं, और उसी तरह का फैसला अभी ट्रेन में बच्ची से छेडख़ानी के आरोप पर वहां के मुसाफिरों ने दिया है, आरोपी को पीट-पीटकर मार डालकर। देश में कानून का क्या हाल हो गया है, इस पर फिक्र करने की जरूरत है। हम उम्मीद करते हैं कि गणेशोत्सव खत्म होने के बाद, और अपने कुछ हफ्ते बाद के रिटायरमेंट के पहले देश के मुख्य न्यायाधीश इस बारे में भी कुछ सोचेंगे।

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